सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं किसत्संग क्यों जरूरी है? सत्+संग! ‘सत्’ का मतलब है ‘सच’ और ‘संग’ का मतलब है ‘साथ’। लेकिन इस दुनिया में तो हर कोई कहता है कि सच बोलता हूं, मैं सही हूं, लेकिन विश्वास किस पर किया जाए? लेकिन एक ऐसा सच है, जो कभी बदलता है नहीं! जो आदकाल से चला है, चल रहा है, चलता रहेगा और वो कभी झूठा हुआ ही नहीं।
जो लोग उस सच से जुड़ जाया करते हैं, वो तमाम जिंदगी खुशियां हासिल करते हैं और मरणोपरांत आवागमन से आजाद होकर मोक्ष-मुक्ति हासिल कर लेते हैं। ऐसा सच एक ही है और वो है ओ३म, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम। वो मालिक सच है। अब बात आती है कि उसका संग कैसे करें? तो भाई, आप उसका संग करें या न करें, लेकिन वो आपका संग हमेशा करता है। आप उसे मानें या न मानें, लेकिन वो हमेशा आपके अंदर रहता है।
कई लोग पूछते हैं कि जब आदमी गुनाह करता है, बुरे कर्म करता है, क्या तब भी मालिक अंदर होता है? अगर होता है, तो रोकता क्यों नहीं? इस पर आप जी ने फरमाया कि आदमी जब बुरे कर्म करने लगता है, अंदर से एक आवाज आती है कि ‘मत कर ये बुरा कर्म!’ दूसरी एक और आवाज आती है, ‘सारी दुनिया कर रही है, तेरे करने से क्या फर्क पड़ जाएगा!’
यह मन की आवाज होती है। और पहले वाली आत्मा की आवाज होती है कि ‘मत कर बुरे कर्म।’ लेकिन क्या आप आत्मा की आवाज सुनते हैं? कोई कहता है कि भगवान तो बहुत पावरफुल है। अगर हम नहीं मानें, तो वो खुद मनवा सकता है।
इस पर आप जी ने फरमाया कि भगवान ने खुद ये वचन दिए हैं कि वो प्रत्यक्ष इस त्रिलोकी में किसी को नहीं रोकेगा। हां, वो अपने संत, पीर-पैगम्बर, महापुरुष भेजेगा, अपने अवतार भेजेगा। जो कोई उनकी बात को सुनकर अमल करेगा, उन्हें चमत्कार नजर आएंगे, खुशियां मिलेंगी, लज्जतें आएंगी।
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