पटना। तपती गर्मी और उमस में आइस्क्रीम खिलाकर लोगों को ठंडक का अहसास कराने वाले कारोबारी और विक्रेता इस बार कोरोना महामारी को लेकर जारी देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से बेरोजगारी की तपिश में झुलस रहे हैं। कोराना-कोविड 19 के संक्रमण के बाद लगे लॉकडाउन से लघु उद्योग बुरी तरह प्रभावित हैं इसमें आइसक्रीम उद्योग भी अछूता नहीं रहा है। इसकी मार बिहार के ब्रांडेड आइसक्रीम कारखानों के साथ ही छोटे कस्बों में उन दुकानदारों पर भी पड़ी है, जो मटका कुल्फी या शेक जैसे दूध से बनने वाले उत्पाद बेचते हैं। सिर्फ तीन से चार माह के कारोबार के लिए नौ माह तक इंतजार करने वाले आइसक्रीम कारोबारियों का कारोबार इस वर्ष शुरू होने से पहले ही पटरी से उतर गया है।
आइसक्रीम बेचने वाले पूरी तरह बेरोजगार
एक अनुमान के अनुसार लॉकडाउन या बंद के कारण बिहार के आइसक्रीम उद्योग को 60 प्रतिशत नुकसान तो पहले ही हो चुका है। यदि महीने भर बंद और रहा तो इस उद्योग का पूरा साल खराब हो जाएगा। तपती गर्मी में गले को तर करने वाले पेय पदार्थों का बाजार इन दिनों ठंडा पड़ा है। गन्ना रस और फलों के जूस की दुकानें तो फिर भी थोड़ी बहुत खुली दिख जाती हैं, लेकिन आइसक्रीम नजर नहीं आती है। गली-कूचों में आइसक्रीम-आइस कैंडी के ठेलों पर बजने वाले भोंपू की आवाज कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन में गुम हो गयी हैं।
गर्मियों के शुरू होते ही आइसक्रीम बेचने वाले पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं। आइसक्रीम, आइसकैंडी खिला कर ठंडक का अहसास कराने वाले सेल्समैन इस लॉक डाउन में बेरोजगारी की गर्मी में झुलस रहे हैं। गर्मी के मौसम में ‘आइसक्रीम वाला’ की आवाज सुनते ही बच्चे दौड़ पड़ते थे। वहीं, बड़े-बुजुर्ग भी गर्मी से राहत पाने के लिए आइसक्रीम का लुत्फ उठाने से नहीं चूकते थे, लेकिन कारखाने बंद होने से आइस्क्रीम उत्पादन ठप है।
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