जानिए! भारत में कब-कब हुई नोट बंदी 

Notebandi
नोटबंदी (सांकेतिक फोटो)

भारत में पहले चलता था 5 हजार से 10 हजार तक का नोट

  • नोटबंदी से बजाए फायदे के हो गए ये 5  नुकसान
  • जाने नोटबंदी से क्या फायदे होने की थी उम्मीद, और क्या हुआ

गाजियाबाद (सच कहूँ/रविंद्र सिंह)। रिजर्व बैंक ने नोटबंदी (Notebandi) से जुड़े अंतिम आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि वि मुद्रित मुद्रा में से 10,700 करोड़ रुपये वापस बैंक में नहीं लौटे। इन आंकड़ों के आधार पर साफ है कि इन रुपयों के अलावा देश में मौजूद पूरा काला धन एक बार फिर बैंकिंग में प्रवेश कर चुका है।  लेकिन इसके साथ ही नोटबंदी से इन फायदों पर भी सवाल खड़ा हो गया। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के 8 नवंबर 2016 को लिए गए नोटबंदी के फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं भी आई। जहां केंद्र सरकार अपने दावे  डटी रही  कि नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा फायदा मिलने वाला है।

यह भी पढ़ें:– 2000 रुपये के नोट बदलने को लेकर आई बड़ी खबर

वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली जुली प्रतिक्रिया के साथ कुछ संस्थाओं ने तीखी आलोचना भी की इस दौरान नोटबंदी के वास्तविक आंकड़े केन्द्रीय रिजर्व बैंक के पास एकत्र होते रहे और रिजर्व बैंक विमुद्रित की गई करेंसी की गिनती करती रही। रिजर्व बैंक ने नोटबंदी (Notebandi) से जुड़े अंतिम आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि विमुद्रित मुद्रा में से 10,700 करोड़ रुपये वापस बैंकिंग प्रणाली में नहीं लौटे हैं।  इस धनराशि की जानकारी  आरबीआई की सालाना रिपोर्ट के आधार पर, आठ नवंबर, 2016 को घोषित नोटबंदी से पूर्व चलन में रहे विमुद्रित नोटों की 15.42 लाख करोड़ रुपये की राशि में से वापस बैंकिंग प्रणाली में लौटी 15.31 लाख करोड़ रुपये की राशि को घटाने के बाद सामने आई थी।

भारत में 3 बार नोटबंदी हुई !

आरबीआई ने जनवरी 1938 में पहली पेपर करेंसी छापी, जो 5 रुपए की नोट थी। इस साल पहले 10 रुपए, 100 रुपए, 1,000 रुपए और 10,000 रुपए के नोट भी छापे गए थे। लेकिन आजादी से पूर्व भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने 12 जनवरी 1946 को हाई करेंसी वाले बैंक नोटों को डिमॉनेटाइज करने का अध्यादेश लाने का प्रस्ताव दिया और 1000 और 10000 के नोट बंद किए गए। इसके बाद 1954 में फिर से 1000, 5000 और 10000 के नोटों की छपाई हुई। भारत में 5000 से 10000  के नोटों का प्रचलन 1954 से 1978 तक रहा।

हालांकि 1978 में जनता पार्टी की सरकार में तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई की सरकार ने 5000 और 10000 के नोटों का सर्कुलेशन रोक दिया। उसके बाद  8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे भारत में संपूर्ण नोटबंदी की घोषणा भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया था। उन्होंने 8 नवंबर की रात 8 बजे अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि आज रात आठ बजे के बाद भारत में प्रचलित 500 और 1000 रुपये के नोट प्रचलन से बाहर हो जाएंगे।

500 और 1000 के नोट बंद कर दिए गए। और 2000 का नोट जारी किया गया था। लेकिन अब 19 मई 2023 को फिर से अचानक 2000 का नोट बंद करने का ऐलान कर दिया गया। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई ) ने 2,000 रुपये के नोट को चलन से बाहर करने की घोषणा कर दी है।  30 सितंबर के बाद यह नोट भी मान्य नहीं होगा। लोग एक बार में 2 हजार रुपये के केवल 10 नोट की बदल  पाएंगे। फिलहाल अब भारत में सबसे बड़ा नोट 500 का प्रचलन  में शायद जारी रहेगा। या भविष्य में भारत सरकार इसको भी बंद करने का एलान कर सकती है!

नोटबंदी के क्या हुआ नुकसान और क्या फायदे होने की थी उम्मीद | (Notebandi)

आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई है। सरकार ने राजनीतिक फायदे के लिए अर्थव्यवस्था को ठप किया है और असली काले धन पर कुछ नहीं किया है। काला धन अब भी विदेश जा रहा है।

नोटबंदी से हो गए ये 5 बड़े  नुकसान?

