अक्सर किसी न किसी बिल्डर के खिलाफ लोग करते हैं शिकायत
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करोड़ों के घर खरीदने वालों की आखिर क्यों नहीं सुनते अधिकारी
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जीवनभर की पूंजी लगाकर भी लोग हुए बेघर
सच कहूँ/संजय मेहरा, गुरुग्राम। दुनियाभर के लोगों की शरण स्थली बने गुरुग्राम में लोग करोड़ों रुपये के घर खरीदकर जीवन को सुरक्षित, सुखी तरीके से जीने का सपना बुनते हैं, लेकिन उनका जीवन सुखी नहीं बन पा रहा। गुरुग्राम में अक्सर किसी न किसी सोसायटी के लोग बिल्डर के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं, लेकिन अधिकारियों द्वारा उनकी समस्याओं का निराकरण नहीं किया जाता। करोड़ों के फ्लैट(Flats) खरीदकर भी सुविधाएं कौड़ियों की मिलती हैं।
मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में अनेक कंपनियों ने अपने प्रोजेक्ट लांच किए हैं। लाखों प्रोजेक्ट में लोगों को उनके घर की पॉजिशन दे दी गई है और लोग उनमें रह रहे हैं। फिर भी अभी लाखों लोगों का अपना घर का सपना निर्माण कंपनियों की लचर व्यवस्था के चलते अधूरा ही है। जिन्हें घर मिल गए हैं, उनमें से अनेक लोग किसी-न-किसी तरीके से परेशानी झेल रहे हैं। कहीं उन्हें मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही तो कहीं घटिया निर्माण सामग्री के चलते फ्लैट(Flats) जर्जर हो रहे हैं। ना तो उनकी बिल्डर सुनते हैं और ना ही प्रशासनिक अधिकारी। कहने को तो हरेरा का गठन किया हुआ है, लेकिन यहां भी मामले लंबित ही रहते हैं। कई सोसायटी के निवासियों द्वारा हरेरा में समस्याओं को रखा गया है।
गुड़गांव ग्रीन्स में लंबे समय दिया था धरना
गुरुग्राम के नामी बिल्डर (कंपनियों) के प्रोजेक्ट में फ्लैट(Flats) खरीदने वाले लोग ज्यादा परेशान नजर आते हैं। गत वर्ष भी यहां सेक्टर-102 स्थित एम्मार एमजीएफ के गुडगांव ग्रीन्स प्रोजेक्ट में घर खरीदकर रह रहे लोगों ने मूलभूत सुविधाओं की मांग पर डेढ़ महीने तक धरना दिया था। इनमें सुविधाओं के नाम पर अधिक शुल्क वसूलने समेत कई मुद्दे शामिल थे। लोगों का आरोप था कि आम निवासियों की कोई सुनवाई नहीं होती। क्योंकि प्रोजेक्ट की शुरूआत के साथ ही आरडब्ल्यूए बिल्डर के लोगों की बनाई जाती है। वे बिल्डर के खिलाफ नहीं बोलते। ऐसे में आम लोग परेशानी झेलते रहते हैं। एम्मार एमजीएफ की तरह से अन्य कई कंपनियोंं के प्रोजेक्ट में कमियों को लेकर लोगों ने पूर्व में खूब आवाज उठाई है।
चिंतल पैराडिसो को लेकर दो साल पहले की थी शिकायत
अब सेक्टर-109 में चिंतल पैराडिसो सोसायटी में हुए हादसे की बात करें तो तो यहां भी समस्या लंबे समय से चली आ रही है। इसकी शिकायत यहां के निवासियों ने प्रशासन, पुलिस को की थी। दो साल पहले की गई शिकायत पर अधिकारियों ने कोई संज्ञान नहीं लिया। यह हाल तो तब है, इस सोसायटी के क्षतिग्रस्त टावर नंबर-डी में एक अधिकारी एके श्रीवास्तव भी रहते हैं। एके श्रीवास्तव के मलबे के नीचे दबने से दोनों पांवों में गहरी चोटें आई हैं। जबकि उनकी पत्नी की मौत होने का समाचार है। इतने बड़े अधिकारियों के रहते हुए भी बिल्डर द्वारा लापरवाही बरतना कई सवालों को जन्म देता है। यहां लोगों ने सवा करोड़ रुपये से लेकर ढाई करोड़ रुपये तक के फ्लैट खरीदे हैं।
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