सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इस घोर कलियुग में इन्सान अपने आप में मस्त रहता है। फिर अपने ही किये कर्मों से दु:खी होने लगता है और दोष किसी न किसी को देता रहता है। अगर जन्मों-जन्मों से आत्मा के साथ जुडे कर्मों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको सुमिरन करना ही होगा। मालिक के प्यार-मोहब्बत में अगर आप उन्नति करना चाहते हैं तो सुमिरन, परमार्थ को गहना बनाना होगा। (Ram Rahim)
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सुमिरन के पक्केबनने से इन्सान के अंदर आत्म-विश्वास भर जाता है और उसकी सहनशक्ति बहुत बढ़ जाती है। वरना काम-वासना, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार, मन-माया इन्सान को तड़पाते रहते हैं, व्याकुल किये रखते हैं। कभी कोई चीज हावी हो जाती है तो कभी कुछ हावी हो जाता है। इनसे बचाव का एकमात्र उपाय मालिक का नाम है। (Ram Rahim)
लगातार आधा घंटा सुबह-शाम सारी उम्र सुमिरन करना है, यह नहीं कि पांच-सात दिन किया और कहने लगा कि मेरा मन काबू क्यों नहीं आया या काम-वासना, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार मेरे काबू में क्यों नहीं आ रहे। जब लगातार सुमिरन के पक्केबन जाओगे तो कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अपने आप ही आपके गुनाह, बुरे कर्म अंदर से निकलते चले जाएंगे और आप मालिक की दया-दृष्टि के काबिल बनेंगे। (Ram Rahim)
लगातार किया गया सुमिरन दिव्य दृष्टि बख्श देता है। जो इन्सान को कण-कण में रहने वाले अल्लाह, राम के नूरी स्वरूप के दर्शन करवा देता है। जो गुरुमंत्र, मेडिटेशन आपको मिलता है, नियम बना लो कि आधा घंटा सुबह-शाम लगातार इसका जाप करूंगा। तभी आपके अंदर से बुरी आदतें निकल सकेंगी। आपके अवगुण दूर होेंगे और आप मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल बन सकेंगे।
आप जी फरमाते हैं कि लगातार सुमिरन करने में कोई जोर तो आता नहीं। हमने देखा है कि लोग बिलकुल फ्री होते हैं। कोई काम-धंधा न होने के बावजूद भी मन के बहकावे में बहकते चले जाएंगे। मन एक सब्जबाग दिखाता है, वो पसंद नहीं तो दस और दिखाता है। अगर वो भी पसंद नहीं तो दस और दिखाता है। मन इन्सान को बुराइयों में, बुरे कर्मों में उलझाकर रख देता है। (Ram Rahim)
ताज्जुब की बात है कि लोग उसमें बहकते रहेंगे। उसके मजे लेते-लेते जिंदगी कब बेमजा हो जाए, कुछ भरोसा नहीं। उसमें उलझ जाते हैं, पागल हो जाते हैं, उसमें खो जाते हैं। कुछ भी हासिल नहीं होता, बजाय उसके अगर सुमिरन करें। अगर उस टाइम में भक्ति-इबादत करें तो शायद इन्सान अपने मन से लड़ सकें। अपनी बुराइयों को छोड़ सके और अपनी परेशानियों से आजाद हो सकें। (Ram Rahim)