मासूम बच्ची पर पंचायत का कठोर फरमान

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देवेंद्रराज सुथार    
राजस्थान के बूंदी जिले में छह साल की खुशबू से अनजाने में टिटहरी का अंडा फूट गया तो इस पर खाप पंचायत ने मासूम को जाति से बाहर निकालने का फरमान जारी कर दिया। दरअसल, खुशबू दो जुलाई को पहली बार स्कूल गई थी। उसी दिन स्कूलों में बच्चों को दूध पिलाने की योजना शुरू हुई थी। दूध के लिए बच्ची लाइन में लगी तो टिटहरी के घोंसले पर पैर चला गया और वह फूट गया। अंडा फूटते ही मानो नन्हीं खुशबू के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। बूंदी के हरिपुरा गांव की पंचायत ने खुशबू की न उम्र का ख्याल किया और न ही बालमन की गलती को बड़ा मन रखकर माफ करने की दरियादिली दिखाई। बल्कि जाति से बाहर की गई खुशबू ने घर के बाहर टिनशेड में तेज गर्मी में पूरे दस दिन बिताए। इन दस दिनों में लोगों ने खुशबू के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करने में कोई कसर नहीं रखी।
बेटी को इस हाल में देखकर मां का दिल जरूर पसीजा लेकिन पंचायत के फरमान के डर के कारण वो नजदीक ना जा सकी। मां की ममता बेटी को छूने के लिए तरसती रही। इतना ही नहीं, पंचों ने बच्ची के पिता से जुर्माने के तौर गाय, मछली और कबूतरों के लिए चारा, आटा और ज्वार के साथ खुद के लिए एक किलो नमकीन और अंग्रेजी शराब की बोतलों की मांग भी की। मांग पूरी नहीं करने पर लाचार पिता को धमकाने से भी पंचायत बाज नहीं आयी।
दरअसल, इस तरह खाप पंचायत के पंचों की तानाशाही का यह कोई पहला मामला नहीं है। आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों से खाप-पंचायतों के इस तरह के तुगलकी फरमान सुर्खियों में रहते है। ऐसा ही थोड़े दिनों पहले एक ओर मामला राजस्थान के ही धौलपुर जिले में बल्दियापुर गांव में देखने को मिला था। जहां के पंच पटेलों ने लड़कियों के जींस व टॉप पहनने तथा मोबाइल रखने पर यह कहकर पाबंदी लगाई कि इससे मान-मयार्दाएं टूट रही हैं व संस्कार खत्म हो रहे हैं।
मगर वहां की लड़कियों ने इस पाबन्दी को मानने से इंकार कर दिया। वाकई! मुझे इन लड़कियों में वंडर वूमेन दिखी। वह वंडर वूमेन जो निर्भीक होकर समाज की पुरापंथी सोच को खुली चुनौती देकर उसका मर्दन करती है। जो हक के साथ अपनी आजादी का आकाश छीन लेती है। जिनकी आवाज समाज के ठेकेदार चाह कर भी दबा नहीं पाते। इन लड़कियों के असमां को पैरों में झुका देने वाले हौंसले को देखकर फर्क  होता है। दूसरी ओर पंच पटेलों व खाप पंचायत और कट्टरवादी धार्मिक संगठनों के द्वारा बार-बार लड़कियों के मनचाहे कपड़े पहनने पर बंदिशों के फरमान सुनकर बड़ा ही दु:ख होता है। उनकी दकियानूसी सोच क्यों नहीं बदलती। आखिर जींस-टॉप पहनने और मोबाइल रखने में हर्ज ही क्या है?
पहनावे से मयार्दाएं कभी नहीं टूटती और आज के तकनीकी युग में आप किसी को मोबाईल से भी दूर नहीं कर सकते। इसी तरह आप पुरुषों की खराब नीयत के कारण लड़कियों को घूंघट में नहीं रख सकते। जहां नजर और नजरिया बदलने की जरुरत वहां केवल कपड़े बदलने से क्या काम चल जायेगा। रूढ़िवाद व दकियानूसी मानसिकता से ग्रसित पंच तो चाहेंगे ही कि उनकी सोच के अधीन रहकर नई पीढ़ी जीवन बसर करे। लेकिन, नई पीढ़ी का खोखली एवं पुरानी मान्यताओं के साथ जीवन जीना असंभव है। इन हालातों में पंचों को जमाने के साथ चलना सीखना होगा। उन्हें ये जान लेना होगा कि समाज और देश उनके बनाये गये नियमों पर नहीं, बल्कि संविधान के नक्शे-कदम पर चलेगा। जब तक ऐसी पंचायतें अपने ज्ञान और अनुभव से समाज को दिशा दे तब तक तो ठीक है, लेकिन जब इस तरह बेतुके फैसले देने पर उतारू हो जाए, तो उन्हें भंग कर देना ही बेहतर होगा।
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