  • लुढ़क गई जीडीपी
  • बढ़ गई बेरोजगारी
  • बढ़ गया बैंकों का कर्ज
  • नहीं बढ़ी सरकार की कमाई
  • घट गई आम आदमी की सेविंग

 नोटबंदी से ये 10  फायदे होने की थी उम्मीद | (Notebandi)

1. भ्रष्टाचार पर लगाम लगने की थी उम्मीद

देश में 500 और 1000 रुपये की प्रतिबंधित करेंसी कुल करेंसी की 85 फीसदी थी।  करीब  यह दोनों करेंसी देश में भ्रष्टाचार की पोशाक भी थी।  नोटबंदी के फैसले के बाद से ही भ्रष्टाचार के लिए इस करेंसी का इस्तेमाल रुक गया।  पुरानी करेंसी की जगह जारी हुई नई करेंसी को सरकार ने धीरे-धीरे और सभी सुरक्षा मापदंडों के सहारे बाजार में संचालित भी किया जिससे दोबारा अर्थव् अर्थव्यवस्था में काला धन एकत्र न होने पाए। लेकिन कोई उपाय काम नहीं आया।

2. कैशलेस इकोनॉमी प्रचलित होगी

 कैश इकोनॉमी बनाने के लिए जरूरी था कि देश में ज्यादा से ज्यादा ट्रांजेक्शन  डिजिटल के माध्यमों से किया जाए।  इससे करेंसी पर देश की निर्भरता कम होगी और रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों के साथ-साथ केन्द्र सरकार को करेंसी संचालन में कम खर्च करना पड़ेगा।  कैशलेस इकोनॉमी का फायदा सरकार के रेवेन्यू में इजाफे के साथ-साथ आम आदमी को भी होगा ,क्योंकि उसका पैसा  डिजिटल आदान-प्रदान में ज्यादा सुरक्षित रहेगा।

3. नकली करेंसी पर लगेगी लगाम

देश में सीमा पार से नकली करेंसी के प्रवाह की गंभीर समस्या थी।  नकली करेंसी जिसके हाथ पहुंचती थी उसे उतने मूल्य का तुरंत नुकसान उठाएं पड़ता था।
वहीं सरकार को भी इसके रोकथाम के लिए बड़े नेटवर्क का सहारा लेना पड़ता था।  करेंसी का कम इस्तेमा तेल (डिजिटल पेमेंट) और बड़े डिनॉमिनेशन की करेंसी से एक झटके में देश से नकली करेंसी साफ हो चुकी है।  लिहाजा उम्मीद थी कि नई करेंसी के सुरक्षा मानक ज्यादा पुख्ता होने से अगले कई वर्षों तक अर्थव् अर्थव्यवस्था नकली करेंसी से सुरक्षित रहेगी।

4. रियल एस्टेट सेक्टर पारदर्शी होने की थी उम्मीद

नोटबंदी के बाद सबसे बड़ा फायदा रियल एस्टेट सेक्टर में होना था।  बीते कई दशकों से रियल एस्टेट सेक्टर कालेधन के निवेश का सबसे बड़ा जरिया था।  इसके चलते कागजों पर प्रॉपर्टी की खरीद और वास्तविक खरीद में बड़ा अंतर  होना आम बात थी।  इससे जहां सरकार को स्टांप ड्यूटी  में बड़ा नुकसान होता था। वहीं आम आदमी को ब्लैक    न होने के चलते मकान खरीदने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता था।

5. उम्मीद थी खत्म होगा काला धन

सरकार ने दावा किया था कि नोटबंदी के फैसले से कालेधन के खिलाफ सामाजिक बदलाव लाने के काम को आसानी से किया जा सकेगा।  यह हकीकत है कि किसी भी अर्थव् अर्थव्यवस्था से कालाधन तब तक नहीं खत्म किया जा सकता जब तक सामाजिक स्तर पर इसका बहिष्कार न होने लगे।  अभी तक काले धन का निवेश प्रॉपर्टी और सोना-चांदी में किया जाता था। जिससे उनकी कीमत वास्तविक कीमत से हमेशा अधिक बनी रहती थी।  लिहाजा, नोटबंदी के बाद इन क्षेत्रों में कालेधन के इस्तेमाल पर रोक लगने की उम्मीद थी। लेकिन नहीं लग सकी।

6.  उम्मीद थी बंद होगी समानांतर इकोनॉमी
कालेधन और भ्रष्टाचार का सहारा लेकर देश में हमेशा से एक समानांतर इकोनॉमी चलती थी।

