बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने हार्ट टू हार्ट विद एमएसजी पार्ट-10 में आमजन को इन्सान के जीवन का असली मकसद और इन्सानियत का अर्थ समझाया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि प्यारी साध-संगत जीओ, आप लोगों का एक सवाल आया है, हमसे पूछा गया है कि इन्सान जितने भी इस दुनिया में हैं, क्या सबके अंदर इन्सानियत है? वाकयी बात तो आपने बहुत बढ़िया पूछी है, कमाल की बात है। इन्सान तो सारे ही हैं, सबकी जात इन्सान है। कोई भी ऐसा नहीं है, जो इन्सान ना हो। ये अलग बात है किसी में भगवान ने बुद्धि, विवेक थोड़ा कम दे दिया, मंदबुद्धि कहलाता है। बाकी तो लगभग एक जैसी बुद्धि है, जितना आप उससे काम लेते हैं, उसके अकोर्डिंग (अनुसार) वो बढ़ती चली जाती है। तो क्या सबके अंदर बुद्धि होने के बावजूद सभी लोग इन्सान हैं? सोचने वाली बात है। नहीं, इन्सान का भेष तो हर कोई धारण किये हुए है, लेकिन सभी इन्सान नहीं हैं, इन्सान का एक भेष जरूर है। कैसे? मान लीजिये रोड के किनारे कोई घायल है, चलो इन्सान को ही ले लें। कोई इन्सान घायल पड़ा है, वहां पर और गाड़िया आती हैं, चलाने वाला इन्सान है, वो देखते हैं उसको, क्यों देखते हैं? कि कहीं अपना तो नहीं। क्या इन्सान, इन्सान में कोई फर्क है? हम सब एक ही मालिक की औलाद हैं। लेकिन नहीं, यहां अपने का मतलब पारिवारिक या कोई रिश्तेदार और फिर एक्सीलेटर दबाते हैं, वो बेचारा तड़पता रह जाता है। क्या ये इन्सानियत है? कई बार ऐसा होता है कि कोई किसी को मार रहा होता है, पीटता है और आप मोबाइल निकालकर उसकी वीडियो बना रहे होते हैं, क्या ये इन्सानियत है? क्या इसे इन्सान कहें? इन्सान का काम तो किसी के दु:ख दर्द को देखकर उसके दु:ख दर्द में शामिल होना, और हो सके तो उसके दु:ख दर्द को दूर करने की कोशिश करना, इसका नाम इन्सानियत है, लेकिन ये बहुत कम पाया जा रहा है।
पशुओं को एक-दूसरे का साथ देते देखा
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आपने इन्सान को देखा कि तड़पते इन्सान को छोड़कर लोग कैसे आगे बढ़ जाते हैं? इसके साथ आपको एक उदाहरण देते हैं। राजस्थान में हमने देखा, हमारे वहां पर नील गाय, मृग, हिरण काफी आया करते थे। तो होता क्या था किसानों की फसल खा जाते थे। किसान खेतों में कांटेदार तार लगा देते थे। लेकिन वो पशु हैं, कहीं-न-कहीं से, जैसे पानी लगाते हैं, वो नक्का है, वो जगह खाली है तो वहीं से घुस गए अंदर, अब खेत का मालिक आता है, आवाज करता है, उसको तो अपनी जायदाद, अपनी मेहनत की कमाई बचानी है। तो पशु भागते हैं। एक बार हमने देखा कि ऐसे ही एक नील गाय दौड़ी, सामने तार थी उसने जम्प किया, लेकिन तार से उसके चेहरे के पास कट लग गया, हमें बड़ा दु:ख लगा और उसके पीछे-पीछे हो लिए कि देखते हैं कि ये कहां जाती है? क्या होता है? आगे जाकर देखा टीले थे, क्योंकि बालू रेत था हमारे खेतों में, बड़े-बड़े टीले थे। जाकर देखा तो टीलों के अंदर एक झोक होती है, जैसे टीले बड़े-बड़े हैं तो बीच में खाली जगह होती है, उसे हमारे वहां झोक बोल देते थे।
