भुखमरी से मरना शर्म की बात

High time for nation over the death of satrving kids

दिल्ली में एक परिवार की तीन बेटियों की भूख से मौत हो गई है। (death of satrving kids) तीनों बच्चियों की उम्र दस साल से कम थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि बच्चियों के पेट में अन्न का एक दाना नहीं था। आठ वर्षीय मानसी, पांच वर्षीय पारो और दो वर्षीय सूखो की लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के चिकित्सा निदेशक ने भूख से मरने की पुष्टि की है। बच्चियों के पिता का नाम मंगल है और वो रिक्शा चलाते हैं। उनकी मां की मानसिक हालत कमजोर बतायी जा रही है। वो दिल्ली के मंडावली इलाके की एक झुग्गी में किराए के कमरे में रहता था। किराया न चुका पाने की वजह से उन्हें घर से निकाल दिया गया था। मंगल का रिक्शा दो सप्ताह पहले चोरी हो गया था जिसके बाद से वो कोई काम नहीं कर पा रहे थे। घर में पैसे न आने की वजह से खाना नहीं बन पा रहा था।

देश की संसद से कुछ दूरी पर ऐसी घटना का होना सरकार के लिये शर्मनाक है। हाल ही में झारखंड के रामगढ जिले के मांडू प्रखंड के चैनपुर गांव के 39 वर्षीय आदिवासी युवक राजेंद्र बिरहोर की पोषण की कमी और बीमारी के कारण मृत्यु हो गयी है।राजेंद्र बिरहोर की पत्नी शांति देवी ने दावा किया कि भूख के चलते उसके पति की मौत हो गयी। शांति देवी के अनुसार उसके पास राशन कार्ड नहीं था। बिरहोर की पत्नी ने बताया कि उसके पति को पीलिया था और उसके परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसके लिए डॉक्टर द्वारा बताया गया खाद्य पदार्थ और दवाई खरीद सकें। छह बच्चों का पिता बिरहोर परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य था।

40 वर्षीय रिक्शा चालक की भूख से मौत हुई थी | death of satrving kids

पिछले दिनों झारखंड में चतरा जिले के इतखोरी में मीना मुसहर नामक एक महिला की मौत हो गई। उसके बेटे का कहना है कि उसकी मां ने चार दिनों से अन्न का एक दाना तक नहीं खाया था। महिला कचरा बीनकर अपना गुजारा करती थी। गिरीडीह जिले के मनगारगड्डी गांव की सावित्री देवी मौत हो गई थी। ग्रामीणों के मुताबिक महिला ने तीन दिनों से कुछ नहीं खाया था। वह भीख मांग कर अपना पेट भरती थी। गत वर्ष सितम्बर माह में भी के सिमडेगा जिले के करीमती गांव में 11 वर्षीय संतोषी और धनबाद में झरिया थाना क्षेत्र में 40 वर्षीय रिक्शा चालक की भूख से मौत हुई थी। भारत के दूर-दराज इलाकों से आने वाली भूख से मौतों की खबरें अपने आप में दु:खद हैं।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में 2 दिन से भूखी 13 साल की एक लडकी ने खुद को फांसी लगा ली थी। उसके पिता की मौत हो चुकी थी और मां को दिहाड़ी-मजदूरी का कोई काम नहीं मिला था। केरल में एक आदिवासी युवा को परचून की दुकान से एक किलो चावल चोरी करने के लिए पीट कर मार डाला गया। वह पहले भीख मांग रहा था और फिर चोरी का सहारा लिया, पकड़ा गया तो उसे इतना मारा कि उसकी मौत हो गई। भूख से मौत के ये पहले मामले नहीं हैं। ऐसे मामले सामने आते रहते हैं और सरकारें इन मामलों को गंभीरता से लेने की बजाय खुद को बचाने के लिए लीपा-पोती में लग जाती हैं जो बहुत ही शर्मनाक है।

लोबल हंगर इंडेक्स में देश तीन पायदान नीचे खिसक गया | death of satrving kids

रोटी, कपड़ा और मकान मानव जाति की मूल आवश्यकतायें है जिनमे रोटी सर्वोपरि है। रोटी यानी भोजन की अनिवार्यता के बीच आज वैश्विक आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी भुखमरी का शिकार है। भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखे तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सर्वाधिक भुखमरी से पीड़ित देशों में भारत का नाम प्रमुखता से है। खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार तथा अधिक पैदावार के लिए कृषि क्षेत्र में निरन्तर नये अनुसंधान के बावजूद भारत में भुखमरी के हालात बदतर होते जा रहे हैं जिसकी वजह से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में देश तीन पायदान नीचे खिसक गया है।

