चीन, स्पेन, ईटली व अमेरिका में कोरोना वायरस से हुए जानी नुक्सान ने यह बता दिया है कि प्राकृति से लड़ने के लिए तकनीक व भौतिक विकास ही काफी नहीं बल्कि सद्भावना, सहयोग, जागरूकता व इंसानियत के प्रति सर्मपण की भावना सबसे बड़ी ताकत है। नि:संदेह विकसित देश भारत के मुकाबले मेडिकल साइंस, तकनीक व वित्तीय रूप से मजबूत हैं, लेकिन भारत ने बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद वायरस का सामना करने के लिए एकता, सहयोग व जागरूकता को बड़ा हथियार बनाया है।
लॉकडाउन की घोषणा के वक्त यह संदेह था कि रोजगार ठप्प होने के कारण असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, गरीबों व निम्न-मध्यम वर्ग को आवश्यक वस्तुओं की कमी के कारण भुखमरी का संकट पैदा हो सकता है, लेकिन लॉकडाउन के दिन से ही जिस प्रकार समाजसेवी संस्थाओं व संगठनों ने जरूरतमंदों के दर्द को समझा, वह अपने-आप में पूरे विश्व में मिसाल है, विशेष तौर पर डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं की सेवा भावना काबिले-तारीफ है, लेकिन अभी लॉकडाउन में 18 दिन बाकी है, जिसके लिए घरों में रहकर लोगों की मदद करना चुनौतीपूर्ण काम है।
डेरा सच्चा सौदा ने प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री सहित सात राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मदद की पेशकश की है। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की प्रेरणा पर चलते हुए डेरा सच्चा सौदा की शाह सतनाम सिंह जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग अब तक पिछले कई वर्षों में निस्वार्थ भावना से प्राकृतिक आपदाओं में बड़े स्तर पर राहत कार्य कर चुकी है। यह जज्बा ही हमारी संस्कृति की बड़ी ताकत है। भले ही केंद्र व राज्य सरकारों ने वित्तीय पैकेज के साथ-साथ अनाज, दूध, सब्जियों, दवाईयों व अन्य आवश्यक वस्तुओं के वितरण का प्रबंध किया है, लेकिन लॉकडाउन के कारण घरों में बंद करोड़ों लोगों तक सही समय पर सप्लाई, भीड़ से बचाव व सावधानियां बरतनी भी एक कठिन कार्य है। देश में आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं लेकिन अनुशासन व तरीके से लोगों तक पहुंचाने का भी विशेष महत्व है। इसीलिए सरकारों की यह बड़ी जिम्मेवारी है कि वे समाज सेवी संस्थाओं का सहयोग लेकर पूरी सावधानी से लोगों तक राशन पहुंचाने को यकीनी बनाए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि देश की परिस्थितियों के अनुसार लॉकडाउन जरूरी व मजबूरी था। 130 करोड़ लोगों तक सामान पहुंचाने के लिए संस्थाओं के सहयोग की जरूरत है। इसी तरह मेडिकल स्टोरों, सब्जियों व करियाने की दुकानें खुलने के वक्त भीड़ इक्ट्ठी नहीं होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को एक तय दूरी पर खड़ा करने के लिए पुलिस बल की ही जिम्मेवारी नहीं, यहां समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग महत्वपूर्ण बन जाता है। सामान केवल शहरों, कस्बों व गांवों तक ही नहीं पहुंचाया जाएगा, बल्कि ढाणियों, झुग्गी-झौपड़ियों, बस्तियों व भट्ठों पर मजदूरों तक पहुंचाया जाना है। यदि लोगों को जरूरत का सामान बिना किसी देरी व मुश्किल से घरों में मुहैया होगा तब लॉकडाउन के बेहतर परिणाम देखने को मिलेंगे।
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