बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने वीरवार सायं 9:30 बजे यूटयूब चैनल के माध्यम से आम जन को इन्सानियत बारे में समझाया। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि प्यारी साध-संगत जी, आप लोगों का एक सवाल आया है। हमसे पूछा गया है कि इन्सान जितने भी इस दुनिया में हैं क्या सबके अंदर इन्सानियत है। वाकई बात तो आपने बहुत बढ़िया पुछी है, कमाल की बात है, इन्सान तो सारे ही है, सबकी जात इन्सान है। कोई भी ऐसा नहीं है कि जो इन्सान ना हो। ये अलग बात है किसी में भगवान ने बुद्धि विवेक थोड़ा कम दे दिया मंदबुद्धि कहलाता है, बाकी तो लगभग एक जैसी बुद्धि है। जितना आप उससे काम लेते हैं उसके अकोरडिंग वो बढ़ती चली जाती है।
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि तो क्या सबके अंदर अच्छी बुद्धि होने के बावजुद सभी लोग इन्सान है, सोचने वाली बात है, नहीं इन्सान का भेष तो हर कोई धारण किए हुए हैं। लेकिन सभी इन्सान नहीं है। इन्सान का एक भेष जरूर है, कैसे, मान लिजिए, रोड़ के किनारे कोई घायल है, चलो इन्सान को ले ले, कोई इन्सान घायल पड़ा है वहां पर और गाड़ी आती है, चलाने वाला इन्सान है। वो देखते हैं उसको क्यों देखते हैं कि कहीं अपना तो नहीं, क्या इन्सान, इन्सान में कोई फर्क है।
हम सब एक ही मालिक की औलाद है। लेकिन नहीं अपने का मतलब परिवारिक या कोई रिश्तेदार, और फिर एक्सीलेटर दबाते हैं वो बेचारा तड़फता रह जाता है, क्या ये इन्सानियत है। पूज्य गुरू जी ने फरमाया,‘कई बार ऐसा होता है कोई किसी को मार रा होता है, पिटता है और आप मोबाइल निकाल के उसकी वीडियो बना रहे होते हैंं क्या ये इन्सानियत है, क्या इसे इन्सान कहें। इन्सान का काम तो किसी के दु:ख दर्द को देखकर उसके दु:ख दर्द में शामिल होना और हो सके तो उसके दु:ख दर्द को दुर करने की कोशिश करना। इसका नाम इन्सानियत है लेकिन ये बहुत कम पाया जा रहा है।
अब आपने इन्सान को देखा कि तड़पते इन्सान को छोड़कर लोग कैसे आगे बढ़ जाते हैं? एक इसके साथ आपको उदाहरण देते हैं। राजस्थान में हमने देखा, हमारे वहां पर नील गाय, मृग, हिरण काफी आया करते थे। तो होता क्या था अब किसानों की फसल खा जाते थे। तो किसान कांटेदार तार लगा देते थे। पर वो पशु हैं, कहीं न कहीं से, जैसे पानी लगाते हैं, वो नक्का है, वो जगह खाली है तो वहीं से घुस गए अंदर, अब खेत का मालिक आता है, आवाज करता है, उसको तो करनी है, अपनी जायदाद, अपनी मेहनत की कमाई बचानी है। तो पशु भागते हैं। एक बार हमने देखा कि ऐसे ही एक नील गाय दौड़ी, सामने तार थी उसने जम्प किया, लेकिन तार से उसके चेहरे के पास कट लग गया, हमें बड़ा दु:ख लगा और उसके पीछे-पीछे हो लिए कि देखते हैं कि ये कहां जाती है? क्या होता है? आगे जाकर देखा टीले थे, क्योंकि बालू रेत था हमारे खेतों में, बड़े-बड़े टीले थे।