तो वहां पर नील गाय खड़ी है और बाकी जितने भी उसके साथी हैं, उसको चारों तरफ से घेरे खड़े हैं, हो सकता है उनका कोई डॉक्टर होगा, वो आता है पास में और जीभा से लीपापोती कर रहा है, चाट रहा है, तो ब्लड आना धीरे-धीरे बंद हो जाता है। फिर वो इकट्ठे मिलकर चल पड़ते हैं। तो ये सीन आपने सुना और देखा, हमारी आँखों देखी बात। और इससे पहले हमने क्या बताया? कि एक इन्सान रोड़ पर घायल पड़ा है और उसकी जात वाले उसे देखकर गाड़िया भगाए जा रहे हैं, दौड़ाए जा रहे हैं। तो बड़ा अज़ीब लगता है। अब आप ये बताइये कि इन्सान को इन्सान कहें या हैवान? हैवान यानि पशु तो हमदर्दी जताते हैं, वो तो एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं, लेकिन इधर इन्सान देखके स्पीड बढ़ा रहा है। गाड़ियां दौड़ाए जा रहा है, कोई उसे उठाता नहीं। तो बुरा ना मानियेगा, इन्सान की शक्ल में ऐसे लोग, हाथ जोड़कर कह रहे हैं बुरा मत मानना, इन्सान की शक्ल में हैवानियत है ये। पशुपन है ये। नहीं गलत कह दिया, क्योंकि पशु तो सही कर रहे हैं, वो तो जाकर अपने साथी का साथ दे रहे हैं। तो फिर कौन-सा नाम दे ऐसे लोगों का। बेहद स्वार्थी और जिनके अंदर इन्सानियत नाम की कोई चीज ही नहीं है, बेरहमी, बड़े नाम हैं, लेकिन आज के समाज में इन्सान अपने आप को ऐसे शब्दों से नवाजते हुए शायद बुरा मान जाए, लेकिन सच तो सच है ना, हकीकत तो हकीकत है। तो इन्सानियत का मतलब क्या है?
किसी के दु:ख में खुशी मनाने वाला शैतान या राक्षस
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि एक बार हम किसी यूनिवर्सिटी में चले गए सत्संग करते-करते, शायद अमरावती था वो एरिया। काफी पढ़े-लिखे बच्चे वहां पर आए और कहने लगे गुरु जी आप कोई हमसे सवाल पूछिये, हम सब बता देंगे, सार्इंस के पढ़ने वाले हैं। हमने कहा बेटा ठीक है, बताइए इन्सानियत किसे कहते हैं? तो कहने लगे गुरु जी एक है तो इन्सान है, ज्यादा है तो इन्सानियत है। हमने कहा वाह क्या कहना आपका। कहते फिर और क्या मतलब हुआ? यही तो मतलब है। हमने कहा इन्सानियत, मानवता हमारी जात है और वो ही आपको पता नहीं है। कहने लगे तो गुरु जी आप बताइये किसे कहते हैं इन्सानियत? तो इन्सानियत, मानवता का मतलब है किसी को भी दु:ख, दर्द में तड़पता देखकर उसके दु:ख दर्द में शामिल होना और उसको ऐसा करना कि जिससे उसका दु:ख दर्द दूर हो जाए, अपनी बातों से, या उसका इलाज करवाइये, या फिर किसी भी तरह से उसे हॉस्पिटल पहुंचा दीजिये अगर वो घायल है। किसी को दु:खी देखकर जो ठहाके लगाते हैं, किसी को दु:खी देखकर जो खुशी मनाते हैं वो इन्सान नहीं, हमारे धर्मों में उन्हें शैतान या राक्षस कहा जाता है। तो अपनी जात को बदनाम मत कीजिये। इन्सान हैं तो इन्सानियत को जिंदा रखिये और इन्सानियत जिंदा रहेगी तभी जब इन्सानों वाले कर्म करेंगे।
इन्सान सर्वश्रेष्ठ क्यों?
