मानवीय संबंधों की मिठास का अहसास कराती चिट्ठियां

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चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है…..और लिखे जो खत तुझे, वो तेरी याद में हजारों रंग के नाारे बन गए…… जैसे गीत हमें कागा पर लिखी उन चिट्ठियों की याद दिलाते हैं, जिनमें सूचनाएँ ही नहीं भावनाओं का इजहार है और गहरी मानवीय संवेदनाएँ हैं। खाकी वर्दी पहने डाकिया जब साईकिल की घंटी बजाते हुए घर में चिट्ठी डाल कर जाता है तो दिलो-दिमाग में लहरें उठने लगती हैं।

आई हुई चिट्ठी को पढ़ने के लिए पूरे परिवार के बड़े-छोटे इकट्ठे हो जाते हैं और चिट्टी को पढ़ने का उत्साह सबके दिलो-दिमाग पर तारी हो जाता है। चिट्ठी का जवाब भी चिट्ठी और चिट्ठियों का अनंत सिलसिला। मोबाईल और इंटरनेट के इस युग में भले ही बहुतों के लिए चिट्ठी-पत्रों और डाक विभाग के लाल बक्से का कोई महत्व ना हो।

मोबाईल पर मैसेज भेजने और इंटरनेट पर चैटिंग करने वाली युवा पीढ़ी को भले ही चिट्ठियां बीते जमाने की बात लगती हों, लेकिन सच्ची बात तो यह है कि डाक हमारी विरासत और जीवन का अभिन्न हिस्सा है। चिट्ठियों के हवाले से हमें अनेक यादगार फिल्में, उपन्यास, कहानियां और साहित्यक रचनाएं प्राप्त हुई हैं।

प्रसिद्ध शख्सियतों के पत्रों में हमारा इतिहास छिपा हुआ है और इस इतिहास को संजोकर रखने की भी जरूरत है और पत्र लेखन संस्कृति को भी पुन: विकसित करने की जरूरत है। विज्ञान और तकनीकी विकास के कारण संचार माध्यमों में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों के बावजूद डाक विभाग द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाई जाने वाली चिट्ठियों का महत्व सदा रहेगा।

सभ्यता के आरम्भ से ही मानव किसी न किसी रूप में पत्र लिखता रहा है। दुनिया का सबसे पुराना ज्ञात पत्र 2009 ईसा पूर्व का बेबीलोन के खण्डहरों से मिला था, जोकि वास्तव में एक महत्वपूर्ण पत्र था। भावनाओं से ओत-प्रोत इस चिट्ठी के साथ पत्रों की दुनिया ने अपने एक ऐतिहासिक सफर के लिए कदम बढ़ाए होंगे।

जब संचार के अन्य साधन न थे, तो पत्र ही संवाद का एकमात्र माध्यम था। पत्रों का काम मात्र सूचना देना ही नहीं बल्कि इनमें एक अजीब रहस्य या गोपनीयता, संग्रहणीयता, लेखन कला एवं अतीत को जानने का भाव भी छुपा होता है। पत्रों की सबसे बड़ी विशेषता इनकी आत्मीयता है।

खास लोगों के पत्रों को संजोकर रखने, छुप-छुप कर पढ़ने और पुरानी चिट्ठियों के माध्यम से अतीत में विचरण करने का आनंद शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता। यह भी सही है कि संचार क्रांति ने पूरी दुनिया को बहुत नजदीक लाकर चिट्ठियों की संस्कृति को समाप्त करने का प्रयास किया है।

पर इसका एक पहलू यह भी है कि इसने दिलों की दूरियां इतनी बढ़ा दी हैं कि बिल्कुल पास में रहने वाले अपने इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों की भी लोग खोज-खबर नहीं रखते। दुनिया भर में बहुत-सी प्रसिद्ध शख्सियतों ने पत्रों को औजार बनाया।

मार्क्स-एंजिल्स में ऐतिहासिक मित्रता का सूत्रपात पत्रों से ही हुआ। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उस स्कूल के प्राचार्य को पत्र लिखा, जिसमें उनका पुत्र अध्ययनरत था। इस पत्र में उन्होंने प्राचार्य से अनुरोध किया था कि उनके पुत्र को वे सारी शिक्षायें दी जाएं जोकि एक बेहतर नागरिक बनने हेतु जरूरी हैं। इसमें किसी भी रूप में उनका पद आडेÞ नहीं आना चाहिये।

पत्रों का संवेदनाओं से गहरा रिश्ता है और यही कारण है कि पत्रों से जुड़े डाक विभाग ने तमाम प्रसिद्ध विभूतियों को मंच प्रदान किया है। विश्व डाक दिवस के अवसर पर इसके सफर पर दृष्टिपात करना उचित रहेगा। एक जुलाई, 1876 को भारत इस संगठन का सदस्य बन गया था। इसकी सदस्यता लेने वाला भारत पहला एशियाई देश था। वैसे भारत में डाक सेवाओं का इतिहास बहुत पुराना है।

भारत में एक विभाग के रूप में इसकी स्थापना 1अक्तूबर, 1854 को लार्ड डलहौजी के काल में हुई। 9अक्तूबर को विश्व डाक दिवस के बाद 10अक्तूबर को भारतीय डाक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। संचार के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तनों के कारण भारतीय डाक के समक्ष अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं। लेकिन यह एक सुखद संकेत है कि डाक-सेवाएं नवीनतम तकनीक का अपने पक्ष में भरपूर इस्तेमाल कर रही हैं।

-अरुण कुमार कैहरबा

 

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