Heart to Heart with MSG Part 8: सोशल मीडिया पर धमाल मचा रहे पूज्य गुरू जी, दिए LIVE दर्शन, झूमी साध-संगत

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने सोशल मीडिया पर धमाल मचा दी है। पूज्य गुरू जी जब से बरनावा पधारे हैं और लाइव आकर साध-संगत को दर्शन दे रहे हैं। साध-संगत मोबाइल पर रात 9 बजे का इंतजार करती है। मंगलवार देर सायं पूज्य गुरू जी ने यूटयूब लाइव के माध्यम से साध-संगत को दर्शन दिए और रूहानी अनमोल वचनों की सौगात दी। आइये सुनते हैं पूज्य गुरू जी के रूहानी वचन….

 

हार्ट-टू-हार्ट विद् एमएसजी-पार्ट-7

 हार्ट-टू-हार्ट विद् एमएसजी पार्ट-7 में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने यूट्यूब एकांउट के माध्यम से युवाओं से अपने बुजुर्गों को सम्मान देने और वृद्ध आश्रम न भेजने की हाथ जोड़कर अपील की। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जो बुजुर्ग मां-बाप होते हैं। लोग उनका उतना सत्कार नहीं करते जितना हमारी संस्कृति कहती है। कई बार कुछ लोग हमारे पास आए, कहने लगे गुरु जी! हमारे मां-बाप बीमार हैं आप प्रसाद दे दीजिये। हमने कहा ठीक है, आप डॉक्टर को दिखाइये, उनकी सेवा कीजिये।

कहते जी, बहुत बुरा हाल है, उनका पेशाब हमें उठाना पड़ता है, टॉयलेट उठानी पड़ती है, बड़ी मुश्किल है। कुछ ऐसा प्रसाद दीजिये कि हमें उनका लेटरिंग-पेशाब न उठाना पड़े। अरे कैसे बच्चे हैं आप, उन्होंने आपका बचपन में लेटरिंग-पेशाब उठाया, आपकी गंदगी उठाई है। आप उन्हें भूल जाते हैं। अरे अपनी गृहस्थी सजी नहीं, कि जो मां-बाप थे, जिनके सिर पर आप कूदा करते थे, आपको पाल पोस कर जिन्होंने बड़ा किया, आपको बड़ा बनाया। और आप सोचते हो कि उनसे कब मुक्ति मिलेगी। आज के दौर में ये बात आम है।

अनाथ मातृ-पितृ सेवा मुहिम के तहत साध-संगत बनाए ब्लॉकों में रैन बसेरा

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने एक कार्य शुरू किया है, अनाथ मातृ-पितृ सेवा। उसका मतलब ही ये है कि जिन बुजुर्गों का कोई भी नहीं है, सारी साध-संगत मिलकर उनका साथ दें, रैन बसेरा उनके लिए बनाएं। हो सके तो अपने-अपने ब्लॉक में ऐसे घर बना दें। जिस पर लिखा हो अनाथ वृद्ध आश्रम और नीचे लिखा हो अनाथ मातृ-पितृ सेवा। तो उसमें अगर कोई छोड़ने आए तो उसके साइन जरूर किसी फार्म पर करवाए जाएं, जिस पर लिखा हो कि ये अनाथ हैं। ये लिखा हो कि हम उनके बच्चे हैं और छोड़ने आए हैं। अगर छोड़ने ही आ गए तो आप उनके बच्चे कहां से हुए?

गऊ माता के लिए रोटी निकालना, हमारी संस्कृति

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हम लोग घर में खाना खाते थे तो एक रोटी जरूर निकालते थे, खाना खाने से पहले, और उस रोटी को गऊ माता को खिलाया करते थे। हमारी माता जी, आटा निकाला करती थी, वो जीव-जंतुओं के लिए आटा रखती थी। तो ये थी हमारी संस्कृति। लेकिन आज पशुओं की तो पूछो मत, आप किसी भी रोड़ पर देख लो बहुत सारे आवारा पशु घूमते हुए मिल जाएंगे। इतने मतलबी हो गए हैं आज के लोग, हद से ज्यादा स्वार्थी हैं। जब तक दूध दिया तो ठीक है, वरना मारा डंडा और बाहर।

बेटा! हमने इसका दूध पीया है, गऊ हमारी माता है

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने ऐसा दौर भी देखा, जब मां-बाप तो क्या, पशुओं को भी घर में पूजा करते थे। हमारे बापू जी ने हमें बताया घर में गऊ थी, बुजुर्ग हो गई थी, तो हमने कहा कि बुजुर्ग है अब इसका क्या होगा? दूध तो ये देती नहीं, अब तो ये शायद काम की नहीं। तो बापू जी बोले, ऐसा नहीं है बेटा! ये गऊ हमारी माता है। हमने इसका दूध पिया है। हालांकि ये दूध अपने बछड़े के लिए देती थी, लेकिन हमने भी लिया तो, इसने इंकार नहीं किया। इसका दूध पीते हैं तो नेचरूली ये हमारी माता होती है। इसका बछड़ा हैं उसके पीछे हम हल जोतते हैं, वो भी काम देता है। और गऊ माता का मलमूत्र हम खेतों में डालते हैं, खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। जिससे फसल बहुत ज्यादा अच्छी हो जाती है।

