घटना उस समय की है, जब पं. गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनकी गिनती देश के सबसे ईमानदार राजनेताओं में होती थी। वह कोई विशेष सुविधा नहीं लेते थे न ही कभी सरकारी पैसे से अपना कोई निजी काम करते थे। एक बार पंतजी ने सरकारी बैठक की। उसमें चाय नाश्ते का प्रबंध किया गया था।
जब उसका बिल पास होने के लिए आया तो उसमें हिसाब में छह रुपये और बारह आने लिखे हुए थे। पंत जी ने बिल पास करने से मना कर दिया। जब उनसे इस बिल को पास न करने का कारण पूछा गया तो वह बोले, ‘सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल नाश्ता मंगवाने वाले व्यक्ति को स्वयं चुकाना चाहिए। हां, चाय का बिल अवश्य पास हो सकता है।’
अधिकारियों ने उनसे कहा कि कभी-कभी चाय के साथ नाश्ता मंगवाने में कोई हर्ज नहीं है। ऐसे में इसे पास करने से कोई गुनाह नहीं होगा। उस दिन चाय के साथ नाश्ता पंत जी की बैठक में आया था। कुछ सोचकर पंतजी ने अपनी जेब से रुपये निकाले और बोले, ‘चाय का बिल पास हो सकता है लेकिन नाश्ते का नहीं। नाश्ते का बिल मैं अदा करूंगा।
नाश्ते पर हुए खर्च को मैं सरकारी खजाने से चुकाने की इजाजत कतई नहीं दे सकता। उस खजाने पर जनता और देश का हक है, हम मंत्रियों का नहीं।’ यह सुनकर सभी अधिकारी दंग रह गए। अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि सरकारी नियमों की अवहेलना नहीं की जाएगी।’ यह सुनकर पंत जी संतुष्ट हुए और अपने काम में लग गए।
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