सांसद अरोड़ा ने नागरिकों को उनके अधिकारियों सबंधी जागरुक करने पर दिया जोर
- देश में ये अधिकार होने के बावजूद भी हो रही ऐसी घटनाएं
लुधियाना। (सच कहूँ/रघबीर सिंह) आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद (राज्यसभा) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर पार्लियामेंट्री एडहॉक कमेटी सदस्य संजीव अरोड़ा ने जनता के बीच जागरुकता पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि मरीजों के अधिकारों के चार्टर के अनुसार, लोगों को यह अधिकार है कि अगर किसी मृतक का अस्पताल का बिल नहीं चुकाया जाता है, तो भी अस्पताल द्वारा शव को बंधक नहीं बनाया जा सकता है। शनिवार को यहां एक बयान में अरोड़ा ने कहा कि देश में यह अधिकार होने के बावजूद भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने सभी जिलों के प्रशासन को सलाह देते हूए कहा कि नागरिकों को इस अधिकार के बारे में पता होना चाहिए और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानून के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
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अरोड़ा ने कहा कि इस संबंध में एक प्रश्न हाल ही में हरियाणा के उनके सहयोगी कार्तिकेय शर्मा, सांसद (राज्यसभा) द्वारा हाल ही में हुए राज्यसभा सत्र में उठाया गया था। जवाब में, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने जवाब दिया था कि क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट्स (रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2010 के अंतर्गत एक वैधानिक संस्था नेशनल कौंसिल फॉर क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट्स, द्वारा स्वीकृत द पेशेंट्स राइट्स चार्टर सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है। उक्त चार्टर के दिशा-निदेर्शों के अनुसार, अस्पतालों द्वारा किसी भी कारण से किसी रोगी के मृत शरीर को देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उपरोक्त चार्टर को अपनाने और लागू करने के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा किया गया है, ताकि क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट्स में सुचारु और सौहार्दपूर्ण वातावरण सुनिश्चित करते हुए रोगियों की शिकायतों और चिंताओं को दूर किया जा सके। राज्य/यूनियन टेरिटरी (यूटी) सरकारें अस्पतालों द्वारा शोषण की घटनाओं से मृतक के परिवार को बचाने के लिए उचित कदम उठाती है।
अरोड़ा ने कहा कि वह सभी जिलों के प्रशासन से यह सुनिश्चित करने के लिए कहेंगे कि चार्टर आॅफ पेशेंट्स राइट्स एंड रेस्पॉन्सिबिलिटीज (जैसा कि नेशनल कौंसिल फॉर क्लीनिकल एस्टाब्लिशमेंट्स द्वारा अप्रूव और 23 अगस्त 2021 को अपडेट किया गया है) सभी अस्पतालों में ठीक से प्रदर्शित किया जाए ताकि राज्य भर के अस्पतालों द्वारा मरीजों के अधिकार का कोई उल्लंघन न हो । उन्होंने स्पष्ट रुप से कहा कि वह इस संबंध में जन जागरुकता पैदा करने में हर तरह की मदद करने के लिए तैयार हैं। अरोड़ा ने कहा कि मरीज के शव को रोक लेना मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है।
मृत व्यक्ति के शरीर को बंधक बनाना गैरकानूनी: संधू
पूछे जाने पर, लुधियाना के वकील और पंजाब के पूर्व एडिशनल एडवोकेट जनरल, हरप्रीत संधू ने कहा कि एक अस्पताल में एक मृत शरीर को रोक कर रखना भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 340 के तहत गलत तरीके से बंधक बनाना परिभाषित होगा। संधू ने यह भी कहा कि अस्पतालों के पास अपने बिलों का भुगतान करने में विफल रहने के लिए शव को रखने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। केवल इसलिए कि अस्पताल मरीजों को उत्कृष्ट उपचार दे रहा है, यह शव को हिरासत में रखने का कोई आधार नहीं है।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 39 (ई), 41 और 43 के तहत गारंटीकृत डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स के साथ पढ़ा गया अनुच्छेद 21 स्वास्थ्य और चिकित्सा देखभाल के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाता है। भारतीय संविधान में निहित अधिकारों के बावजूद, अस्पताल अक्सर बिलों का भुगतान न करने पर मृत व्यक्ति के शरीर को बंधक बना लेते हैं। यह प्रथा न केवल अवैध है, बल्कि यह बड़े पैमाने पर जनता के लिए पूरी तरह से बर्बर और अत्याचारी भी है। संधू ने दोहराया, इस लिए, कानून स्पष्ट है और अस्पताल किसी भी शव को बंधक बना कर अपने पास नहीं रख सकते क्योंकि यह गैरकानूनी है और भारतीय दंड संहिता की धारा 340 के तहत दंडनीय अपराध है।
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