नई दिल्ली। करीब सवा दो करोड़ लंबित मामलों को निपटाने की जद्दोजहद कर रही देश की अधीनस्थ अदालतों में कोर्टरूम ज्यादा हैं पर वहां बैठने वाले न्यायाधीश कम हैं। आधिकारिक जानकारी के अनुसार दिसम्बर 2016 के अंत तक निचली अदालतों में अदालत कक्षों की संख्या 17,300 थीं, जबकि न्यायिक अधिकारियों की संख्या 16,413 थीं। सरकार जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तीन हजार और कोर्टरूम बनवा रही है।
इनके बनकर पूरा होने जाने के बाद अदालत कक्षों की कुल संख्या 20 हजार को पार कर जाएगी। विधि मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में दो करोड़ 16 लाख लंबित मुकदमों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्टों को पत्र लिखकर यथाशीघ्र न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की सलाह दी है। सरकार ने इसके लिए कम से कम छह हजार न्यायाधीशों की भर्ती करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं 60 हजार मामले
नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि निचली अदालतों के अलावा देश के 24 हाईकोर्टों में 40 लाख और सुप्रीम कोर्ट में 60 हजार मामले लंबित हैं। जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में नियुक्तियां हाईकोर्टों के जिम्मे है, इसमें केंद्र एवं राज्य सरकारों की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है। पिछले दो वर्ष में इन अदालतों में रिक्तियों की संख्या तेजी से बढ़ी है और यह 4000 से बढ़कर 5800 पर पहुंच गई है। विभिन्न शासकीय एवं न्यायिक सुधारों के बावजूद न्यायिक अधिकारियों के पद रिक्त पड़े हैं।
जिला अदालतों में बढ़ेगी जजों की संख्या
देश की बढ़ती आबादी एवं मुकदमा दायर करने की बढ़ती प्रवृत्तियों से सामंजस्य बिठाने के लिए सरकार ने जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में जजों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है। इसके लिए सरकार ने 2013 में जजों के लिए 19 हजार 500 निर्धारित पदों को 2016 में बढ़ाकर 22 हजार 288 किया है।
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