यह डेरा सरसा से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस डेरे में पहुंचने के लिए सरसा-डबवाली जीटी रोड से गांव पन्नीवाला मोटा तथा ओढ़ा से लिंक सड़क जाती है। परम पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज से नामलेवा व जिंदगी भर पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की सोहबत में रहने वाले लाला नेकी राम जी इसी गांव के रहने वाले थे। Shah Mastana Ji
जब पूजनीय हजूर बाबा सावण सिंह महाराज ने पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज को अपनी रूहानी ताकत व बख्शिशों से नवाजकर रूहों को तारने का कार्यभार सौंपकर सरसा भेजा तो पूज्य हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज ने लाला नेकी राम सहित सरसा की साध-संगत को पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की सोहबत करने का हुक्म फरमाया कि सारी साध-संगत मस्ताना शाह के दर्शन करे और उन्हीं की सोहबत करे तथा लाला नेकी राम सहित पांच सत्संगी भाईयों की पूजनीय बेपरवाह जी की सेवा में पक्की ड्यूटी भी लगा दी।
लाला नेकी राम जी ने अपने गांव में डेरा बनाने की प्रार्थना की
सन् 1952 की बात है एक दिन लाला नेकी राम जी ने पूजनीय बेपरवाह जी की पावन हजूरी में अपने गांव में डेरा बनाने की प्रार्थना की। उससे पूर्व उसने गांव की साध-संगत की सहमति ले ली थी। उसने प्रार्थना की ‘‘सांईं जी! आप नूहियां वाली में अपनी रहमत फरमाएं और वहां साध-संगत को डेरा बनाने की आज्ञा प्रदान करें।’’ पूजनीय शाह मस्ताना जी साध-संगत को दिए वचनानुसार गांव नुहियां वाली में पधारे और वहां मजलिस लगाकर सारी साध-संगत को कोक (पका हुआ बड़ा रोट) का प्रसाद बंटवाया तथा अगले दिन डेरा बनाने की सेवा शुरू हो गई। सबसे पहले पानी जमा करने के लिए 12 फुट लम्बी, 12 फुट चौड़ी और 12 फुट गहरी डिग्गी खोदकर उसे पक्का किया गया। Shah Mastana Ji
उसने अपने मुर्शिद का हुक्म सत् वचन’ कहकर माना
यह डिग्गी आज भी मौजूद है। पहले डेरे के कमरे कच्ची ईटों से बनाए गए जो बाद में गिराकर पक्के कर दिए गए और चारदीवारी भी पक्की कर दी गई। पूजनीय बेपरवाह जी ने वहां उन दिनों सत्संग भी फरमाया। डेरे का नामकरण करते हुए पूजनीय बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘भाई! इस डेरे का नाम ‘साध-बेला’ रखते हैं क्योंकि नुहियां वाली की साध-संगत का और खासकर नेकी राम जी का अपने मुर्शिद से हार्दिक प्रेम है। उसने अपने मुर्शिद का हुक्म सत् वचन’ कहकर माना है और इस गरीब मस्ताने का साथ निभाया है। इसलिए हमने इनके गांव में पूर्ण संतों, फकीरों की बेला (ठहर) यानि यह डेरा बनाया है। यहां पर कभी-कभी जरूर आया करेंगे।’’
अपने मुर्शिदे कामिल के वचनानुसार परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पहला सत्संग सन् 1982 में फरमाया और एक सत्संग 1988 में फरमाया तथा अपने सत्संंगों के जरिये क्षेत्र के सैकड़ों लोगों को नाम दान बख्श कर मुक्ति प्रदान की। इस डेरे में साध-संगत की सुविधा के लिए 4 कमरे, 2 मंजिला तेरावास, गैरिज, रसोई घर व एक खुला हॉल कमरा बने हुए हैं। शेष खाली जगह में खेती की जाती है। सब्जियां वगैरह उगाई जाती हैं। सतगुरु के हुक्मानुसार सेवादार मिलकर हक हलाल की कमाई करते हैं और इससे होने वाली आमदन को मानवता की भलाई के कार्यों में लगाया जाता है। Shah Mastana Ji
तेरे मकान का एक कंकर लाख रुपये में भी नहीं देंगे