डेरे की छान-बीन करने आए पुलिस वाले को मस्ताना जी ने कैसे हैरान कर दिया?

‘‘भाई! जिस जगह पर प्रेम बैठा है उत्थे परमेश्वर आप हुंदा है क्योंकि मालिक और प्रेम में कोई भेद नहीं है। मालिक प्रेम है और प्रेम मालिक है। अज असीं बारां साल नोट, सोना, चांदी, कपड़े, लत्ते, कुत्तों को सोना और खोतों (गधों) को बूंदी, बैलों को, सांडों को, इट्टां ढोंदे हैन, भाई चादरां ते पाओ इह भी खावन सतगुरु के हुक्म से। तो ऐसी सावण शाही मेहर उस्ताद से मिली है जो अंगल (उंगली) रखणे किसी को आज तक न दिया। एक पक्का आदमी आया पक्का। सारे हिन्दुस्तान में पक्का। बड़ा मन्नेआ (मशहूर) आदमी था पर प्राइवेट खुफिया पुलिस ब्योरो एजेन्सी का था। उह बोलेआ मेरे को पंज मिंट अन्दर मस्ताना जी के पास ले चलो। चलो भाई! लिआओ, दिल खुश होवे। बोलेआ कि मैं आज तक देखदा आया हां पर वाह! वाह! तेरा मस्ताना उत्साद! बल्ले! बल्ले! बल्ले!!! अज तक अंगल ना रखणे दिया। अज बारां तेरां साल लंघ गए। ऐसा काम किसी जुग में न किया। असीं बोलेआ, अभी मारेआ जांदा है, अभी फड़ेआ जांदा है। अभी मारेआ जांदा है, अभी फड़ेआ जांदा है। उधर देखे तां बाग बहारी लगी पड़ी है। असीं बोलेआ, अभी लख रुपये का मकान ढाहेआ, कित्थोंं आएगा? कित्थों बणाएंगा? कौण देता है घोर कलू में? उह तैयार।

वरी! दूसरा ढाह वरी तैयार। असीं बोलेआ अभी फड़ेआ जाएगा। कोई डाका है या कोई चोरी है या कोई रूस से आके हवाई जहाज फैंक जाते हैं या बिलोचिस्तान पाकिस्तान से आते हैं? ऐसा कर-कर हमारा अक्खियां ते मुंह ते छाला पड़ गया। वाह भैणेआ! (हँसकर) हमारा छाला पड़ गया। बोले, ऐसी कोई बला का दिया है परम संतों ने। इन बला को कोई अंगल रखणे देता ही नहीं। कभी ना सुणा कि किसे ने कभी अंगल रखी! पिन्न-पिन्न (मांग-मांग) के दुनिया को ठग्गों का पूरा (गुजारा) नहीं पड़ता। तो इह सार्इं अन्दर वाला जो उस्ताद है परम संतों के बिना नहीं मिलता। इह जो अन्दर गुरुदेव बैठा है, इह पूरे उस्तााद (मुर्शिदे-कामिल पूरे गुरु) से मिलता है। जो अन्दर से आपणे मालिक को खुश कर लेगा। फिर उह कोई कसर कमी नहीं छड्डेगा। झोलियां भर पूरा कर देंगा। बाग बहारी लगा देंगा ते मालिक मिले घर हसदा।’’

परम पूजनीय हजूर महाराज जी फरमाते हैं, ‘‘जो लोग यह कहते हैं कि सच्चा सौदा में लिया तो कुछ जाता नहीं है फिर इतना रुपया आता कहां से है, जो इतना खर्चा हो रहा है, कैसे चलता है। तो भाई! पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज के उपरोक्त वचनों से स्पष्ट है कि देने वाला वो मालिक सब के अन्दर बैठा है। इन्सान मेहनत करे जो कि इन्सान का धर्म है। यहां पर दरबार के सत ब्रह्मचारी भाई रोजाना 15-18 घंटे परिश्रम करते हैं ब्लाकों से साध-संगत सेवादार भाई भी आकर सेवा में अपना सहयोग देते हैं तो उस मेहनत के द्वारा यहां दरबार की अपनी जमीन में से अनाज फसलें, सब्जियां वगैरह पैदा करते हैं और साधुओं की मेहनत की उसी कमाई से ही ये सब कुछ चलता है।, चल रहा है। लोग तरह-तरह की अफवाएं फैलाते हैं कि विदेशों से धन इकट्ठा करते हैं।

अमेरिका से जहाज आता है और गुफा में डालरों के ढेर उतार जाता है। मालिक की कृपा से अब दुनिया धीरे-धीरे सच्चाई को जानने लगी है। आने वाले समय में दुनिया बहुत जल्दी उपरोक्त सच्चाई को जान जाएगी कि यहां सच्चा सौदा में सब कुछ अपनी मेहनत की, हक हलाल की कमाई और मालिक-प्रभु की दया मेहर से ही चलता है। वो मालिक खुद खुदा, वो परवरदिगार, ओ३म, हरि, अल्लाह, परमात्मा सर्व-सामर्थ सर्वशक्तिमान है। उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। वो कण-कण जर्रे-जर्रे में मौजूद है। ये सच्चा सौदा उसी मालिक, परमात्मा का ही नाम है।’’

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