हम आज 71वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियों के बावजूद यदि हम फिर भी पिछड़े हुए हैं, तो इसकी मुख्य वजह नागरिकों में आपसी ईमानदारी, सद्भावना व एकता की कमी है।
भारत के पास विकास के लिए आवश्यक सभी संसाधन उपलब्ध हैं। भारतीय लोग प्रतिभावान व मेहनती हैं। हजारों ऐसे प्रतिभावान व्यापारी हैं जिन्होंने 40-50 हजार से अपना व्यापार शुरू किया जो आज हजारों करोड़ रुपए के आर्थिक साम्राज्य के मालिक बन चुके हैं।
साधारण व्यक्ति आज बड़े स्तर पर व्यापार के माध्यम से विदेशों में अरबों रूपए का निवेश कर रहे हैं। इंजीनियर, चिकित्सक व वैज्ञानिकों सहित अनेक प्रतिभावान भारतीयों का विश्व में दबदबा है। मेडिकल, इंजीनियरिंग व आईएएस परीक्षाओं में बिहार जैसे पिछड़े राज्य भी पीछे नहीं है।
सोचने वाली बात है कि फिर कमी कहां है? यदि कमियों की जांच की जाए तो आमजन में आपसी ईमानदारी, सद्भावना व एकता ही सबसे बड़ी कमी नजर आती है, जोकि देश को पीछे धकेल रही है। ईमानदारी का जज्बा कम हो रहा है, प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर नेताओं में सरकारी पैसे का दुरुपयोग करने की प्रथा बन चुकी है। यदि पूरा पैसा योजनाओं पर खर्च किया जाए, तब तरक्की का पहिया तेजी से घूमेगा।
लोग ईमानदारी से पूरा टैक्स अदा करें। बिजली चोरी न करें तो देश के विकास में पैसे की कोई कमी नहीं रहेगी। धार्मिक सद्भावना की कमी से उपजी हिंसा को रोकने के लिए हर साल अरबों रूपए बर्बाद हो रहे हैं। छोटी सी बात को लेकर दो संप्रदायों में खूनी संघर्ष हो जाता है। पड़ोसियों से शुरू हुआ झगड़ा सांप्रदायिक दंगों का रूप धारण कर लेता है।
ऐसे खूनी संघर्ष को रोकने के लिए सरकार को कानून में संशोधन करना पड़ रहा है, सख्त धाराएं जोड़ी जा रही हैं। आजादी के 70 साल बाद भी लोग सांप्रदायिकता की संकुचित विचारधारा में जकड़े हुए हैं। दूसरी तरफ विदेशी ताकतें भी देश की तरक्की में बाधा बन रही हैं। एकता की कमी के कारण विदेशी आतंकवाद को भारत में पनाह मिल रही है।
आतंकवादियों को यही बात यहां खींच लाती है कि भारत के देश विरोधी तत्व उनका साथ देंगे। यदि प्रत्येक व्यक्ति में देश भक्ति का जज्बा पैदा हो जाए, तब आतंकवाद को देश से मिटाया जा सकता है। अमन-शांति से ही देश की तरक्की संभव है।
किसी देश की तरक्की वहां की महंगी मशीनरी नहीं बल्कि उन्हें चलाने वाले दिमाग व विचारधारा पर निर्भर करती है। ईमानदार नागरिक ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं। भौतिक व आर्थिक तरक्की नैतिकता से ही संभव है। यह बात राजनेताओं से लेकर आम आदमी को अपने दिलो-दिमाग में बिठानी होगी।
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