देश में कोयला की खदान से लेकर सड़क किनारे चाय और सब्जी बेचने वाले इस समानांतर अर्थव्यवस्था में शामिल रहते थे। यहां ज्यादातर लोग देश की सकल घरेलू आय को नुकसान पहुंचाते हुए अपनी आर्थिक स्थिति गतिविधियों को चलाते थे. लिहाजा, नोटबंदी से डिजिटल पेमेंट की ओर रुझान और नोटबंदी से खत्म हुए काले धन  के साथ-साथ इस समानांतर इकोनॉमी को मुख्यधारा से  जोड़ने में मदद मिलने की उम्मीद थी।

7. बढ़ेगा टैक्स बेस

देश में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने का सबसे बड़ा फायदा होगा कि बड़े से बड़े और छोटे से छोटे ट्रांजैक्शन बैंकों  के पास दर्ज होंगे।  इन ट्रांजेक्शन  पर इनकम टैक्स विभाग की भी लगातार नजर रहेगी।  जब देश में ब्लैक इकोनॉमी का आधार नहीं रहेगा तो जाहिर है ज्यादा से ज्यादा लोग टैक्स का भुगतान करने के बाद ही अपनी खरीद-फरोख्त को पूरा  कर पाएंगे।  लिहाजा, नोटबंदी से उम्मीद थी कि केंद्र और राज्य सरकारों का रेवेन्यू तेजी  से बढ़ेगा।  उसका वित्तीय घाटा कम होगा और देश के इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने के लिए उसके पास पर्याप्त संसाधन रहेंगे।

8. फाइनेंशियल सेविंग्स  में होगा इजाफा

नोटबंदी (Notebandi) के पहले तक देश में लोग अपनी सेविंग्स   को प्रॉपर्टी, सोना और ज्वैलरी में निवेश करते थे। जरूरत पड़ने पर लोग इसे ब्लैक मार्केट में बेचकर एक बार फिर करेंसी में बदल देते थे. नोटबंदी से पहले तक देश के 50 फीसदी से अधिक परिवार अपनी सेविंग्स  को इन्हीं तरीकों से बचाकर रखते थे। यहां निवेश हुआ अधिकांश पैसा  संभावित ब्लैकमेल  भी था।  लिहाजा उम्मीद थी कि नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट और सोना अपेक्षा के मुताबिक रिटर्न नहीं दे पाएंगे और आम आदमी इन माध्यमों में निवेश करने की जगह अपनी सेविंग्स को रखने के लिए एक बार फिर बैंकों  का रुख करेंगे। उम्मीद थी कि लॉन्ग सेविंग्स। बैंक डिमांड ड्राफ्ट और म्यूचयूअलचुफंड जैसे विकल्पों का अधिक सहारा लेंगे और यहां उन्हें सबसे सुरक्षित रिटर्न भी मिलेगा।

बैंकों की कमाई बढ़ने की थी उम्मीद

नोटबंदी (Notebandi) से कालेधन पर लगाम के साथ-साथ तेजी ते से बढ़ते डिजिटल पेमेंट से नोटबंदी के बाद बैंकों  की कमाई में बड़ा इजाफा देखने की उम्मीद बंधी थी।  माना जा रहा था कि इस इजाफे के सहारे बैंक भी  अपना विस्तार करेंगे और ग्राहकों को लुभाने के लिए आसान और सस्ती बैंकिंग का रास्ता साफ करेंगे।  इसके साथ ही यह भी उम्मीद लगाई गई कि नोटबंदी से बैंकों   के पास एकत्रित हुई अकूत  दौलत उन्हें उनका घाटा पाटने में भी मदद करेगी।

10 सस्ता होगा कर्ज ये थी उम्मीद

उम्मीद की जा रही थी कि नोटबंदी (Notebandi) के बाद से बैंकों  को हो रहे फायदे का सीधा असर देश में ब्याज दरों पर पड़ना तय माना  जा रहा था। उम्मीद थी कि वित्तीय जगत में पारदर्शिता  के साथ-साथ बैंक अपना कारोबार फैलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा कर्ज देने की कोशिश करेंगे।  यहां ग्राहकों को लुभाने के लिए वह कर्ज पर लगने वाले ब्याज दरों में बड़ी कटौती का ऐलान कर सकते हैं।  इससे देश में घर खरीदने, कार या स्कूटर खरीदने अथवा कारोबार के लिए कर्ज सस्ते दरों में मिलना शुरू हो जाएंगे। लेकिन सब उल्टा हो गया।