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि और भी कर्म हैं। जैसे देखा जाए तो हमारे धर्मों में इन्सान को सबसे बड़ा माना गया है। इन्सान को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। क्यों? अगर खाता इन्सान है तो खाते तो जीव-जन्तु, पशु भी हैं। बाल बच्चे इन्सान पैदा करता है तो वो तो पशुओं के भी होते हैं। घर इन्सान बनाता है वो तो पक्षी, जानवर सब बनाते हैं। फिर धर्मों में सर्वश्रेष्ठ क्यों कहा गया? किस लिये कहा गया? अभी और भी बात है, कई मामलों में पशु आगे हैं। पशुओं के जीते-जी मलमूत्र खाद के काम आता है, वो दूध देते हैं, जिसे हम लोग पीते हैं, वो भी काम आता है और मरणोपरांत हड्डियां, माँस, चमड़ा सब किसी न किसी के काम में आ जाता है। लेकिन इन्सान का तो जीते जी गंदगी संभालने में बड़ी मुश्किलें आ रही हैं। कैसे संभाला जाए? सीवरेज हैं, बड़ा कुछ है, लेकिन बड़ी मुश्किल है। और उधर पशुओं की गंदगी खेतों में डलती है और उससे बहुत उपज होती है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जैसे गऊ माता, उसका तो आपको कल-परसो भी जिक्र किया था हमने, कि उनका तो गोबर, राजस्थान में जब हमारे मकान कच्चे हुआ करते थे, चूल्हे हुआ करते थे, हम लोग पोछा लगाते, हमारी माता जी को हमने ऐसे करते देखा। और भी लोगों को देखा। घरों में जिनके ऐसे कच्चे चूल्हे वगैरहा थे, तो क्यों? क्योंकि उससे बैक्टीरिया, वायरस खत्म हो जाते हैं। अब इन्सान का तो आप जानते ही हैं। कोई वहां खड़ा होना पसंद नहीं करता जहां ये गंदगी पड़ी हो। तो इस मामले में इन्सानों से जानवर आगे निकल गए। क्योंकि जीते जी इन्सान की ये चीजें काम नहीं आती और मरणोपरांत भी चक्कर पड़ जाता है। हड्डिया वगैरहा संभालने में काफी टैक्स लग जाता है, आप जानते हैं, समझदार हैं। और यहां तक कि जलाने में भी या दफनाने में भी समय लगता है। तो कहने का मतलब फिर धर्मों में क्यों कहा गया सर्वश्रेष्ठ? किस लिए कहा गया? क्योंकि इन्सान एक ऐसा है, जो उस ओउम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम का सुमिरन करके, उसका नाम जपकर उसे हासिल कर सकता है। जबकि पशु-परिन्दे चाहते हुए भी दोनों जहान के मालिक ओउम, राम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड को नहीं देख सकते। ये एक ऐसा कार्य है, जो इन्सान को इन्सानियत की बुलंदियों पर ले जाता है। तो ये कर्म भी जरूर कीजिये।
राम-नाम से बढ़ता है आत्मबल
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आप बड़ा अच्छा-सा जवाब देते हैं इस बारे में कि गुरु जी हमारे पास तो समय ही नहीं होता। अजी कमाल करते हैं आप, सही टाइम पर खाना खाते हैं आप, सही टाइम पर आप फ्रैश होते हैं, सही टाइम पर आप नहाते हैं, सही टाइम पर आप दफ्तर जाते हैं, सही टाइम पर हर कार्य कर लेते हैं, उसके लिए तो समय है, क्योंकि उससे स्वार्थ जुड़ा हुआ है, ग़र्ज जुड़ी हुई है। और आपको लगता है भगवान जी की भक्ति करने में क्या फायदा? ये तो हाथों हाथ नकद नारायण मिल जाएगा जब जाएंगे, अब राम जी पता नहीं कब देंगे? कैसे देंगे? अरे भाई राम का नाम जपने से, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड का नाम लेने से आपके अंदर का आत्मबल बढ़ेगा और आत्मबल बढ़ने से आपकी तमाम बीमारियां, जो लगी हुई हैं या आने वाली हैं, उन पर जल्दी से जल्दी आपका कंट्रोल हो जाएगा यानि वो बीमारियां गायब हो जाएंगी और आप इन्सानियत की बुलंदिया पर जाएंगे। तो थोड़ा-सा टाइम… चलो पाँच मिनट, दस मिनट सुबह, दस मिनट शाम को राम का नाम लेकर तो देखिये। जो कर्म किया ही नहीं आपने, कैसे कह सकते हैं कि उससे आपको कुछ मिलता है कि नहीं मिलता। अगर आप पढ़ते ही ना, डिग्रियां लेते ही ना, कोर्स करते ही ना तो नौकरी कहां से मिलती? तो उसी तरह आप सबसे हाथ जोड़कर गुजारिश है, थोड़ा-सा टाइम राम-नाम के लिए जरूर निकाला करो, क्योंकि राम का नाम लेने से ही सारी परेशानियां दूर होती हैं, आत्मबल आता है और जिनके अंदर आत्मबल आता है, वो बुलंदियां छू जाते हैं। उनके अंदर और बाहर किसी चीज की कमी नहीं रहती, टैंशन दूर हो जाती है, सोचने की शक्ति शुद्ध हो जाती है, दिमाग में अच्छे विचार आने शुरू हो जाते हैं और इसी का नाम इन्सानियत है।
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