अमेरिका ने दिया विश्व बंधुत्व का संदेश
यदि कनाडा की बात करें तो वहां एक दर्जन से अधिक सांसद भारतीय मूल के हैं।
यदि ऐसा हमारे देश में होता तो स्वदेशी का नारा जरूर शुरू हो जाता।
राजनीतिक द्वेष व संवैधानिक पद
राज्य सरकारें राज्यपाल की नियुक्ति को केंद्र सरकार की टेढ़े तरीके से राज्य में राजनीतिक दखलअंदाजी ही मानती है।
सरकार को राज्यपाल के पद की गरिमा को समझना चाहिए और कम से कम शिष्टाचार में तो कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए।
आत्महत्या न करें, जीवन शैली बदलें मध्यम वर्ग
फाइनैंस की सुविधा और शब्दावाली की हेरफेर ने लोगों की जेबें खाली करने का जादूगरी की तरह काम किया है।
मध्यम वर्गीय लोगों को खुदकुशी जैसे कदम उठाने की बजाय अपने आर्थिक स्रोतों और खर्चों का तालमेल बनाकर चलना होगा।
कृषि संबंधी नीतियों में समानता जरूरी
कृषि संकट को राजनीतिक पार्टियों ने चुनावों में भी मुद्दा बनाया है
और कई राज्यों की सरकारें इस मुद्दे से मुक्कर भी चुकी है।
कई राज्यों की सरकारों ने अपने घोषणा पत्र में किए वायदे के अनुसार किसानों का कर्ज भी माफ किया लेकिन, फिर भी कृषि संकट टल नहीं रहा।
आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने की आवश्कता
यह दुरुस्त है कि केंद्र ने आटो-मोबाइल क्षेत्र में आर्थिक मंदी से उभरने के लिए कार्पोरेट टैक्स में कटौती की है
लेकिन बाजार में अपेक्षित तेजी नहीं दिख रही। सोने की कीमतों में उछाल निरंतर जारी है।
नेताओं के बिगड़ते बोल
साध्वी प्रज्ञा ने करीब पांच महीने पहले भी नत्थुराम गोड़से को देशभक्त था,
है और रहेगा कहा था। तब भाजपा ने इस ब्यान से पल्ला झाड़कर और
साध्वी को चेतावनी देकर इतिश्री कर ली थी।
आनर किलिंग पर सरकारें चुप क्यों?
अंतरजातीय विवाह से उपजे संकट का एक मात्र हल
पुरानी व नयी पीढ़ी के बीच आपसी समझ का पुल कायम करने की आवश्यकता है,
दो पीढ़ियों को आपस में एक-दूसरे को समझने की जरूरत है।
खंडित जनादेश में नेताओं की सौदेबाजी
महाराष्ट्र में सरकार बनाने में रोड़ा अटकाने के खेल की शुरूआत शिवसेना ने की थी
लेकिन इस रोड़ा अटकाने के खेल में अजीत पवार ने मौके का फायदा उठाया अंत में खेल भाजपा ने खत्म कर दिया।
चन्दा बॉन्ड के खरीददार क्यों छुपाए जा रहे?
बॉन्डस राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ाने वाले हैं फिर भी
पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली ने इन्हें स्वीकृति दे दी क्यों?
आर्थिक विशेषज्ञों की बात को महत्व दे सरकार
कुछ भी हो सरकार को अपने अहं को त्यागकर डॉ. मनमोहन सिंह
में जैसे धुरंधर अर्थशास्त्रियों की बात को महत्व देना चाहिए।