सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि सत्संग एक ऐसी जगह है यहां इन्सान जब भी चल कर आता है, तो उसके इस जन्म के पाप कर्म और संचित पाप कर्म खत्म हो जाते हैं। पर पूर्णत: खत्म तभी होते हैं जब इन्सान सत्संग पर अमल करता है। वचन सुनना बहुत बड़ी बात है, पर सुनकर मान लेना सबसे बड़ी बात है। पूज्य जी फरमाते हैं कि कामवासना, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार, मन व माया इन सातों का ऐसा चक्रव्यूह है, मजाल नहीं कि इन्सान इससे निकल सके। दुनिया इन सातों में बुरी तरह से उलझी हुई है। मालिक का प्यार, मोहब्बत को हासिल करना हो, तो इन्सान सत्संग में चल कर आए। पीर-फकीर, गुरु, मुर्शिद-ए-कामिल सत्संग में परमपिता परमात्मा की बात सुनाते हैं, जो इन्सान बात सुन कर अमल कर लेते हैं, उन्हें अंदर-बाहर कोई कमी नहीं रहती।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जिसका दसवां द्वार खुलता है, उसे आत्मिक शांति बेइंतहा आ जाती है, इतना आत्मबल पैदा हो जाता है कि वो कभी कामवासना, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, मन व माया में नहीं उलझता। इतना बलवान हो जाता है कि वह मन को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता, शांतचित रहता है। शांतचित रहता हुआ, अपनी मंजिल पर आगे बढ़ता रहता है। उसके अंदर सहन शक्ति बेहद बढ़ जाती है, सहनशक्ति का बढ़ना आत्मबल का ही एक रूप है। आप जी फरमाते हैं कि यह घोर कलियुग का समय है और इस घोर कलियुग में आदमी हद से ज्यादा गिरते जा रहे हैं। दिखने में कुछ और करने में कुछ और, आज आम इन्सानों की ये फितरत बन गई है।
आप जी फरमाते हैं बुरे कर्म करना, भक्ति को खत्म करता है, इसलिए बुरे कर्म न करो। इन्सान पीर-फकीर के वचनों पर 100 प्रतिशत अमल करता है तो राख की चुटकी भी उसके लिए हीरे-जवाहरात बन जाया करती है। जो वचनों पर अमल नहीं करता तो हीरे-डायमंड भी राख बन जाया करते हैं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि घोर कलियुग के समय में इन्सान सुमिरन का पक्का बने, सुबह-शाम नियमित सुमिरन करे, सेवा करे, दृढ़ यकीन रखे, वचनों पर अमल करे तो खुशियां अपने-आप चली आती हैं। इसलिए सेवा किया करो, सुमिरन किया करो, सत्संग में आया करो व सत्संग सुनकर अमल कमाया करो। ताकि जीवन के आदर्श की प्राप्ति हो, आत्मा, परमात्मा का मेल हो और जीते-जी आप परमानंद की प्राप्ति कर सकें।
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