श्रीनगर में दहशतगर्दी भीड़ द्वारा एक डीएसपी की पीट-पीटकर हत्या साधारण अथवा अचानक घटित घटना नहीं, बल्कि यह पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी सरगनाओं की नई रणनीति है। भारत द्वारा सर्जीकल स्ट्राईक व उसके बाद पाकिस्तान की कई चौंकियां तबाह करने से पाकिस्तान के हुक्मरान, आतंकवादी संरगनाओं व सेना ने इस बात को जान लिया है कि भारत से सीधी लड़ाई लड़ने की बजाए, भीड़ द्वारा हमले कर अधिक नुक्सान किया जाए।
देश के दुश्मन इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि भीड़ द्वारा किया गया नुक्सान जहां हिन्दूस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर में कमजोर करेगा, वहीं कश्मीरियों की नई पीढ़ी सरकारी नौकरियां करने से डरेगी। गत माह एक युवा कश्मीरी आर्मी आॅफिसर का कत्ल व एक दरोगा का कत्ल आदि घटनाएं साबित करती हैं कि आतंकवादियों व अलगाववादियों की जुटी भीड़ द्वारा कश्मीरी अधिकारियों विशेषकर मुस्लिम समुदाय से संबंधित अधिकारियों व मुलाजिमों को निशाना बनाया जा रहा है।
हमला करने वाली भीड़ कोई भड़की भीड़ नहीं, बल्कि एक साजिश के तहत देश विरोधी ताकतों का हिस्सा है, जो मौका देखकर वारदात को अंजाम देती है। ऐसे हालात में तथाकथित मानवाधिकार संगठनों को भी चुपी तोड़नी चाहिए। डीएसपी ने गोली चलाकर किसी बेकसूर को नहीं मारा था। अब जब अलगाववादी नेता मीर वाईज भी डीएसपी की मौत की निंदा कर रहा है, तो यह बात समझ आनी चाहिए कि भीड़ में सिर्फ नासमझ एवं मासूम नहीं घूम रहे।
सेना की गोली से बेकसूर आमजन का मारा जाना दुखदायी है, किन्तु दहशतगर्द भीड़ के खिलाफ भी टिप्पणी करने से मानवाधिकार संगठनों को संकोच नहीं करना चाहिए। देश की सुरक्षा एजेंसियों को मासूमों की एकत्रित व दहशतगर्द भीड़ के बीच की पहचान करने की जरूरत है। भीड़ की आड़ में पुलिस एवं अन्य सुरक्षा बलों पर हमले आतंकवादी कार्रवाई का ही एक छिपा रूप है।
सरकार व सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियों, बुद्धिजीवियों व आम जनता को भी सचेत रहने की जरूरत है। देश का संविधान मानवाधिकारों की रक्षा का समर्थन करता है, किन्तु मानवाधिकारों के नाम पर दहशतगर्द भीड़ देश की सुरक्षा को चूहों की तरह कुतर न दे, इसके लिए हमें तैयार रहना होगा। इससे पहले किराए के पत्थरबाज भी आतंकवाद की ‘बी’ टीम की तरह सामने आए थे। पत्थरबाजों व दहशतगर्दी भीड़ से निपटना तो हथियारबंद आतंकवादियों के साथ निपटने से भी अधिक मुश्किल है।
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