सच्चा सौदा सुख दा राह, सब बंधनां तों पा छुटकारा मिलदा सुख दा साह… | Dera Sacha Sauda
- संतों के फरमाए हुए वचन जीवन के हर मोड़ पर काम आते हैं। संतों के प्यारे और
- मीठे संदेश रूपी वचनों को इस श्रृंखला में आप पढ़ रहे हैं।
- अपने सतगुरु पर दृढ़ विश्वास रखों
मार्च 1958 : स्थान रामपुरिया बागड़ियां (हरि)। पूजनीय बेपरवाह साईं मस्ताना जी महाराज ज्ञानपुरा धाम, रामपुरिया बागड़ियां आश्रम में पधारे। इस आश्रम की देखरेख की सेवा दादू बागड़ी के हवाले थी। सेवादार सख्त मेहनत द्वारा प्राप्त कमाई करके ही खाते और कल के भोजन की चिंता नहीं करते थे। सतगुुरु पर दृढ़ विश्वास रखते हुए सेवा-सुमिरन में लगे रहते। अचानक पूज्य मस्ताना जी महाराज आश्रम में पधारने पर विचार करने लगे। (Dera Sacha Sauda)
कि सतगुुरु जी के साथ कुछ साध-संगत भी है, और भी साध-संगत दर्शनों के लिए व सत्संग सुनने के लिए आएगी पर आश्रम में तो इस समय मात्र एक पाव गुड़ ही है। सभी भक्त लंगर पानी के प्रबंध के बारे में सोचने लगे तो भोलेपन में ब्रह्मचारी सेवादार दादू ने अपने दिल की बात मुर्शिद के सामने प्रकट कर दी। शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘देखो, पहले इधर एक श्मशान भूमि थी। अब डेरा बन गया है, बहुत से लोग सत्संग में आएंगे और देखेंगे। जो तू कहता है राशन किधर से आएगा तो पुट्टर फिक्र न करो, यहां तो सतगुरु के माल का ढ़ेर लग जाएगा। (Dera Sacha Sauda)
कोई कमी नहीं रहेगी।’’ शहनशाह जी यहां ग्यारह दिन तक ठहरे। हर रोज सत्संग होता व कमाल के नजारे मिलते। दूर-दराज से बहुत साध-संगत आती, रोज खूब मिठाईयां तथा देसी घी का हलवा बनता और साध-संगत को खिलाया जाता। नाम-दान लेने वाले नए जीवों की लाईनें लग जाती। कई-कई बार तो आश्रम में एक दिन में एक से अधिक बार भी आपजी ने नाम-दान की दात बख्शी। (Dera Sacha Sauda)
भारत-पाक के मध्य युद्ध और आश्रम का पीला रंग
दिसम्बर 1971 की बता है। भारत पाकिस्तान के मध्य युद्ध की घोषणा हो चुकी थी। परमपिता जी रूहानी सत्संग यात्रा पर बाहर गए हुए थे। हवाई हमले भी प्रारंभ हो गए थे। सरसा के आस-पास भी कई बम गिरे। सरकारी घोषणा हो गई कि रात को किसी ने प्रकाश नहीं करना और न ही आग जलानी है। आश्रम में अभी कुछ दिन पहले, नवम्बर 1971 में पूजनीय बेपरवाह जी के जन्म-दिन भण्डारे के शुभ अवसर पर ही रंग-रोगन किया गया था और सफेद रंग की वजह से पूरा आश्रम रात को चन्द्रमा की रोशनी में चमक रहा था। (Dera Sacha Sauda)
पूजनीय परमपिता जी के सत्संग यात्रा में सरसा आश्रम से बाहर जाने के कारण आश्रम के सत् ब्रह्मचारी सेवादारों ने विचार किया कि अब क्या किया जाए? अंत में ये निर्णय लिया कि आश्रम में जितने भी छायावान हैं, उनसे सारे आश्रम को ढ़क दिया जाए और ऐसा ही किया गया। युद्ध प्रारंभ होने के दो दिन बाद परमपिता जी सुबह लगभग 9 बजे सरसा आश्रम पधारे। जो समस्त सत् ब्रह्मचारी सेवादार उदास थे, वे सभी परमपिता जी के दर्शन करके प्रसन्न हो गए। पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा घबराओ नहीं, इस तरह करो कि सारे छायावान उतार दो। (Dera Sacha Sauda)
क्योंकि रात को ओस पड़ती है ये खराब हो जाएंगे। अपने सारे दरबार को पीला रंग करते हैं, तुम तैयारी करो, हम अभी गुफा में होकर आते हैं।’’ परमपिता जी के आदेशानुसार सभी छायावान उतार दिए गए और दूसरी तरफ पीला रंग, ब्रश, कूची व डिब्बे आदि आवश्यक्तानुसार समस्त सामान तैयार कर लिया गया। थोड़े समय के उपरांत ही परमपिता जी गुफा से बाहर आ गए और हुक्म फरमाया,‘‘ बेटा! काम शुरु करो, हमने सारे आश्रम को पीले रंग से रंग देना है।’’ इसके साथ ही सत् ब्रह्मचारी सेवादार भाई कुलवंत सिंह को प्रसाद लेकर आने का हुक्म फरमाया। सभी को प्रसाद दिया गया।
‘अहंकार, घमंड को हमेशा मार पड़ती है’ | Dera Sacha Sauda
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सतगुरु, मुर्शिद-ए-कामिल वो संदेश देते हैं, जो जीवोंके दोनों जहानों के काज सवार दे। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इस धरती पर जब तक इन्सान रहे, तब तक मालिक की दया-मेहर, रहमत बरसे, गम, दु:ख, दर्द, चिंता, परेशानियों से जीव आजाद हो जाए और मरणोपरांत आत्मा आवागमन में न जाकर जन्म-मरण के चक्कर से आजाद हो जाए। इसलिए संत, पीर-फकीर आते हैं, जीवों को समझाते हैं और इन्सानियत का पाठ पढ़ाया करते हैं। (Dera Sacha Sauda)
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जो वचन सुनकर मान लेते हैं, वचनों पर अमल करते हैं, उन्हें वो खुशियां नसीब होती हैं, वो रहमो-करम बरसता है, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की होती। संतों का काम रास्ता दिखाना है, चलना इन्सान का काम है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संत रास्ता दिखाते हैं कि भाई! ये रास्ता है जो तेरी मंजिल तक जाएगा, तुझे अल्लाह, वाहेगुरु, राम से मिलाएगा। आगे जीव पर निर्भर है, वो उस रास्ते पर चलता है या नहीं चलता। वचन मानता है या नहीं मानता। अगर उस रास्ते पर चले, वचन माने तो अंदर-बाहर कोई कमी नहीं रहती और इन्सान खुशियों के काबिल बनता चला जाता है। (Dera Sacha Sauda)