पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
- सतगुरु ने अपने शिष्य की रक्षा की
प्रेमी सुखदेव सिंह फौजी इन्सां पुत्र सचखंड वासी स.बंत सिंह गांव घुम्मण कलां जिला बठिंडा (Bathinda) से अपने सतगुरु पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई रहमतों का वर्णन करता है:-
मैं तब फौज में था जब सन् 1971 का युद्ध पाकिस्तान के साथ हुआ। हम अपनी पल्टन के साथ राजस्थान की बाड़मेर साईड से खोखरापार बार्डर तोड़ कर पाकिस्तान के एरिया में काफी आगे बढ़ गए थे। मैंने अपने सतगुरु परम पिता जी के चरणों में अरदास की कि अब तो आप ही रक्षक हो। क्योंकि युद्ध में कुछ भी हो सकता है। एक दिन मेरी पल्टन के कर्नल साहिब ने मुझे कहा कि तू भक्ति करता है, मेरी पल्टन पर भी मेहर भरा हाथ रखना। तो मैंने कहा कि वह तो सभी का खैर खवाह है। वो सब का ख्याल रखेगा। एक दिन मेरे साथ बघेल सिंह सुबह अंधेरे में पानी की बोतल लेकर बाहर लैटरीन जाने लगा तो उसी समय दुश्मन के ग्यारह जहाजों ने हम पर हमला कर दिया।
छ: जहाज रेकी तथा बाकी बम्बबारी कर रहे थे। हमारे सामने बघेल सिंह पर जहाज ने दो बम्ब गिराए। हमने समझा कि बघेल सिंह तो शहीद हो गया। परन्तु जब जहाज बम्बबारी करके चले गए तो मालिक सतगुरु की रहमत से वह उठ कर कपड़े झाड़ने लगा। तो मालिक की रहमत से वह बच गया। हम मालिक की रहमत को देखकर हैरान रह गए। हमारे पास ही एक सूबेदार के ऊपर से जहाज द्वारा गोली लगी जो उसकी छाती में लगने की बजाए उसके पिन्न में अटक कर रूक गई। देखने वाले हैरान रह गए कि यह कैसे हो सकता है। वह पिन्न रखता नहीं था, परन्तु दिखाने के लिए रखने लगा कि इस तरह गोली मेरे पिन्न में अटक गई तो मैं बच गया। यह दोनों बंदे मेरे आस-पास थे। इस तरह सतगुरु परम पिता जी ने मेरी राखी तो की ही की, मेरे आस-पास पल्टन के किसी बंदे को कोई नुक्सान नहीं होने दिया।
जो फौजी सन् 1971 के युद्ध में शहीद हो गए थे, परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने उनके लिए दुआ की तथा साध-संगत से उनके लिए सुमिरन करवाया और उनका पार उतारा किया। इस तरह पूजनीय परमपिता जी ने कितनी ही रूहों का उद्धार किया। फौज से रिटायर होकर मैं भारतीय सेना की आॅर्डनेन्स सेवाओं के अधीन बठिंडा छावनी में नौकरी करता था। इस विभाग की तरफ से सेना को असला, वर्दी तथा अन्य सारा सामान सप्लाई किया जाता था। मैं अपने लिए स्पैशल सामान लेने बठिंडा शहर में साईकिल पर आया हुआ था। एक तेज रफ्तार जीप मेरे पीछे से टकराई तो मेरी साईकिल टूट-फूट गई और मैं जीप के नीचे आ गया तथा जीप मुझे करीब दो सौ मीटर तक घसीटती हुई ले गई। लोगों ने शोर मचा दिया कि बंदा मर गया। जीप बड़ी मुश्किल से रुकी। लोगों ने जीप के ड्राईवर को बुरा-भला कहा।
वास्तव में ड्राईवर बिल्कुल अनजान था। जो जीप को नहीं रोक पाया। मौड़ मंडी के वकील का बेटा जीप चला रहा था तथा वकील साथ बैठा हुआ था। लोगों ने मुझे उठाया और जीप में लम्बा लिटा दिया। मैं पूरी तरह होश में था। वकील का बेटा उलटा मुझे गाली देकर कहने लगा कि आगे आ गया। बाद में वकील ने अपने बेटे को वहां से भगा दिया। मुझे सिविल हस्पताल में दाखिल करवाया गया। जब मेरा चैक-अप किया गया तो मालिक की रहमत से मेरे शरीर के सभी अंग सही थे। मेरे शरीर पर केवल झरीटें थी। उसी दिन मुझे हस्पताल से छुट्टी मिल गई।
कुछ दिनों के बाद मैं अपने सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज (Shah Satnam Singh Ji Maharaj) का धन्यवाद करने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा आया। जब मुझे परम पिता जी से मिलने की आज्ञा मिली तो मैं पास जाकर वैराग्य में आ गया तथा मेरी आंखों मेें आंसू आ गए। पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘भाई! तेरा टुटिआ तां कुझ नहीं। ’ तो मैंने अर्ज की कि पिता जी, आप हमारे राखे हो। हमारा क्या टूट सकता है। पिता जी, आप जी ने कुछ टूटने दिया ही नहीं। परम पिता जी ने मुझे आशीर्वाद दिया तथा अन्नत खुशियां बख्शी।
मैं अपने सतगुरु की रहमतों का वर्णन लिख बोल कर नहीं कर सकता। बस धन्य-धन्य ही कर सकता हूं।
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