सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि परमात्मा ने मनुष्य को हीरे लाल, जवाहरात से बढ़कर खिताब दिया है। हीरे-जवाहरात तो बाजार से किसी न किसी मूल्य पर खरीदे जा सकते हैं लेकिन मनुष्य रूपी शरीर ऐसा अनमोल हीरा है जो कहीं से भी खरीदा नहीं जा सकता। लेकिन लोग इस मनुष्य शरीर को काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, दुई-द्वेष, नफरत में पड़कर गंवा देते हैं। ये रोग लोगों को इस कदर लगे हुए हैं कि उनका पीछा कहीं भी नहीं छोड़ते। दूसरी ओर आज का मनुष्य राम का नाम जपता नहीं, सत्संग सुनता नहीं और अमल करता नहीं तो कहां से फायदा होगा।
आप जी फरमाते हैं कि यह भयानक कलियुग है। इसमें आप यह मत सोचें कि जो रोजाना सत्संग सुनते हैं उनके अंदर यह बुराइयां नहीं होंगी। लेकिन सत्संग सुनने का फल आत्मा को अगले बुराइयां छोड़कर जहान में जरूर मिलेगा। जितनी देर सत्संग, रामनाम की चर्चा में बैठे उसका फायदा, फल आत्मा को अवश्य मिलेगा लेकिन अगर सुनकर अमल किया तो इस जहान में खुशी है अन्यथा नहीं। इस प्रकार इस भयानक कलियुग में बहुत से लोग ऐसे हैं जो रोजाना मजलिस सुनते हैं और बाद में एक दूसरे से ईर्ष्या, नफरत, अंदर बुरे विचार, तो कहां से मालिक की दया-मेहर मिले। इसलिए अपने अंदर की बुरी भावना, ईर्ष्या, दुई-द्वेष को जब तक मनुष्य दूर नहीं करता तब तक मालिक की दया-मेहर, मूसलाधार रहमत, प्यार के काबिल नहीं बन सकता।
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