(सच कहूँ न्यूज) जनवरी माह जिसे आप पौष-माघ भी कहते हैं, सबसे ठंडा महीना होता हैं, इस महीने में किसानों को अपनी फसलों की देखभाल के लिए कई कार्यों का विशेष ध्यान खना चाहिए।
सिंचाई या धुंआ ( पाले से सुरक्षा): जनवरी में तापमान बहुत अधिक गिर जाने से पाला पड़ता है, जिससे फसलें नष्ट भी हो सकती हैं। पाले के नुक्सान से बचने के लिए शाम के समय खेतों के आस-पास आग जलाकर धुआं करें इससे तापमान बढ़ जाता है तथा पाला नहीं पड़ता। शाम को सिंचाई करने से भी पाले से फसल सुरक्षित रहती है।
वर्मीकम्पोस्ट (मिट्टी स्वास्थ्यवर्द्धक): वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए उचित तापमान 28.37 डिग्री से ग्रे. है, परंतु इसे पूरे साल बनाया जा सकता है। सर्दियों में जब खेत पर काम कम होता है तथा पशुशाला का कूड़ा करकट व गोबर काफी मात्रा में उपलब्ध रहता है तो केचुओं की मदद से उच्च गुणवत्ता की वर्मी-कम्पोस्ट बना सकते हैं। इससे मिट्टी की सेहत सुधरेगी व पैदावार में बढ़ोतरी होगी ।
फसलों से जुड़े कार्य
गेहूं: गेहूँ में प्रथम सिंचाई किरीट जड़ अवस्था में करते हैं, जो फसल बोने के 21-24 दिन बाद आती है। गेहूँ के जिन खेतों में चौड़ी पत्ती वाले ही खरपतवार हो, वह 1.25 किग्रा. 2,4-डी सोडियम साल्ट (80%) या फिर 1.5 लीटर 2,4-डी एस्टर (34.6%) प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर बोआई के 30-32 दिन बाद छिड़काव करें। यदि खरपतवार जैसे गुली डंडा का अधिक प्रकोप हो तो किसान भाई मैथावेज्थाजुरान 70% घु.पा.(टिबुलिन) 2 किग्रा./हे. या फिर आइसोप्रोतुरोंन 75% घु. पा. 1.25 किग्रा./हे. की दर से 700 लीटर पानी में मिलाकर बोवाई के लगभग 30 दिन बाद छिड़काव करें।
गेहूं में सिंचाई 27 से 30 दिन के अन्तर पर करते रहें। इस समय सिंचाई अच्छी पैदावार के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि इस माह शिखर जडेÞ तथा कल्ले फूटने की स्थिति रहती है। जनवरी अन्त तक हल्की मिट्टी वाली जमीन में एक बोरा यूरिया (1/3 नत्रजन की आखिरी किस्त) भी दे सकते हैं। दीमक का प्रकोप बारानी क्षेत्रों में होने की संभावना बनी रहती है। ऐसी स्थिति में 2 लीटर लिण्डेन या क्लोरपाइरिफास को 2 लीटर पानी में 20 कि.ग्रा. रेत के साथ मिलाएं तथा गेहूं की खड़ी फसल में बुरकाव करके सिंचाई कर दें। सतही टिड्डा अंकुरित गेहूं के पौधों को जमीन के पास से काटता है। इसीलिए इसे टोका भी कहते हैं। रोकथाम के लिए 10 कि.ग्रा. मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
मोल्या: रोगग्रस्त पौधे पीले व बौने रह जाते है। इसमें फूटाव कम होता है तथा जड़ें छोटी व झाड़ीनुमा हो जाती है। जनवरी-फरवरी में छोटे-छोटे गोलाकार सफेद चमकते हुए मादा सुत्र-कृमि जड़ों पर साफ दिखाई देते है, जो इस रोग की खास पहचान है। यह रोग समय पर बोये गेहूं पर नहीं आता है। संभावित रोगग्रस्त खेतों में 6 कि.ग्रा. एल्डीकार्व या 13 कि.ग्रा. कार्बोपयूरान बीजाई के समय खाद मे मिलाकर डालें। पाले से बचाव के लिए खेतों के आस-पास धुआ करें, जिससे तापमान बढ़ जाता है तथा पाला पड़ने की संभावन कम हो जाती है। अधिक सर्दी वाले दिनों में शाम के समय सिंचाई करने से भी पाले से बचाव होता है।
जौ: जौ में भी दीमक तथा पाले से बचाव गेहूं की तरह ही करें तथा सिंचाई उपलब्ध होने पर अवश्य करें। जस्ते की कमी नजर आने पर गेहूं की तरह ही उपचार करें।
सरसों: सरसों में जनवरी में फलियां बननी शुरू हो जाती हैं, इसलिए खेत में नमी जरूरी है। अत: एक सिंचाई जरूर करें। इसे दाने मोटे व अधिक लगेंगे। जब तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्ससियस तथा नमी 77 प्रतिशत हो जाती है तो चेपा का आक्रमण तेज हो जाता है। चेपा हल्के हरे-पीले रंग का होता है तथा समूह में रहकर कलियों, फूलों व फलियों का रस चूसता है। चेपा रोकथाम के लिए 270 मि.ली. मेटासिस्टास्क या 60 मि.ली. फासफिमिडान 87 एसएल को 270 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 17 दिन बाद छिड़काव फिर से दोहराएं।
