डॉ संदीप सिंहमार, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार । Bharat VS India Renaming Row: भारत संघ के नाम इंडिया पर वर्तमान में जो बहस चल रही है,इसकी कहानी सदियों पुरानी है। वैसे तो हमारे देश का नाम भारत, हिंदुस्तान से लेकर भारतखंड, भारतवर्ष, आर्यावर्त,हिंदुस्तान और इंडिया चला आया है। लेकिन समय-समय पर इस नाम पर तीखी बहस भी हुई है। पर हर बार देश के नाम को लेकर बहस हुई और वही फाइल बंद हो गई। लेकिन इस बार इंडिया शब्द को लेकर लंबी बहस छिड़ गई है। वर्ल्ड हिस्ट्री वेबसाइट के अनुसार 300 ईसा पूर्व पहली बार यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने सिंधु नदी के पर के क्षेत्र के लिए इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया था। यह भी माना जाता है की सिंधु नदी को ग्रीक भाषा में सिंधु नाम से पुकारते थे। यह सिंधु शब्द लैटिन भाषा का है।
इंडिया को स्वर्ग जैसा बताया | India VS Bharat Row
यूनान के इतिहासकार हिरोटोज ने 440 ईसा पूर्व इंडिया शब्द का इस्तेमाल किया था। उन्होंने तुर्की और ईरान से इंडिया की तुलना करते हुए कहा था कि इंडिया एक स्वर्ग जैसा है। जहां की मिट्टी बहुत उपजाऊ है और इस क्षेत्र में काफी ज्यादा आबादी रहती है इसलिए इसको इंडिया कहा जाना उचित है।
ईस्ट इंडिया कंपनी का असर
इसके बाद 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में जब से व्यापार शुरू किया तो बड़े स्तर पर इसका असर भारत में देखने को मिला। क्योंकि अंग्रेज़ कंपनी के साथ-साथ भारत को भी इंडिया कहते थे। अंग्रेजों के असर की वजह से रियासतों के राजाओं ने भी अपने राज्यों में भारत नाम बोलने के लिए इंडिया शब्द का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। 1857 ई तक भारत के एक बहुत बड़े क्षेत्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया था। यही एक वजह रही की 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने अपना आधिपत्य स्थापित करते हुए उन सभी क्षेत्रों पर अधिकार जमा लिया जो ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आते थे। इस समय अंग्रेजों ने इंडिया का नाम इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसी के साथ ही इंडिया शब्द भारत के लिए देश और दुनिया में तेजी से बढ़ने लगा। इसके बाद अंग्रेजों ने इंडिया ही कहा।
वैश्विक स्तर पर इंडिया भी अंग्रेजों की देंन | India VS Bharat Row
अंग्रेजों ने कभी भी भारत नहीं कहा। इतना ही नहीं ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ-साथ वैश्विक तौर पर भी भारत का नाम इंडिया लिखना शुरू कर दिया। तभी से लेकर आज तक इंडिया बोले जाने लगा। दिन बीतने के साथ-साथ देश को स्वतंत्र करवाने के लिए विभिन्न प्रकार के स्वतंत्रता आंदोलन भी चले। इस दौरान देश के क्रांतिकारियों ने इंडिया नहीं बल्कि हिंदुस्तान या भारत शब्द का ही प्रयोग किया। दिन वह भी आ गया जब भारत को स्वतंत्रता दी जानी थी।
स्वतंत्रता के बाद भी इंडिया को स्वीकार किया
जब देश स्वतंत्र हुआ तब भी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इंडिया शब्द को स्वीकार किया था। देश स्वतंत्र होने के बाद भारत का एक मूल संविधान लिखा गया। अब समझना यह होगा कि जिस इंडिया शब्द का आज विरोध हो रहा है।
भारत के संविधान का मूल रूप अंग्रेजी भाषा मे होना भी एक कारण
भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया था। उस समय जो भी संविधान का ड्राफ्ट पेश किया गया और बहस के दौरान जो भी प्रस्ताव रखे गए वह सभी अंग्रेजी भाषा में थे। संविधान सभा की बहस के दौरान 17 सितंबर 1949 को संघ का नाम और राज्य क्षेत्र खंड चर्चा के लिए पेश हुआ। उस वक्त जैसे ही संविधान का अनुच्छेद एक पढ़ा गया। India,that is Bharat,shall be a Union of States, संविधान सभा में इसे लेकर काफी मतभेद भी नजर आए।
भारत, जिसका अंग्रेजी में नाम इंडिया है
उस वक्त फारवर्ड ब्लाक के सदस्य हरि विष्णु कामथ ने अंबेडकर कमेटी के उसे मसौदे पर आपत्ति जताई, जिसमें देश के नाम इंडिया और भारत थे। कामथ ने यह भी कहा था इंडिया दैट इज भारत कहना बेढंगा होगा। भारत की संविधान प्रारूप समिति ने भी माना कि संविधान लिखने के दौरान कई प्रकार की भूल हुई है। इसे भी एक भूल मान लेना चाहिए। तब उन्होंने संशोधन प्रस्ताव में कहा कि इसे ऐसे किया जा सकता है, भारत जिसका अंग्रेजी में नाम इंडिया है। अब से लेकर अब तक भारत का हिंदी में नाम भारत व अंग्रेजी में नाम इंडिया चला रहा है।
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अब कैसे शुरू हुआ विवाद?