तो जाकर देखा तो टीलों के अंदर एक झोक होती है, जैसे टीले बड़े-बड़े हैं तो बीच में खाली जगह, झोक बोल देते हैं, हमारे उस टाइम में कहा करते थे। तो वहां पर नील गाय खड़ी है और बाकी जितने भी उसके साथी हैं, उसको चारों तरफ से घेरे खड़े हैं, हो सकता है उनका कोई डॉक्टर होगा, वो आता है पास में और जीभा से लीपापोती कर रहा है, चाट रहा है, तो ब्लड आना धीरे-धीरे बंद हो जाता है। फिर वो इकट्ठे मिलकर चल पड़ते हैं। तो ये सीन आपने सुना और देखा, हमारी आँखों देखी बात। और इससे पहले हमने क्या बताया? कि एक इन्सान रोड़ पर घायल पड़ा है और उसकी जात वाले उसे देखकर गाड़िया भगाए जा रहे हैं, दौड़ाए जा रहे हैं। तो बड़ा अज़ीब लगता है। अब आप ये बताइये कि इन्सान को इन्सान कहें या हैवान? हैवान यानि पशु तो हमदर्दी जताते हैं, वो तो एक दूसरे का साथ दे रहे हैं, लेकिन इधर इन्सान देखके स्पीड बढ़ा रहा है।
गाड़ियां दौड़ाए जा रहा है, कोई उसे उठाता नहीं। तो बुरा ना मानियेगा, इन्सान की शक्ल में ऐसे लोग, हाथ जोड़कर कह रहे हैं बुरा मत मानना, इन्सान की शक्ल में हैवानियत है ये। पशुपन है ये। नहीं गलत कह दिया, क्योंकि पशु तो सही कर रहे हैं, वो तो जाकर अपने साथी का साथ दे रहे हैं। तो फिर कौन सा नाम दे ऐसे लोगों का। बेहद स्वार्थी और जिनके अंदर इन्सानियत नाम की कोई चीज ही नहीं है, बेरहमी, बड़े नाम हैं, लेकिन आज के समाज में इन्सान अपने आप को ऐसे शब्दों से नवाजते हुए शायद बुरा मान जाए, लेकिन सच तो सच है ना, हकीकत तो हकीकत है। तो इन्सानियत का मतलब क्या है?
इन्सान हैं तो इन्सानियत को जिंदा रखिये
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि एक बार हम किसी यूनिवर्सिटी में चले गए सत्संग करते-करते, शायद अमरावती था वो एरिया। तो काफी पढ़े-लिखे बच्चे वहां पर आए और कहने लगे गुरु जी आप कोई हमले सवाल पूछिये, हम सब बता देंगे, सार्इंस के पढ़ने वाले हैं। तो हमने कहा बेटा ठीक है, बताइए इन्सानियत किसे कहते हैं? तो कहने लगे गुरु जी एक है तो इन्सान है, ज्यादा है तो इन्सानियत है। हमने कहा वाह क्या कहना आपका। कहते फिर और क्या मतलब हुआ? यही तो मतलब है। हमने कहा इन्सानियत हमारी जात है, मानवता और वो ही आपको पता नहीं है।
कहने लगे तो गुरु जी आप बताइये किसे कहते हैं इन्सानियत? तो इन्सानियत, मानवता का मतलब है किसी को भी दु:ख, दर्द में तड़पता देखकर उसके दु:ख दर्द में शामिल होना और उसको ऐसा करना जिससे उसका दु:ख दर्द दूर हो जाए, अपनी बातों से, या उसका इलाज करवाइये, या फिर किसी भी तरह से उसे हॉस्पिटल पहुंचा दीजिये अगर वो घायल है। किसी को दु:खी देखकर जो ठहाके लगाते हैं, किसी को दु:खी देखकर जो खुशी मनाते हैं वो इन्सान नहीं, हमारे धर्मों में उन्हें शैतान या राक्षस कहा जाता है। तो अपनी जात को बदनाम मत कीजिये। इन्सान हैं तो इन्सानियत को जिंदा रखिये और इन्सानियत जिंदा रहेगी तभी जब इन्सानों वाले कर्म करेंगे।
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