इतना ही नहीं हम इसके गोबर में मिट्टी डालकर पोंछा बना लेते थे राजस्थान में, और फिर उसको चूल्ल्ले-चौकें के चारों ओर पोछे की तरह लगाया जाता था। तो हमने कहा, इससे क्या होता है, क्योंकि हम बहुत छोटे थे, बापू जी कहने लगे बेटा! इससे जो बीमारी के कण खत्म हो जाते हैं। कहने लगे इसने हमें सारी उम्र दूध पिलाया है। इसको घर से कैसे बाहर निकाल दें। और जब गऊ बीमार हो गई, फादर साहब ने इलाज भी करवाया, लेकिन वो ठीक नहीं हो सकी। तो उन्होंने पानी का एक सर्कल बनाया और उस समय हमारे घर में पवित्र गीता थी, उसका पाठ पढ़ा। और हमारे देखते ही देखते गऊ ने शरीर छोड़ दिया। हम पांच साल के थे, तो हमने फादर साहब से पूछा ये क्या किया आपने और ये क्या हुआ? बापू जी कहने लगे बेटा! ये मां की तरह थी हमारी, तो मैंने इसको रामनाम सुनाया है, भगवान का नाम सुनाया है ताकि जब ये शरीर छोड़कर जाए तो मोक्ष मिले इसको, मुक्ति मिले। हमें बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ और उसके बाद हमने भी उसे फॉलो किया।

मां बाप भी अपने बच्चों को हर बात पर ना टोके

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मां-बाप की बात करें तो आज के युग में मां-बाप को तो लोग वृद्ध आश्रम में छोड़ आते हैं। लेकिन हमारी निगाह में वहां बोर्ड लगा हुआ होना चाहिये, अनाथ वृद्ध आश्रम का। कम से कम उनको शर्म तो आए कि हम मर चुके हैं, इसलिए बेचारे अनाथ बुर्जुग वहां जा रहे हैं। जिन्होंने भी ये वृद्ध आश्रम बनाएं हैं। हम हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि उस पर लिखें ‘अनाथ वृद्ध आश्रम’। कम से कम ये तो पता चले कि मां बाप के लिए वो बच्चे मर चुके हैं या बच्चों के लिए मां-बाप मर चुके हैं। आपको शर्म नहीं आती, लानत है ऐसे लोगों पर जो जीते जी अपने मां-बाप को घर से निकाल देते हैं। और मां-बाप को भी चाहिये कि वो बिना वजह बच्चों के मोह-प्यार में फंसकर उनकी हर बात पर अडंगा न लगायें। आप जब हर बात पर टोंकते हैं, गलतियां आपकी भी हैं। सिर्फ बच्चों की गलतियां नहीं।

उदाहरण: छोटे बच्चे ने, बाप के अंदर जगा दी इंसानियत

एक उदाहरण आपको बताते हैं। पुराने समय की बात है, जो बिलकुल सच्ची बात है। एक परिवार में बुजुर्ग माता थी, जो उठ नहीं पा रही थी, उसकी घरवाली कहने लगी मेरे से इसकी सेवा नहीं होती। तो वो आदमी कहने लगा ये मेरी मां है। मैं तो इसकी सेवा करूंगा। दोनों में झगड़ा होने लगा, आखिर में उस मां के बेटे ने अपनी पत्नी की बात सुन ली। कहने लगा फिर क्या करें। पत्नी बोली, सांस तो कोई-कोई आ रहा है, गला दबा दीजिये या कोई ऐसी दवा दे दीजिये ताकि बेचारी बैकुंठ चली जाए। कहती पहले कब्र खोद आइये, फिर इसको वहां दफना देंगे। लोगों को कहेंगे कि बीमार थी, लोग साथ हो लेंगे। पति कहने लगा ठीक है।

अब छोटा-सा बच्चा वहां खड़ा सब सुन रहा था, तो उसने क्या किया वो भी अपने पापा के साथ चल दिया, वो कब्रिस्तान पहुंचे, कब्र खोदनी शुरू की तो बच्चा बोला, पापा क्या कर रहे हो, तो कहने लगा आपकी दादी आम्मा को यहां दफनाएंगे। तो वो फावड़ा चलाने लगा, थोड़ी देर के बाद उसको सांस चढ़ने लगी और उसने कस्सी रख दी। अब वो पांच साल का जो बच्चा था, उसने कस्सी उठाई और साथ में एक छोटा गड्ढ़ा खोद दिया। अब बाप ने हंसते हुए पूछा, अरे बेटा! तू ये क्या कर रहा है। तो बड़ी मासूमियत में बच्चे ने जवाब दिया, पापा! यहां दादी अम्मा को दफना रहे हो, तो जब मैं बड़ा होऊंगा तो यहां आपको दफनाऊंगा। उस आदमी की आंखे खुल गई, वो रोता हुआ घर आया और अपनी पत्नी को कहने लगा तू मुझे छोड़कर जा सकती है, लेकिन मैं अपनी मां को नहीं छोड़ सकता। शुक्र है एक छोटे से बच्चे ने अपने बाप के अंदर इंसानियत को जगा दिया।

