अनिश्चितकालीन भंयकर बेरोजगारी का दौर
हाल में जारी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी कि रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 84 फीसदी से ज्यादा घरों की मासिक आमदनी में गिरावट दर्ज की गई है। देश में कामकाजी आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा इस समय बेरोजगार हो चुका है।
क्या लॉकडाउन व कोरोना से बचाव पर सरकार विफल हो गई
अब लॉकडाउन तब हट रहा है जब देश में डेढ़ लाख के करीब कोरोना मरीज हो गए हैं। स्पष्ट है क्या पहले का लॉकडाउन बिना जरूरत किया गया? क्योंकि कोरोना की भयानकता को देखते हुए लॉकडाउन की शायद अब ज्यादा जरूरत है।
सोशल डिस्टैंसिंग के दोहरे मापदंड
यह तर्क हास्यस्पद है कि देश में चल रहे विमान में सोशल डिस्टेंसिंग अनिवार्य है व विदेश से आने वाले विमानों में डिस्टेंसिंग की आवश्यकता नहीं है। इसमें केंद्र व राज्य सरकारों की उन अपीलों का कोई औचित्य नहीं रह जाता जिनमें आम लोगों को बाजार, अस्पतालों व अन्य स्थानों पर जाते समय और आपसी दूरी को बनाए रखना कोरोना से बचने का मूल मंत्र बता रहीं हैं।
तूफान पीड़ितों पर राजनीति न कर मदद की जाए
इस मामले में दोनों पक्षों को चुनावी फायदे को एक तरफ रखकर इंसानियत, नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी के साथ पीड़ित लोगों की मदद करनी चाहिए।
आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता जरूरी
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के दावे खूब होते हैं लेकिन जब उस फैसले को मानने की बात आती है तब सबूतों के अभाव की दुहाई दी जाती है। बेहतर होगा यदि म्यांमार की तरह अन्य देश भी आतंकवाद को खत्म करने में मदद करें व स्पष्ट व ठोस नीतियां बनाएं, क्योंकि आतंकवाद को पनाह देने से किसी भी देश का भला नहीं हो सकता।
बसों की राजनीति में पिस रहे मजदूर
उत्तर प्रदेश में सीमा पर फंसे मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए कांग्रेस पार्टी और यूपी सरकार के बीच पिछले कुछ दिन से चल रही ‘बस राजनीति’ गर्म तो खूब हुई लेकिन उन मजदूरों को कोई फायदा पहुंचाने में कामयाब नहीं हुई जो अभी भी सड़कों पर पैदल चलने को विवश हैं।
लॉकडाउन की मजबूरी ने बदला जीवन का नजरिया
यह अच्छी बात है कि बड़ी संख्या में जनता ने मास्क पहनने व सामाजिक दूरी के नियमों की पालना को अपनी जीवन शैली का हिस्सा बना लिया है।
अफरीदी के बोल उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा
पाकिस्तान के नामी क्रिकेटर शाहिद अफरीदी की एक वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें वह भारत के प्रधानमंत्री पर बेहुदा टिप्पणी कर रहा है। गौतम गंभीर, युवराज सिंह, हरभजन सिंह और शिखर धवन जैसे क्रिकेटरों ने शाहिद अफरीदी के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है और कहा है कि वो ऐसे शब्द कभी स्वीकार नहीं कर सकते।
किसी का हाल जानने के लिए क्या सरकारी मंजूरी लेनी होगी
सोचिये, अगर सड़कों पर बेवस लोगों की भीड़ नहीं होती तो राहुल किसका वक्त बर्बाद करते? सरकार को राहुल का नोटिस लेने की बजाय प्रशासन का नोटिस लेना चाहिए कि क्यों प्रशासन ने गरीबों की बेवसी को अनदेखा कर सरकार से ट्रेन व यातायात की व्यवस्था की आज्ञा नहीं ली।