खुशियाँ सालों-साल
साल का हर माह बेमिसाल।
जनवरी से होता जिसका आगाज
वाली दो जहान के जन्म माह पे सबको नाज।
फरवरी में किया महारहमोकर्म
तोड़े काल के सारे भ्रम।
रूहानियत का सिलसिला यूँ चल पड़ा,
मार्च में काल औंधे मुंह गिर पड़ा।
जब मीत ने लगाई नाम की अर्जी
चली ना काल की कोई भी मर्जी।
अप्रैल में बना सच्चे सौदे का एक और इतिहास,
स्थापना दिवस और जाम-ए-इन्सां दोनों एक साथ।
मई में काल को अपनी माई की याद आई
कर वचन मस्ताना जी ने सत्संग की महिमा गाई।
जून और जुलाई में गर्मी होती है आम
घर से निकलने पर लगता थोड़ा विराम।
फिर से अगस्त लाता मौसम-ए-बहार,
एम.एस.जी ने लिया फिर से अवतार।
सितम्बर माह में किया महापरोपकार,
हम थे, हम है और हम ही रहेंगे
वचनों से करवाया सबका सरोकार।
हो जन्म, मृत्यु या किसी की शादी,
मनाना सीखाया बनके परमार्थी।
नवंबर पर होता नाजो से नाज,
मस्ताना पिता आए मानस चोला धार।
साल जाता सारा मुर्शिद की याद में,
मिलती ज्योति नेत्रहीनों की आँख में।
हर दिन बनती प्रेमियों की ईद-दिवाली
सतगुरु करते दोनों जहां में रखवाली।।
रविंदर खोड़ा, गाजियाबाद