आप बुजुर्गों को ऐसे निकाल फेंकते हैं जैसे दूध से मक्खी

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि हमने अक्सर देखा है कि अच्छे-अच्छे आफिसर, आम आदमी जब अपने मां-बाप को वृद्ध आश्रम में छोड़कर जाते हैं, तो बेचारे वो दर्द से छटपताते हैं, क्योंकि जो बुजुर्ग होते हैं वो बच्चों के सामान हो जाते हैं। हमारा ये कल्चर रहा है, संस्कृति रही है कि हमारे जो आगे बच्चे रहे हैं वो उन बुजुर्गों को खिलौने की तरह लगते हैं, यानि उनके पोते, पोतियां, नाती, जितने भी होते हैं वो सारे के सारे उनके साथ खेलते हैं, बड़ी खुशी आती है उनको। लेकिन आप उनको ऐसे निकाल फेंकते हैं जैसे दूध से मक्खी निकाल कर फेंकते हैं। तो ये हमारी संस्कृति नहीं कहती। जितने भी बुजुर्ग सुन रहे हैं उनको चाहिये कि एक समय आ गया आप अपने बच्चों को कार्य संभाल दीजिये। उन्हें कहिये मेरे से जिन्दगी का तजुर्बा लेना चाहते हैं, मेरे से कुछ अनुभव लेना चाहते हैं तो मेरे से पूछ सकते हो, अब आप अपना काम संभालो।

अपने बुजुर्गों की बेज्जती न करें बच्चे

आप जी ने फरमाया कि बच्चों को चाहिये कि वो अपने बुजुर्गों की ऐसी बेज्जती न करें, उन्हें अनाथ आश्रम मत भेजिये, उन्हें अनाथ मत बनाइये। आप जीते जी ऐसा करते हैं तो आपके साथ जब आपके बच्चे करेंगे तब क्या हाल होगा। तो बहुत जरूरी है आज के समय में अपने बुजुर्गों का सम्मान करना। क्योकिं आप उनका खून हैं, बहुत जरूरी है आप इज्जत के साथ उनको अपने साथ रखें, उनसे प्यार करें ताकि आपका जीवन भी सुखमय हो और उनका जीवन भी सुखमय हो। जरा सोच कर देखिये कब से उन्होंने आपको बड़ा किया, कितने सपने जोडे होंगे आपके साथ।

हमारे समय में हम लोग अपने मां-बाप से कभी नहीं पूछा करते थे कि क्या आप कर रहे हो, क्या काम हो रहा है, कितना पैसा कमा लिया आपने, बस ये होता था कि हमें जो चाहिये वो ले लिया बस। लेकिन आज का दौर ऐसा आ गया है कि जीते जी लोग अपने मां-बाप मार देते हैं। उन्हें तो बस पैसा चाहिये, वो पगला जाते हैं हद से ज्यादा और उस पागलपन में ये अपने मां-बाप को भी अपने घर से निकाल देते हैं।

और जो वृद्ध आश्रम बनाएं जाते हैं उनमें भेजना आसान होता है। तो आप सब से प्रार्थना है आप जरूर ‘अनाथ वृद्ध आश्रम’ जरूर लिखें। फार्म पर भी जो सार्इंन करवाएं, उस पर लिखा हो ये अनाथ हैं, इनका कोई नहीं है। वैसे तो ऐसी नौबत ही नहीं आनी चाहिये हमारी संस्कृति में, क्योंकि आगे से आगे पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। बच्चे को मां-बाप संभालते हैं और जब मां-बाप बुजुर्ग हो जाते हैं तो उनको बच्चे संभालते आएं हैं। इसलिए हमारी संस्कृति पूरी दुनिया में नंबर है। पर आज इसे आप डूबोने में लगे हैं। नशों की वजह से, पैसों की वजह से, लोभ-लालच की वजह से। तो प्यारी साध-संगत जी, हम आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि बुजुर्गों से बच्चों से आपस में तालमेल बना कर चलिये। किसी का गलत न करें, किसी के बहकावे में न आएं बल्कि अपने बुजुर्गों का साथ दीजिये वो आपके हैं। आप उनका खून हैं। कभी भी उन्हें वृद्ध आश्रम न भेजो। हम मालिक से दुआ करते हैं, प्रार्थना करते हैं कि वो आपकी झोलियां खुशियों से जरूर भरें।

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