दुनिया भर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार गत वर्ष भारत दुनिया के 119 देशों के हंगर इंडेक्स में 97 वें स्थान पर था जो इस साल फिसलकर 100 वें स्थान पर पहुंच गया है। हंगर इंडेक्स में किसी भी देश में भुखमरी के हालात का आकलन वहां के बच्चों में कुपोषण की स्थिति, शारीरिक अवरुद्धता और बाल मृत्यु दर के आधार पर किया जाता है।

देश में 21 फीसदी बच्चों का पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता | death of satrving kids

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार भारत में बच्चों में कुपोषण की स्थिति भयावह है। देश में 21 फीसदी बच्चों का पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता इसकी बड़ी वजह कुपोषण है। रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी के लिहाज से एशिया में भारत की स्थिति अपने कई पड़ोसी देशों से खराब है। हंगर इंडेक्स में चीन 29 वें, नेपाल 72 वें, म्यामार 77 वें, इराक 78 वें, श्रीलंका 84 वें, उत्तर कोरिया 93 वें स्थान पर है, जबकि भारत 100 वें स्थान पर फिसल गया है। भारत से नीचे पाकिस्तान 106 वें और अफगानिस्तान 107 वें पायदान पर है।

सरकारी प्रयासों से साल 2000 के बाद से देश में बाल शारीरिक अवरुद्धता के मामलों में 29 प्रतिशत की कमी आयी है, लेकिन इसके बावजूद यह 38.4 प्रतिशत के स्तर पर है जिसमें सुधार के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है। उम्मीद है कि सरकारी प्रयासों से यह संभव हो पाएगा। दुनिया के देशों के बीच भारत की छवि एक ऐसे मुल्क की है, जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लेकिन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले इस देश की एक सच्चाई यह भी है कि यहां के बच्चे भुखमरी के शिकार हो रहे हैं।

ऐसे आंकड़े सामने आना, बेहद चिंतनीय | death of satrving kids

एक ऐसा देश जो अगले एक दशक में दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली देशो की सूची में शामिल हो सकता है, वहां से ऐसे आंकड़े सामने आना, बेहद चिंतनीय माना जा रहा है। हमारे यहां हर वर्ष अनाज का रिकार्ड उत्पादन तो होता है, पर उस अनाज का एक बड़ा हिस्सा लोगों तक पहुंचने की बजाय सरकारी गोदामों में अव्यवस्थित ढंग से रखे-रखे खराब हो जाता है। देश का 20 फीसद अनाज भण्डारण क्षमता के अभाव में बेकार हो जाता है। इसके अतिरिक्त जो अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है, उसका भी एक बड़ा हिस्सा समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने की बजाय बेकार पड़ा रह जाता है।

देश में आये दिन सरकारी स्तर पर अनाज वितरण प्रणाली में बड़े-बड़े घोटाले | death of satrving kids

भारत में भुखमरी से निपटने के लिए अनेको योजनाएं बनी हैं लेकिन उनकी सही तरीके से पालना नहीं होती है। देश में सरकारों द्वारा हमेशा भुखमरी से निपटने के लिए सस्ता अनाज देने सम्बन्धी योजनाओं पर ही विशेष बल दिया गया। कभी भी उस सस्ते अनाज की वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने को लेकर कुछ ठोस नहीं किया गया। अनाज के भंडारण व्यवस्था को सुदृढ़ करने की तरफ ध्यान नही दिया गया। देश में आये दिन सरकारी स्तर पर अनाज वितरण प्रणाली में बड़े-बड़े घोटाले हो रहें हैं, जिनको रोकने की कोई प्रभावी प्रक्रिया अभी तक अमल में नहीं लायी जा सकी है।

आज भी देश में सरकार द्वारा गरीबों को सस्ता अनाज दिये जाने वाली सरकारी सूची में वास्तविक गरीबो की बजाय प्रभावी लोग अधिक मिलेंगें।देश के बहुत से गरीबों को सरकार स्तर पर सस्ती दर पर मिलने वाली राशन सामग्री महज आधार कार्ड नहीं होने के कारण नहीं मिल पाती है। बहुत से गरीबों के अंगूठे को राशन दूकानदार की स्वीप मशीन मानती नहीं है जिस कारण राशन सामग्री विक्रेता गरीबों को राशन देने से इंकार कर देते हैं। सरकार को इस प्रणाली में सुधार करना चाहिये ताकि सभी जरूरतमंद लोगों को समय पर राशन सामग्री मिल सकें। सरकार को अनाज की भंडारण क्षमता को बढ़ा कर दोगुना करनी चाहिये ताकि अनाज को नष्ठ होने से बचाया जा सके। जो देश के लोगों के काम आ सके।

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