बढ़ रहा महामारी प्रकोप सबके लिए हो स्वास्थ्य रणनीति
केंद्र सरकार का ध्यान अनलॉक करने पर केंद्रित है लेकिन महाराष्ट्र, तामिलनाडु, गुजरात व दिल्ली में बढ़ रहे कोरोना मरीजों को देखते हुए नई रणनीति बनानी होगी।
एमएसपी पर स्थिति स्पष्ट करने की आवश्यकता
किसान संगठन सड़कों पर उतर आए हैं और इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। किसानों का दावा है कि इस फैसले से किसानों की फसल को व्यापारियों की निर्भरता पर छोड़ दिया है। किसानों के अनुसार निजी सेक्टर मनमर्जी के रेटों पर फसल की खरीद करेंगे और सरकार एमएसपी तय करने से भाग रही है।
लॉकडाउन भले हट गया परन्तु कोरोना का खतरा नहीं हटा
लॉकडाउन शुरू होने पर देश में कोरोना के 500 मरीज थे, जिनकी संख्या आज ढाई लाख को पार करने वाली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी स्पष्ट कर चुका है कि भारत में वायरस तेजी से नहीं फैल रहा लेकिन इसका खतरा अभी टला नहीं। आठ महीने के बाद भी कोरोना वायरस के लिए कोई वैक्सीन नहीं बन सकी इसीलिए सावधानी ही एकमात्र समाधान है।
अवसरवादियों का खेल बनी राजनीति
राजनीति में बढ़ अवसरवादिता की सोच चिंताजनक है। इस्तीफा देने वाले विधायकों की मंशा किसी से भी छिपी नहीं है। यहां मामला विधायकों के दल बदल का नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा को कुचल देने का है। अवसरवादी राजनेताओं के लिए सत्ता तिकड़मबाजी का खेल बन गई है।
अमेरिका में नस्लीय हमले
पिछले कई वर्षों से गैर-अमेरिकी नागरिकों को मौत के घाट उतारा जा रहा है। दु:खद बात है कि एशियाई देशों सहित दूसरे महाद्वीपों से अमेरिका आकर रहने वाले लोगों ने अमेरिका के विकास में योगदान ही नहीं दिया बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से खुद को इस जमीन के साथ जोड़ा है।
बार्डर सील न करें मरीजों की मदद करें
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने तो हद ही कर दी, उन्होंने कहा है कि दिल्ली के हिसाब से अस्पतालों में मरीज के लिए बेड की पर्याप्त व्यवस्था है लेकिन अगर दूसरे राज्यों के मरीज गए तो दिक्कत हो सकती है। ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए? क्या उन्हें अपनी सीमाएं सील कर देनी चाहिए या फिर सभी राज्यों के लिए खोल देना चाहिए? यह एक संवेदनहीनता व अमानवीय घटना है ।
अमेरिका-चीन की दशा व दिशा देखे भारत
भारत को विश्व नेताओं की बातों को सुनकर, समझ लेना चाहिए परन्तु अपने मसलों का हल अपनी आंतरिक राजनीतिक, आर्थिक सुरक्षा ताकत के बल पर ही करना होगा, यह भी याद रखना चाहिए।
प्रकृति से वैर पड़ रहा महंगा
विश्व के विकसित देश और समाज जहां प्रकृति के प्रति संवेदनहीन होकर मानव जनित वो तमाम सुविधाएं भोगते हुए स्वार्थी जीवन जी रहे हैं जो पर्यावरण के लिए घातक हैं। वहीं विकासशील देश भी विकसित बनने की होड़ में उसी रास्ते पर चल रहे हैं। यह भी स्पष्ट है कि आज विश्व समाज इनके प्रति बिलकुल गंभीर नहीं है जिसका खामियाजा प्राकृतिक आपदाओं के रूप में हमें भुगतना पड़ रहा है।