(Fenugreek Cultivation)
मेथी ‘लिग्यूमनस’ परिवार से संबंधित है। यह पूरे देश में उगाई जाने वाली बहुत आम फसल है। इसके पत्ते सब्जी के तौर पर और बीज स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। मेथी के पत्तों और बीजों के औषधिय गुण भी हैं, जो कि रक्तचाप और कोलैस्ट्रोल को कम करने में सहायक होते हैं। इसे चारे के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। भारत में राज्यस्थान मुख्य मेथी उत्पादक राज्य है। मध्य प्रदेश, तामिलनाडू, राज्यस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पंजाब अन्य मेथी उत्पादक राज्य हैं।
जलवायु-
तापमान-15-28 डिग्री सेल्सियस
वर्षा- 50-75 सेमी.
बिजाई के समय तापमान- 22-28 डिग्री सेल्सियस
कटाई के समय तापमान- 15-20 डिग्री सेल्सियस
मिट्टी-
इसे सभी प्रकार की मिट्टी जिनमें कार्बनिक पदार्थ उच्च मात्रा में हो, उगाया जा सकता है पर यह अच्छे निकास वाली बालुई और रेतली बालुई मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। यह मिट्टी की 5.3 से 8.2 पीएच को सहन कर सकती है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार-
एमएल 150: इसके पौधे के पत्ते गहरे हरे और अधिक फलियां होती हैं। इसके बीज चमकदार, पीले और मोटे होते हैं। इसे चारे के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। इसकी औसतन पैदावार 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
दूसरे राज्यों की किस्में-
अन्य व्यापारिक किस्में : कसुरी, मेथी नं. 47, सीओ 1, हिसार सोनाली, मेथी नं. 14
एचएम 219: यह अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह पत्तों के सफेद धब्बे रोग की प्रतिरोधक है।
जमीन की तैयारी-
मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो-तीन बार जोताई करें उसके बाद सुहागे की सहायता से जमीन को समतल करें। आखिरी जोताई के समय 10-15 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद डालें। बिजाई के लिए 3७2 मीटर समतल बीज बैड तैयार करें।
बिजाई का समय-
इस फसल की बिजाई के लिए अक्तूबर का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह अच्छा समय है।
फासला-
पंक्ति से पंक्ति का फासला 22.5 सैं.मी का प्रयोग करें।
बीज की गहराई-
बैड पर 3-4 सैं.मी. की गहराई पर बीज बोयें।
बिजाई का ढंग-
इसकी बिजाई हाथ से छींटे द्वारा की जाती है।
बीज की मात्रा-
एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करें।
फसली चक्र-
मेथी के साथ खरीफ फसलें जैसे धान, मक्की, हरी मूंग और हरे चारे वाली फसलें उगाई जा सकती हैं।
बीज का उपचार-
बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद एजोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडरमा विराइड 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें।
फसल की कटाई-
सब्जी के तौर पर उपयोग के लिए इस फसल की कटाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद करें। बीज प्राप्त करने के लिए इसकी कटाई बिजाई के 90-100 दिनों के बाद करें। दानों के लिए इसकी कटाई निचले पत्तों के पीले होने और झड़ने पर और फलियों के पीले रंग के होने पर करें। कटाई के लिए दरांती का प्रयोग करें।
कटाई के बाद-
कटाई के बाद फसल की गठरी बनाकर बांध लें और 6-7 दिन सूरज की रोशनी में रखें। अच्छी तरह से सूखने पर इसकी छंटाई करें, फिर सफाई करके ग्रेडिंग करें।
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