डॉ. प्रतीप बनर्जी ने किया दावा
वाराणसी (एजेंसी)। होम्योपैथी की नई उपचार विधि से 21वीं सदी के जानलेवा बीमारी कैंसर का सस्ता इलाज ढूंढने में बड़ी सफलता के संकेत मिले हैं (Homeopathy cures cancer)। दस सालों में 50,000 से अधिक मरीजों के इलाज एवं रोग संबंधित शोध में बेहद सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जो गरीब से गरीब लोगों के इलाज का पीड़ा रहित, सस्ता और आसान रास्ता बताते हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में 13-16 फरवरी तक ‘इंरनेशनल ट्रांस्लेशनल कैंसर रिसर्च कांफ्रेंस’ चल रहा है।
इसमें होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जाने-माने विशेषज्ञ एवं डॉ. प्रतीप बनर्जी ने ऐलोपैथी के विशेज्ञों के बीच कैंसर के इलाज से संबंधित होम्योपैथी के अपने गत दस वर्षों के अध्ययन पर आधारित एक शोध पत्र पेश किया। उन्होंने 20 से 75 वर्ष के रोगियों का हवाला दिया है। उनका कहना है कि होम्योपैथी दवाओं से अधिकांश कैंसर रोगियों का पीड़ा रहित इलाज करने में उन्हें बेहद साकारात्मक परिणाम मिले हैं। इस कांफ्रेंस में होम्योपैथी चिकित्सा एवं रिसर्च के क्षेत्र से भाग लेने वाले इकलौते विशेषज्ञ अतिथि हैं।
कुछ खास दवाओं के संयोग से किये गए परीक्षण
- उन्होंने दावा करते हुए कहा कि पीबीएचआरएफ ने कुछ खास दवाओं के संयोग से किये गए परीक्षण के आधार पर ‘बनर्जी प्रोटोकॉल’ तैयार किया है।
- जिसे अमेरिका की राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआई) ने विस्तृत जांच के बाद अपनी स्वीकृति प्रदान की है।
- एनसीआई ने स्वीकृति प्रदान करने से पहले उन्हें कैंसर के संबंधित उन रोगियों एवं उनके इलाज से जुड़े आंकड़े व्यवस्थति तरीके से रखने को कहा था।
- उन्होंने बनर्जी प्रोटोकॉल का ड्रेड मार्क रजिस्ट्रेशन करवाया। और इससे संबंधित किताब तैयार की है, जिसमें विस्तार से जानकारी दी गई है।
ये तथ्य किए पेश
- डॉ. प्रतीप बनर्जी कहा कि कोलकता स्थित पीबीएचआरएफ में वर्ष 2002 से अब तक आने वाले 50,000 से अधिक कैंसर रोगियों के आंकड़े उपलब्ध होने का दावा किया है। उनमें से दस वर्षों (वर्ष 2009 से 2018) के दौरान ‘बनर्जी प्रोटोकॉल’ के जरिये कैंसर के विभिन्न प्रकार के पांच हजार मरीजों के इलाज का अनुभव साझा किया।
- उन्होंने दिमागी (ब्रेन) कैंसर के 5,762 रोगियों पर किये गए अपने अध्ययन (इलाज) में 64 फीसदी में बेहद सकारात्मक बदलाव पाया। जबकि 29 फीसदी में कैंसर सेल्स का फैलाव स्थिर करने में सफलता मिली। छह फीसदी में कोई असर नहीं देखा एवं एक फीसदी ने बीच में ही इलाज छोड़ दिया।
- डॉ. बनर्जी ने 32,107 मरीजों इलाज के दौरान 53 फीसदी की स्थिति में बेहद सकारात्मक बदलाव देखने को मिले। जबकि 37 फीसदी रोगियों में कैंसर सेल्स का विस्तार सीमित हो गये। नौ फीसदी को कोई लाभ नहीं हुआ। जबकि एक फीसदी ने बीच में ही इलाज छोड़ दिया।
- उन्होंने बताया कि फेफड़े के कैंसर जैसे गंभीर रोगी के इलाज में भी भारी सफलता दर्ज की गई है। ऐसे गंभीर 3,708 रोगियों में 47 फीसदी में बड़ा सकारात्मक बदलाव आया। जबकि 38 फीसदी में कैंसर सेल्स के फैलाव रुक गय। 14 फीसदी को कोई लाभ नहीं हुआ। जबकि एक फीसदी ने बीच में ही इलाज छोड़ दिया।
- डॉ. बनर्जी ने कहा कि फेफड़े के कैंसर बेहद खतरनाक माने जाते हैं तथा इस मामले में अमेरिका जैसे विकसित देश में भी सिर्फ 13 फीसदी रोगियों के छह माह तक बचने की संभावना रहती। जबकि एक साल तक बचने की संभावना लगभग पूरी तरह से समाप्त हो जाती है।
- उन्होंने हड्डियों के कैंसर के 230 मामलों के अध्ययन में 43 फीसदी मरीजों के स्वास्थ्य में बेहतरी देखने को मिली। जबकि 32 फीसदी की स्थिति स्थिर पायी गई। 24 फीसदी को कोई लाभ नहीं मिला और एक फीसदी ने इलाज बीच में ही छोड़ दिया।
ऐसे करते हैं उपचार
डॉ. बनर्जी ने कहा, ‘हम इलाज के पुराने होम्योपैथी के तरीके नहीं अपनाते बल्कि अपने परिवार के इस क्षेत्र में 150 साल के अनुभवों के साथ-साथ उपचार के लिए विकसित की गई एक नई पद्धति से कैंसर अलग-अलग प्रकारों के लिए विशिष्ट दावाएं निर्धारित करते हैं। दवाएं होम्योपैथी की दी जाती है, जबकि बीमारियों की स्थिति जाने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफी, मैग्रेटिक रिसोरेंस इमेजिंग, कैंसर बायोमार्कर जैसे उन्नत जांच-परीक्षण वाले उपकरणों के इस्तेमाल से वास्तविक स्थिति का पता लगाया जाता है। उन्होंने कहा, ‘किसी कैंसर रोगी की आयु बढ़ाना किसी आदमी के बस की बात नहीं है। लेकिन बीमारी की पीड़ा झेल रहे ऐसे लोगों को होम्योपैथी पद्धति से बिना परेशानी जिंदगी बेहतर और काफी हद तक सामान्य की जा सकती है।’