भारत की राजधानी दिल्ली में 9 व 10 सितंबर को G-20 सम्मेलन होने जा रहा है। G-20 में शामिल होने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन समेत 20 राष्ट्राध्यक्षों को न्यौता दिया गया है। G-20 की रात्रि बहुत के आमंत्रण में सरकार ने ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के स्थान पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिख दिया। बस इसी बात को लेकर विवाद शुरू हो गया। इसको महज एक राजनीतिक मुद्दे के तौर पर देखा जा रहा है। क्योंकि हाल ही में कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों ने मिलकर चुनाव लड़ने के उद्देश्य से एकत्रित होकर अपने संगठन का नाम I.N.D.I.A. रखा था। बेशक हर अल्फाबेट के बाद फुल स्टॉप लगाया गया हो, लेकिन फिर भी इसका उच्चारण इंडिया ही बन रहा है। तब से केंद्र सरकार ने इंडिया नाम पर जोर देना बंद कर कर भारत कहना शुरू कर दिया।
इसकी आधिकारिक शुरुआत G-20 के रात्रिभोज आमंत्रण से शुरू भी हो गई। यह पहला मौका नहीं है जब इंडिया शब्द पर एतराज लगाया गया हो। इससे पहले भी 2012 में सब केंद्र में डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार थी तब कांग्रेस के ही सांसद रहे शांताराम नाईक ने भी राज्यसभा में एक बिल पेश कर संविधान की प्रस्तावना के अनुच्छेद एक में और संविधान में जहां-जहां इंडिया शब्द का उपयोग हुआ हो, उसे बदलकर भारत करने की मांग की थी। इसके बाद 2014 में योगी आदित्यनाथ ने भी एक निजी बिल पेश कर इंडिया के स्थान पर हिंदुस्तान नाम रखने की बात कही थी।
भारत लिखना गैर-संवैधानिक नहीं
भारत के संविधान की मूल प्रस्तावना के अनुसार भारत देश को सरकारी या निजी तौर पर चाहे भारत कहें या इंडिया इनमें से कोई भी गैर-संवैधानिक नहीं है। भारत का मूल संविधान अंग्रेजी में लिखा गया है। इसके आर्टिकल 1(1) में लिखा है-‘India,that is Bharat,shall be a Union of States’। भारतीय संविधान की हिंदी कॉपी में भी लिखा है- भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा। इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे देश का नाम भारत व इंडिया दोनों है। इन दोनों का इस्तेमाल करना संवैधानिक है। अगर इन दोनों नाम के अलावा कोई हिंदुस्तान या कोई और नाम प्रयुक्त करता है तो उसे संविधान के खिलाफ माना जाएगा।
2020 में सुप्रीम कोर्ट में भी दायर की गई थी याचिका
इंडिया से भारत नाम बदलने के लिए जून 2020 में देश की सर्वोच्च अदालत में भी एक याचिका दायर की गई थी। याचिककर्ता का तर्क था कि इंडिया ग्रीक शब्द इंडिका से आया है। इसलिए इस नाम को हटाया जाना चाहिए तब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि इस मामले को संबंधित मंत्रालय में भेजा जाना चाहिए और याचिका करता को अपनी बात मंत्रालय के समक्ष रखनी चाहिए।
इंडिया नाम हटाने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा
भारत के संविधान में वर्णित India,that is Bharat से अंग्रेजी नाम इंडिया खत्म करने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है। संविधान संशोधन की प्रक्रिया आर्टिकल 368 में साफ तौर पर दी गई है। देश की संसद के पास यह शक्ति है कि वह कभी भी संविधान में संशोधन कर सकती है। इसके लिए उन्हें जहां एक विधायक लाना पड़ेगा और दो तिहाई बहुमत से इस विधेयक को पारित करवाना पड़ेगा। तब जाकर संविधान से इंडिया शब्द हटाया जा सकता है। लेकिन इस मामले में भी पेंच फंस सकता है।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने 13 जजों की खंडपीठ ने केशवानंद भारती केस में ऐतिहासिक फैसला दिया था कि संविधान संशोधन से संविधान के बुनियादी ढांचे में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो गैर हिंदी भाषी राज्य इसका खुलकर विरोध कर सकते हैं। जैसे अभी भारत सरकार ने इंडियन पेनल कोड को बदलकर भारतीय न्याय संहिता लिखा तो इसका भी गैर हिंदी राज्यों में अब तक विरोध हो रहा है। सीधे तौर पर कह सकते हैं कि भारत देश का नाम जिसको अंग्रेजी में इंडिया कहते हैं। इसको बदलना केंद्र सरकार के लिए भी इतना आसान काम नहीं है।