चना: सिंचाई की सुविधा होने पर रबी दलहनों में पुष्प आने के पहले सिंचाई करना लाभप्रद होता हैं। चने की फसल में फलीबेधक कीड़ा जिसकी गिडारें हल्के हरें रंग की होती हैं, जो बाद में भूरे रंग की हो जाती हैं। ये फलियों को छेदकर अपने सिर को फलियों के अन्दर डाल कर दानों को खा जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिये फली बनना प्रारम्भ होते ही फेनवेलरेट 20 ई.सी. की 500 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. की 750 मि.ली. मात्रा 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़काव करें। फसल में पहला छिड़काव 50% फूल आने के बाद करें।
मटर: मटर में सिंचाई जरूरत के अनुसार देते रहें। सिप के नियंत्रण के लिए 700 मि.ली.एण्डोसल्फान 37 ई.सी. को 270 लीटर पानी में घोलकर छिड़के। पाउडरी मिल्डयु नियंत्रण के लिए 0.3 प्रतिशत घुलनशील सल्फर का घोल छिड़के।
मटर की फलियां तोड़ने के लिए तैयार हो गई होगी तथा फूल भी आ रहे होंगे। हल्की सिंचाई 10-17 दिन बाद करते रहें। इससे फूल, फलियां तथा कोपलें भी पाले से बची रहेगी।
चारा: बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई बार सिंचाई करते रहें, इससे बढ़वार तुरंत होगी तथा अच्छी गुणवत्ता को चारा मिलता रहेगा। जई में कटाई के बाद आधा बोरा यूरिया भी डालें।
मक्की: इसमें में आवश्यकतानुसार सिंचाई करने से पाले से बचाव के साथ-साथ फसल भी अच्छी होती है।
सुरजमुखी: सुरजमुखी की बीजाई जनवरी में भी हो सकती है। दिसम्बर में बोई फसल में नत्रजन की दूसरी व अंतिम किस्त एक बोरा यूरिया बीजाई के 30 दिन बाद दे दें तथा पहली सिंचाई भी करें। फसल उगने के 17 से 20 दिन बाद गुड़ाई करके खरपतवार निकाल दें ।
टमाटर: टमाटर नवम्बर माह में लगाई नर्सरी जनवरी माह में रोपी जा सकती है, परंतु पाले से बचाव करते रहे। प्रत्येक 10 दिन बाद हल्की सिंचाई देते रहे । टमाटर के खेते में खरपतवार बिल्कुल नहीं होने चाहिए। इन्हें समय-समय पर निकालते रहें। पुरानी फसल में यदि फल छेदक का संक्रमण हो जाए तो खराब फलों को तुरंत तोड़कर तुरंत नष्ट कर दें।
मिर्च: मिर्च नवम्बर माह में लगाई गई नर्सरी जनवरी में रोपी जा सकती है। लाईनों व पौधों में 18 ईच का फासला रखें। फैलने वाली किस्मों में फसला 24 ईच तक बढ़ा दें। रोपाई से पहले खेत में 100 किवंटन गोबर की सड़ी-गली खाद 1 बोरा यूरिया (1/2 नेत्रजन की दूसरी किस्त) 1.7 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 बोरा म्युरेट आफ पोटाश डालें। सर्दियों में 10-17 दिन बाद हल्की सिंचाई से फूल व फल गिरते नहीं हैं व फसल पाले से भी बची रहती है।
फ्रेचबीन: इसे सभी प्रकार की मिट्टियों में उगया जा सकता है । मैदानी क्षेत्रों में 20 से 30 जनवरी तक बोया जा सकती है। झाड़ीनुमा किस्मों कोनटनडर व पूसा सरवती का 37 कि.ग्रा. बीज को 2 फुट लाईनों में तथा 8 ईच पौधों में दूरी पर लगाएं। लम्बी ऊची किस्में कैन्टुकी व हेमलता के 17 कि.ग्रा. बीज को 3 फुट लाईनों में तथा 1 फुट पौधे में दूरी पर लगाएं। बेले चढ़ने के लिए लकड़ी या लोहे के खम्बे लगाएं। बीजाई से पहले खेत में 100 किवटल गोबर की सड़ी-गली खाद, 4 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट, 1 बोरा म्युरेट आफ पोटाश तथा 1 बोरा यूरिया डालें। पहली सिंचाई, बीजाई के 17 दिन बाद करें।
आलू: आलू की फसल में जब पत्तियां व तने पीले पड़ने लगे तो उन्हें काट दें तथा 10-17 दिन बाद मिट्टी खोदकर आलू निकाल लें। इससे आलू काफी देर तक खराब नहीं होता।
फल: आम, अमरुद, अंगूर, निम्बू जाति के बागों में साफ-सफाई, गुड़ाई, काट-छाट, खाद देने का काम जनवरी में कर सकते है। कटाई-छटाई में पुरानी बीमार व सूखी टहनियां निकाल दें तथा फंफूद नाशक 0.3 प्रतिशत कापर आॅक्सीक्लाराइड स्प्रे करें। जनवरी में अंगूर, आडू, अनुचा, अनार व नाशपाती के पेड़ लगाने के लिए सर्वोत्तम समय है।
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