देशभर में व्यापारियों के एक बड़े वर्ग द्वारा जीएसटी के खिलाफ किये जा रहे हड़ताल व विरोध-प्रदर्शन के बीच सरकार ने 1 जुलाई की पूर्व-निर्धारित तिथि से जीएसटी लागू कर दी है। ‘एक देश, एक कर और एक बाजार’ के उद्देश्य पर आधारित वस्तु एवं सेवा कर, यानी ‘जीएसटी’ को देश में आजादी के बाद सबसे बड़े आर्थिक सुधार के तौर पर देखा जा रहा है। लिहाजा, एक भव्य आयोजन के माध्यम से इसे लागू कर इसकी महत्ता देश-दुनिया को बताने की कोशिश की गई है।
आजाद भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब किसी कानून को लागू करने से पूर्व इस तरह का भव्य उद्धाटन समारोह आयोजित किया गया। अंग्रेजों से मिली आजादी की खुशी में 14 अगस्त की रात को इस तरह का आयोजन किया गया था, लेकिन अब 18 अप्रत्यक्ष करों से मिलने वाली आजादी को सरकार ने जश्न का स्वरुप दिया है। हालांकि, दोनों आयोजनों में एक बुनियादी अंतर यह है कि 15 अगस्त से मिलने वाली आजादी को लेकर देश का प्रत्येक नागरिक खुश था, क्योंकि सबने स्वाधीनता की राहत भरी सांस ली थी।
बेशक, वस्तु एवं सेवा कर लागू करना भारत सरकार का एक बड़ा व महत्वपूर्ण कदम है। विश्व के 160 देशों में जीएसटी विभिन्न दरों के साथ लागू किया जा चुका है। जीएसटी की सबसे खास बात यह है कि इसके लागू होने के बाद विभिन्न स्तरों पर कर लगने की बजाय, एकमात्र जीएसटी, अर्थात वस्तु एवं सेवा कर ही उपभोक्ताओं को देय होगी।
इसके साथ ही, वस्तुओं की कीमतों में एकरुपता हो जाएगी। देश के किसी भी प्रदेश में सामान खरीदने पर उपभोक्ताओं को एक समान कीमत चुकानी होगी। जीएसटी आने के बाद बहुत-सी चीजें सस्ती हो जाएंगी, जबकि पूर्व में लगने वाले कर से अधिक जीएसटी लगने की वजह से कुछ वस्तु व सेवाओं का उपभोग महंगा हो जाएगा है।
चिकित्सा एवं शिक्षा, खाद्यान्न, सब्जी व दूध जैसी बुनियादी व अनिवार्य सेवाओं को जीएसटी के दायरे से बाहर ही रखा गया है। इन सबके बीच, सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि टैक्स का पूरा सिस्टम आसान हो जाएगा। देश व देशवासियों को डेढ़ दर्जन से अधिक अप्रत्यक्ष करों से मुक्ति मिल जाएगी। अब लोगों को एकमात्र कर जीएसटी के रुप में देना होगा।
बताया यह भी जा रहा है कि जीएसटी लागू होने के बाद देश की जीडीपी में 1.5 से 2 का इजाफा हो सकता है। जीएसटी से महंगाई घटने की उम्मीद भी लगाई गई है। यह भी तय है कि जीएसटी लागू होने के बाद के शुरूआती कुछ दिनों में कुछ समस्या आ सकती है। लिहाजा, ‘वॉर रुम’ बनाकर इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने भी कमर कस ली है।
जीएसटी से जुड़ा दूसरा पहलू यह भी है कि दिव्यांगों पर इसका कहीं ज्यादा असर पड़ने वाला है। दिव्यांगों द्वारा प्रयुक्त सहायक उपकरणों को जीएसटी के दायरे में लाने से देशभर के दिव्यांगों में घोर निराशा व सरकार के प्रति नाराजगी दिखी है। भारत की करीब 6 फीसदी आबादी दिव्यांग है। 2006 से लेकर अभी तक दिव्यांगों के उपकरण कर-रहित थे।
लेकिन, अब सरकार ने उन उपकरणों पर 5 से लेकर 18 फीसदी जीएसटी लगाने का फैसला किया है। बैसाखी, ट्राईसाइकिल, कृत्रिम अंग, घूमने वाले सहायक उपकरण, पुनर्वास यंत्र और गाड़ी पर 5 फीसद, जबकि ब्रेल पेपर, ब्रेल घड़ियों और श्रवण यंत्रों पर 12 फीसद तथा ब्रेल टाइपराइटर पर 18 फीसद जीएसटी निर्धारित है। ये सभी उपकरण, जो दिव्यांगों के लिए अति आवश्यक होते हैं; अब महंगे हो जाएंगे। इसका असर दिव्यांगों तक इसकी सुलभता, रोजगार, शिक्षा और रोजमर्रा के जीवन पर पड़ना निश्चित है।
जीएसटी का आम जनता व व्यापारियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, परंतु यह आम देखा जाता है कि आमजन के मुकाबले दिव्यांगों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है और वह स्वावलंबी न होकर पराश्रित होता है। जीवन-यापन करने के लिए सरकार स्वयं उन्हें मासिक पेंशन के रुप छोटी धनराशि प्रदान करती है।
ऐसे में, सवाल यह उठता है कि जिन उपकरणों पर सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए थी, उसे जीएसटी के दायरे में क्यों लाया जा रहा है? जबकि सरकारें, स्वयं ऐसे उपकरणों का दिव्यांगों के बीच नि:शुल्क वितरण करती आई हैं। खबर है कि देशभर में हो रहे विरोध के बीच सरकार अब सभी उपकरणों को 5 फीसदी जीएसटी पर लाने पर विचार कर रही है। लेकिन 5 फीसदी भी क्यों? सिनेमा के 100 रुपये तक के टिकट पर 18 प्रतिशत और ब्रेल टाइपराइटर पर भी इतना ही जीएसटी से क्या बोध होता है?
हालांकि हो सकता है कि सरकार के इस फैसले के पीछे अन्यत्र मंशा रही होगी, मगर जो भी हो सरकार को इस तरह के निर्णयों पर पुनर्विचार करना चाहिए। प्राय: सरकार के हर फैसले पर पक्ष व विपक्ष अपनी प्रतिक्रियाएं देता है, ऐसा ही जीएसटी के निर्णय पर भी देखने को मिल रहा है, लेकिन अब जीएसटी पूरे देश में लागू हो चुकी है। अत: आमजन व विपक्ष को सूझबूझ से काम लेना होगा और इस फैसले के उत्तम पक्ष को मानना होगा।
-सुधीर कुमार
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