नोटबंदी से काले धन की निकासी को लेकर पक्ष-प्रतिपक्ष या आर्थिक विश्लेषक भले ही आज भी एकमत ना हो या उनके द्वारा कुछ भी कहा जा रहा हो, पर एक बात साफ हो गई है कि नोटबंदी के बाद देश में डिजीटल भुगतान की ओर लोगों का रुझान तेजी से बढ़ा है। विमुद्रीकरण के पीछे सरकार की और कोई मंशा हो या ना हो, पर लोगों को डिजीटल भुगतान व्यवस्था से जोड़ने की मंशा भी एक रही है।
डिजीटल भुगतान से दो नंबर में भुगतान, यानि कालाधन पर कुछ हद तक प्रभावी रोक लगाने में सरकार सफल होती दिख रही है। इसका कारण भी है, क्योंंकि विमुद्रीकरण के पहले सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद देश में चेक से भुगतान की प्रवृति नहीं बढ़ पाई थी। विमुद्रीकरण के बाद देश में डिजीटल या यूं कहें कि कार्ड के जरिए भुगतान में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी से साफ होने लगा है कि लोगों में अब डिजीटल भुगतान को लेकर जागृति आई है।
दरअसल कालाधन के कई रास्तों में से एक दो नंबर में नकद भुगतान और बड़े नोटों का संग्रह रहा है। विमुद्रीकरण और इसके बाद बैंकों से लेनदेन खासतौर से एटीएम या अन्य माध्यमों से लेन-देन को सीमित या सीमा तय करने से प्रभाव सामने आया है। हालांकि सरकार के इन फैसलों पर सोशल मीडिया को हथियार बनाकर भ्रांतियां फैलाने के लाख प्रयास किए गए, पर सरकार अपने दोनों ही उद्देश्यों को पूरा कराने में सफल रही है।
देशवासी विमुद्रीकरण के महत्व को समझने लगे हैं, वहीं अब लोगों में बड़े नोटों को जमा करने की प्रवृति पर भी स्वप्रेरित अंकुश लगा है। कम से कम आरबीआई के आंकड़े तो यही कह रहे हैं। इसके साथ ही नवंबर-दिसंबर के विमुद्रीकरण या यों कहे कि नोटबंदी के परिणाम अब प्राप्त होने लगे हैं। विमुद्रीकरण और नकदी उपलब्धता को लेकर एसबीआई द्वारा तैयार कराई गई एक रिपोर्ट तो यही कहती है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में बड़े नोटों का चलन कम हुआ है, छोटी नकदी का उपयोग बढ़ा है और लोगों में डिजीटल भुगतान की प्रति रुझान बढ़ा है। जहां एक और कार्ड के जरिए भुगतान में 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई हैं वहीं बड़े नोटों के लेनदेन में 14 फीसदी की कमी आई है। छोटे नोटों खासतौर से एक सौ रुपए के नोट का चलन बढ़ा है। सरकार ने भी बाजार में छोटे नोट अधिक उतारे हैं।
देखा जाए तो नरेन्द्र मोदी सरकार ने सोची समझी रणनीति के तहत आर्थिक सुधारों को बढ़ावा दिया है। सरकार बनते ही पहले गरीब से गरीब आदमी को जन धन योजना से जोड़ने के लिए जीरो बैलेंस पर जनधन खातें खोले गए हालांकि उस समय इसकी काफी आलोचना हुई पर देश के आम आदमी की भी आसानी से बैंकों तक पहुंच हो सकी। जन धन योजना में लाखों खाते खुले और 30-35 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि इन खातों मे ंजमा हो गई।
देखने वाली बात यह है कि यह राशि उस गरीब आदमी की बचत है जो दो समय की रोटी के लिए संघर्षरत है। हालांकि नोटबंदी के दौरान जन-धन खातों में कालाधन जमा होने की संभावना जताई जाती रही पर 50 दिनों में यही कही तीन साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए के आसपास इन जनधन खातों में जमा हुए जिससे साफ है कि जनधन खातों में अधिकांश पैसा नोटबंदी के अतिरिक्त जमा हुआ है।
सोची-समझी रणनीति के तहत ही सरकार ने कालाधन की स्वघोषणा का अवसर दिया और उसके बाद नवंबर में पूरे देश को चौकाते हुए हजार और पांच सौ के नोटों को बंद करने की घोषणा कर दी। हालांकि नोटबंदी के दौरान आमजन को परेशानी का सामना करना पड़ा, सरकार को विपक्ष की आलोचना का शिकार भी होना पड़ा पर इसके बाद हुए चुनावों के परिणामों ने सरकार के पक्ष में मेंडेट देकर सारे कयासों को निर्मूल सिद्ध कर दिया।
सरकार ने सोच समझ कर ही बड़े नोट बाजार में कम उतारे और उसका परिणाम सामने हैं। बैंक खातों को आधार से अनिवार्य रुप से जोड़ने का परिणाम यह हो रहा है कि अब कालाधन आसानी से पकड़ में आ सकेगा। सरकार डिजीटल लेन देन को बढ़ावा देने के लिए ही बैंकिंग सेवाओं को शुल्क के दायरें मेंं ला रही है। देखा जाए तो बैंकिंग सेवाएं अब सेवा नहीं रही बल्कि पेड सेवा बन गई है। आधार से जुड़ते ही बेनामी खातों या एक से अधिक खातों की पकड़ भी आसान हो गई है। और अब तो एक जुलाई से जीएसटी लागू कर सरकार ने साफ संकेत दे दिया है।
हालांकि इन सुधारों से देश की आर्थिक विकास की गति प्रभावित हुई है, पर नए और कठोर निर्णयों का अल्पगामी व दूरगामी प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। आज दुनिया के देशों में भारतीय अर्थ व्यवस्था को सशक्त आर्थिक व्यवस्था के रुप में देखा जा रहा है। हालांकि नवंबर से अब तक अर्थ जगत में विरोध के स्वरों के कारण आर्थिक गतिविधयां प्रभावित हो रही है। पहले नोटबंदी और अब जीएसटी के नाम पर विरोध हो रहा है।
पर यह नहीं भूलना चाहिए कि नवाचार को अपनाने में समय लगता है पर सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने की पूरी संभावनाएं भी रहती है। बड़े नोटों के लेनदेन में 14 प्रतिशत की बड़ी कमी और कार्ड से भुगतान में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी इसका साफ संकेत हैं। देश का नागरिक आर्थिक सुधारों में विश्वास रखता है, सहजता से स्वीकार भी करता है। खासतौर से जब नई चीजें आती है तो थोेड़े समय में स्वीकार्य भी हो जाती है।
बड़े नोटों के लेन देन में कमी से कालाधन का संग्रहण कम होगा वहीं डिजीटल लेनदेन से कालाधन और भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक रोक लग सकेगी। जिस तरह से राजीव गांधी की कम्प्यूटर क्रांति के सकारात्मक परिणाम आज देखने को मिल रहे हैं आने वाले समय में डिजीटल भुगतान के और अधिक सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे और भारतीय अर्थ व्यवस्था अधिक सशक्त होकर उभरेगी।
-डॉ़ राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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