देश में असमानता की खाई मात्र रोजगार सृजन और महिला-पुरूष के मध्य अधिकारों में ही नहीं है, बल्कि वर्तमान समय में लिंग असमानता की खाई देश में तेजी से पनपती जा रही है। यह देश के समक्ष कटु सत्य साबित हो रहा है, जब देश के नागरिक पश्चिमी सभ्यता और आधुनिकता की चोली ओढ़ने में तनिक नहीं हिचक रहे।
ऐसे में पित्तृसत्तात्मक सोच में भी परिवर्तन होना चाहिए। स्त्री और पुरूष एक ही सिक्के के पहलू है, फिर देश कब तक दकियानूसी और रूढ़िवादिता की चक्की में पिसता रहेगा। बिना स्त्री समाज के समाज में समानता की परिकल्पना आशातीत भी नहीं प्रतीत होती। फिर सदियों पुरानी रूढ़िवादी परंपरा को क्यों ढोया जा रहा है? बालक कुल का वाहक होता है, इस परंपरा को समाज से परित्याग करना होगा।
आज के आधुनिक युग में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, या फिर उनसे कुछ क्षेत्रों में आगे चल रही है। चाहे वह शारीरिक दक्षता का कार्य हो या फिर मानसिक दक्षता का।
लोगों की रूढ़िवादी सोच ने समाज में लैंगिक असमानता की गहरी खाई तैयार कर दी है, जिसको पाटना होगा। इस दिशा में उत्तर प्रदेश की नवगठित सरकार सशक्त कदम उठाते हुए घटते लिंगानुपात पर लगाम लगाने की दिशा में मुखबिर योजना की शुरूआत की है, जोकि समाज में व्याप्त लैंगिक असमानता दूर करने की दिशा में सकारात्मक पहल साबित हो सकती है।
इस मुखबिर योजना के तहत उत्तर प्रदेश सूबे में भ्रूण हत्या के संबंध में जनता से गुप्त सूचना प्राप्त की जाएगी। उसके पश्चात् ऐसे लोगों और संस्थाओं के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी, जो कानूनी व्यवस्था को ठेंगा दिखाकर तकनीक के माध्यम से भ्रूण का पता लगाकर भ्रूण हत्या के सहभागी बनते रहे हैं। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि सर्वप्रथम सूबे की आवाम की रूढ़िवादी अवधारणा में बदलाव लाया जाए, जिससे वे बेटे और बेटियों में भेद करने की भूल न करें।
पिछले वर्ष आई स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक आबादी वाला राज्य, जिसकी प्रजनन दर बिहार के पश्चात् देश में दूसरे पायदान पर है, जिसके ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं औसत तीन बच्चों की मां बनती है, फिर भी ऐसे में उत्तर प्रदेश के भीतर बच्चों के लिंगानुपात में तेजी से असमानता दिख रही थी।
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता था कि सूबे की कार्यपालिका इस दिशा में सुधार के लिए जहमत जोहती प्रतीत हो। रिपोर्ट 2011 के जनसंख्या के आंकडों के मुताबिक उत्तरप्रदेश सूबे में शून्य से छ वर्ष की उम्र के प्रत्येक हजार पर मात्र 902 लड़कियों की संख्या है।
मुखबिर योजना का अहम् उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा एवं स्वास्थ्य उपलब्ध कराना है। इसके साथ इस योजना का उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या रोकना है। इसके अलावा राज्य के निजी अस्पतालों, अल्ट्रासाउंड संस्थानों पर चोरी-छिपे नजर रखी जाएगी। जिससे कि भ्रूण हत्या पर कुछ हद तक काबू पाया जा सके। यह योजना पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत राज्य सरकार ने चालू की है।
इस योजना को सफल बनाने के लिए मुखबिरों को तैयार किया जाएगा, जोकि लिंग की पहचान एवं गर्भपात करवाने वाले व्यक्तियों की जानकारी देंगे। सरकार को इस योजना की सफलता के लिए पिछली चल रही राज्य स्तरीय और केंद्र स्तरीय योजनाओं का भी मूल्यांकन करना चाहिए कि ‘बेटी बचाओ’ योजना से देश के बिगड़ते लिंगानुपात में कितना सुधार आया, क्योंकि मात्र योजनाओं का क्रियान्वयन ही सार्थक परिणाम नहीं दे सकता।
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान को क्रियान्वित करने वाले राष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी समिति के साबू जार्ज के अनुसार हर चौथी लड़की उत्तर प्रदेश में पैदा होती है, इस कारण से समग्र बाल लिंगानुपात कम होने में बड़े राज्यों का हाथ होता है। अत: बड़े राज्यों में जब लिंगानुपात में सुधार होगा, तो देश में समग्र लिंगानुपात अपने-आप सुधर हो जाएगा।
-महेश तिवारी
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