सरसा (सच कहूँ डेस्क)। बेपरवाह साईं जी के एक पावन करिश्में को प्रेमी चरण दास पुत्र श्री गंगा सिंह गांव ढढ्डी कदीम तह. जलालाबाद एक अद्भुत करिश्में के विषय में इस प्रकार बयान करता है। ‘‘ पहले मैं गांव कबर वाला तह. अबोहर जिला फिरोजपुर में रहता था। उस समय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज सत्संग करने के लिए मलोट मंडी पधारे हुए थे। मैं भी शहनशाह जी का सत्संग सुनने के लिए वहां पहुंचा था और सत्संग के बाद सच्चे पातशाह जी से नाम की दात प्राप्त कर ली। नाम के बाद बेपरवाह जी की रहमत द्वारा नाम का सिमरन आरंभ कर दिया। जब भी कभी मन में किसी प्रकार की शंका होती तो परम दयालु दाता जी उसका तुरंत ही उत्तर दे देते।
फिर कुछ समय के बाद (सन् 1960 में)। शहनशाहों के शहनशाह मस्ताना जी महाराज अपना नूरी चोला बदल गए। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपना उत्तराधिकारी बना गए परंतु बेपरवाह जी के वचनों के अनुसार, यहां सैंकडे गुरू बनना चाहते हैं, यानि यहां कितने ही स्वयं गुरू बनकर बैठ गए। ऐसी स्थिति को देखकर मेरे मन के अंदर कई प्रकार के संदेह उत्पन्न हो गए और मैंने डेरा सच्चा सौदा जाना छोड़ दिया। अपने घर में ही पूरी लगन के साथ सिमरण करता रहा। साथ-साथ बेपरवाह जी के आगे प्रार्थना भी करता कि हे सतगुरु! मुझे सुमति प्रदान करो और सचेत करो कि मैं किस के दर पर सजदा करूं एवं मुझे किसे सौंप गए हो? मुझे जिस बॉडी में दर्शन दोगे मैं उसके दर पर ही जाऊंगा और उसको ही आपको स्वरूप मानूंगा।
अगले दिन जब मैं अपने प्रति दिन के अनुसार सिमरन कर रहा था तो बेपरवाह मस्ताना जी महाराज, पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को लेकर आए। मुझे दोनों बाडियों के दर्शन हुए। मैं सच्चे पातशाह जी से 10-15 कदम की दूरी पर था। बायीं और बेपरवाह मस्ताना जी महाराज और दायीं ओर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज थे। बेपरवाह जी ने मुझे अपने असली उत्तराधिकारी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की ओर संकेत करते हुए फरमाया, पुत्र! हमारी दूसरी बाडी के दर्शन कर ले। अच्छी तरह पहचान ले, देख ले। फिर किसी संदेह में मत रह जाना। ये वचन फरमाते हुए बेपरवाह जी ने अपना कंधा परम पिता शाह सतनाम जी के साथ जोड़ा और धीरे-धीरे परम पिता जी में समा गए और उनका ही स्वरूप बन गए। मैं ये सब कुछ अपनी आंखों से ही देखता रहा। फिर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने नूरी जलाल में दर्शन दिए और मैंने पूजनीय परम पिता जी को धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा लगाया। परम पिता जी ने मेरा बकायदा हाल-चाल पूछा और मुझे दरबार में आते रहने के लिए कहा और इसके बाद अलोप हो गए।
परम पूजनीय प्यारे मुर्शिदे-कामिल का इलाही प्रेम प्राप्त करके मेरे सभी संदेह दूर हो गए। मैं इस महान् उपकार के लिए अपने प्यारे सतगुरू जी का बहुत अधिक आभारी हूं क्योंकि सच्चे दातार जी ने अपनी रहमत द्वारा मुझे दर-दर की ठोकरें खाने से बचा लिया है। वास्तव में पूर्ण सतगुरु अपने नूरी स्वरूप द्वारा (शब्द रूप में) हर घट-घट में विराजमान हैं। नि:संदेह वह अपने शरीर के कारण हमारी आंखों से ओझल हो जाएं परंतु अपने शब्द स्वरूप द्वारा अपने जीवों की हर समय संभाल करते रहते हैं। आवश्यकता है दृढ़ विश्वास, सच्ची तड़फ और दृढ़ निश्चय की।
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