Hardworking Ramu: अक्सर बचपन में बच्चे मां-बाप की गोद में खेलते हैं। दोस्तों के साथ उछल-कूद मचाते हैं पर रामू को यह सब नसीब नहीं हुआ क्योंकि बचपन में ही उसके माता-पिता की एक रेल दुर्घटना में मौत हो गई थी। वह अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था।
उस समय वह मात्र आठ वर्ष का था। रेल में अपने माता-पिता के साथ वह भी था लेकिन संयोगवश वह बच गया। रेलवे के एक अधिकारी ने उसे आश्रय दिया। उस अधिकारी के अपने दो बच्चे थे जो रामू से काफी बड़े थे। वे दोनों रामू को बहुत प्यार करते थे। अधिकारी की पत्नी भी रामू से सहानुभूति रखती थी। रामू घर के छोटे-मोटे कामों में उनकी मदद कर देता था। Hardworking Ramu
दिन बीतते गए। रामू को एक बात की हैरानी थी कि उस अंकल ने कभी उससे उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में नहीं पूछा था जबकि वह पढ़ना चाहता था। जब उसके माता-पिता का देहांत हुआ तो वह अपने गांव के सरकारी स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ता था। वह शुरू से ही पढ़ने में काफी होशियार था।
दीवाली का त्यौहार आया। अंकल ने अपने बच्चों के लिए नए कपड़े सिलवाए व उन्हें खूब सारे पटाखे लाकर दिए और फिर उन्हें रामू का ख्याल आया। उन्होंने रामू से पूछा, बेटा, तुम्हें दीवाली पर क्या चाहिए-पटाखे व नए कपड़े या फिर कुछ और…..।’
रामू बोला, मुझे न तो पटाखे चाहिए व न ही नए कपड़े। मैं तो पढ़ना चाहता हूं।’ बात सुनकर अंकल को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसकी पढ़ाई के बारे में सोचा ही नहीं था।बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु बाहर चले गए थे।
उन्होंने अगले वर्ष रामू को चौथी कक्षा में प्रवेश दिलवा दिया। अब रामू मन लगाकर पढ़ने लगा। वह पहले की तरह ही आंटी के साथ काम भी करवाता था। Hardworking Ramu
एक बार आंटी सख्त बीमार पड़ गईं। रामू ने उनकी खूब सेवा की। वह सुबह जल्दी उठता। रसोई के कामों में घर की नौकरानी की मदद करता। बाजार से आंटी के लिए दवा व फल लाता। यदि अंकल को समय न होता तो सब्जी व अन्य सामान भी वही खरीदकर लाता। आंटी को समय पर दवा खिलाता। वह उनका पूरा ख्याल रखता था।
इस दौरान वह काफी दिन तक स्कूल नहीं जा पाया था। परीक्षाएं नजदीक आ रही थीं। अंकल को चिंता थी कि रामू फेल हो जाएगा लेकिन जब उसका परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तो वह प्रथम श्रेणी से पास हुआ था।
सब यह देखकर दंग रह गए।
अंकल ने रामू से पूछा, बेटा, तुमने पढ़ाई कब की। पूरा दिन तो तुम आंटी की सेवा में ही…।’
रामू बोला, अंकल, रात को जब आप सब सो जाते थे तो मैं अपने कमरे में पढ़ाई कर लेता था।’
इसकी बात सुनकर अंकल व आंटी की आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने उसे गले से लगा लिया।
अपनी लगन व परिश्रम से वही अनाथ रामू आगे चलकर डॉक्टर बन गया। -भाषणा गुप्ता
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