मध्य भारत समेत कमोबेश पूरा देश भीषण गर्मी की चपेट में है। मौसम विभाग ने ‘रेड अलर्ट’ जारी करते हुए राजधानी दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर प्रदेश, पंजाब, चंड़ीगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में प्रचंड गर्मी के साथ तेज गर्म हवाओं (लू) से अगले कुछ दिनों तक राहत न मिलने के आसार जताए हैं। देश के कई हिस्सों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस पार कर चुका है। सूरज की तेज किरणें सूखे और पेयजल संकट की मार झेल रहे भारतीयों पर दोहरी मुसीबत साबित हो रही है। तापमान के निरंतर बढ़ने से जल संकट और भी गहराता जा रहा है। केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को ‘सूखा सलाह’ जारी करते हुए पानी का समझदारी से इस्तेमाल करने की सलाह दी है। गौरतलब है कि राज्यों को ‘सूखा सलाह’ उस वक्त जारी की जाती है जब जलाशयों में पानी का स्तर बीते दस साल के जल भंडारण के औसत से 20 फीसदी कम हो जाता है।
उधर कर्नाटक में पानी के गंभीर संकट के कारण उडुपि जिले के कई सरकारी स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील देना बंद कर दिया गया है। वहीं उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बढ़ती पेयजल की समस्या को लेकर केन नदी के पानी को बचाने के लिए पुलिस का पहरा लगा दिया गया है। पानी को लेकर मचे हाहाकार के बीच मध्यप्रदेश सरकार ने ‘राइट टू वाटर’ लागू करने का फैसला किया है, जिसके तहत हरेक व्यक्ति को हर दिन कम से कम 55 लीटर पानी दिया जाना है। देश के कई स्थानों पर टैंकर के जरिए नागरिकों को जल उपलब्ध कराए जा रहे हैं, तो कई जगह लोगों को न्यूनतम पेयजल प्राप्ति भी दुर्लभ हो गई है। आलम यह है कि सूरज की तपिश और उमस के आगे लोग बिलबिला रहे हैं!बढ़ती तपिश और लू ने लोगों को घरों में दुबकने को मजबूर कर दिया है। दिहाड़ी मजदूरों, किसानों और असंगठित क्षेत्रक में कार्यरत लोगों के लिए दिन में काम करना मुश्किल होता जा रहा है।
अनियमित बिजली आपूर्ति के कारण समाज के सभी वर्ग के लोगों पर इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है। एक तरफ जहां इससे कामकाजी लोगों की श्रम-उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी तरफ विद्यार्थियों की पढ़ाई भी बाधित हो रही है। बिजली की आंखमिचौली के कारण लोगों के रातों की नींद ही गायब हो गई है। वहीं गर्म हवाओं के लगातार चलने से खेत-खलिहानों, जंगलों और घरों में आगजनी की घटनाएं भी अब आम हो चुकी हैं। कुछ प्रदेशों में सैकड़ों घर जलकर राख हो चुके हैं, जबकि उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग बुझने का नाम ही नहीं ले रही है।
इन दृश्यों को देखकर ऐसा लगता है मानो पृथ्वी हमारी सहनशीलता की परीक्षा ले रही है। आखिर, इस तरह की आपदा के लिए कहीं-न-कहीं मानव का प्रकृति से अनियंत्रित छेड़छाड़ ही जिम्मेवार रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि मानव जाति प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित दोहन से उत्पन्न विनाश के मंजर को कब तक झेल पाता है? अब जबकि हमारा पर्यावरण बुरे दौर से गुजर रहा है, तब इस बात की चर्चा प्रासंगिक हो जाती है कि आखिर क्या वजह है कि प्रकृति मानव समुदाय के साथ दोस्ताना व्यवहार नहीं कर रही है?यह भी विचार-विमर्श किया जाना चाहिए कि विगत कुछ वर्षों में ऐसा क्या हुआ कि पृथ्वी पर जीवन के लिए अनुकूल दशाएं दिन-ब-दिन मानव समुदाय के लिए कठोर से कठोरतम होती चली गईं? दरअसल प्राकृतिक संसाधनों के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से पूरी तरह अंजान मानव समाज का प्राकृतिक जैवमंडल में गैर-वाजिब हस्तक्षेप कई समस्याओं के सृजन को उत्तरदायी रहा है।
अन्य देशों को भी इस तरह के कानून बनाने चाहिए जिससे पौधारोपण को बढ़ावा मिले, क्योंकि पृथ्वी को सुरक्षित रखने का सबसे आसान उपाय है-पौधे लगाना। नाना प्रकार के पेड़-पौधे हमारी पृथ्वी का श्रृंगार करते हैं। वृक्षारोपण कई मर्ज की दवा भी है। पर्यावरण संबंधी अधिकांश समस्याओं की जड़ वनोन्मूलन है। जंगल, पृथ्वी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक समय धरती का अधिकांश हिस्सा वनों से आच्छादित था, किंतु आज इसका आकार दिन-ब-दिन सिमटता जा रहा है। मानसून चक्र को बनाए रखने, मृदा अपरदन को रोकने, जैव-विविधता को संजोये रखने और दैनिक उपभोग की दर्जनाधिक उपदानों की सुलभ प्राप्ति के लिए जंगलों का होना बेहद जरूरी है। अत: जरुरी है कि व्यक्तिगत स्तर पर पौधारोपण और संरक्षण के प्रयास किए जाएं।
सुधीर कुमार
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।