आजाद भारत में औसतन हर दूसरे-तीसरे दिन एक सफाईकर्मी की मौत गटर साफ करने के दौरान होती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद केंद्र सरकार ने इन मौतों को रोकने के लिए तो अभी तक ठोस पहल नहीं शुरू की है। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़ों के मुताबिक हर 5 दिन में एक सफाई कर्मचारी की मौत गटर में होती है। देश भर में मैला प्रथा के खात्मे और सीवर-सेप्टिक टैंक में मौतों को रोकने के लिए काम कर रहे संगठन- सफाई कर्मचारी आंदोलन ने देश भर से करीब 1800 ऐसी मौतों का आंकड़ा जुटाया है। सेप्टिक टैंक यानी मलकुंड की सफाई मानव द्वारा करवाना हमारे देश में आम बात है। कई सालो से यह प्रथा चली आ रही है। हमें विकासशील देश का टैग मिला हुआ है जो कि कब विकसित में तब्दील होगा पता नहीं।
सेप्टिक टैंक में काम करने वाले लोग ज्यादातर गरीब वर्ग से होते हैं जिन्हें हमारे देश में अंग्रेजी शब्दावली के अनुसार शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब के नाम से जाना जाता है और देश की भाषा के अनुसार ना जाने कौन-कौन से जाती का नाम दिया जाता है। आजादी के 73 सालों बाद भी आज सेप्टिक टैंक कि सफाई ये भीतर जाकर करते हैं, इनके पास मशीनों से साफ करने के लिए उपयुक्त संसाधन बहुत ही कम हंै। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे शहरों में आज भी सेप्टिक टैंक कि सफाई लोग भीतर जाकर करते हैं, और इसमें कुछ लोगों की मौत भी हो जाती है, पर बात वही है ना चलता है तो चलने दो। देश के विभिन्न भागों में मलकुंड की सफाई करते हर साल सैंकड़ों लोग अकाल मौत के शिकार हो जाते हंै। ये लोग सफाई करते समय वे जहरीली गैसों को बर्दास्त नहीं कर पाए।
सेप्टिक टैंक के भीतर बहुत सी जहरीली गैसें होती हैं जिससे कि उसके भी भीतर जो भी जाता है, वह उसमें ठीक तरह से सावधानी ना लेने के कारण या गैस ना बर्दास्त करने के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठता है। यह गैसें बहुत जहरीली होती हैं जो कि श्वास द्वारा भीतर जाती हंै और दिमाग को सुन्न कर देती है जिससे भीतर गया हुआ व्यक्ति अपना संतुलन खोने लगता है। मान लिया की हम विकासशील देश हैं हमारे पास गांव देहात में उचित मशीनी उपकरणों की कमी होती है लेकिन ये मान लेना कठिन है की शहरों में ये सुविधा उपलब्ध ना हो खासकर के देश के प्रमुख महानगरों में, तो सुनकर बड़ा ही दुख होता है।
हमारे देश में औसतन 10 से 15 मौतें प्रति माह सिर्फ सेप्टिक टैंक में भीतर सफाई करते समय जहरीली गैसों के प्रभाव से होती हंै, सरकार इन मुद्दों को गंभीर रूप से नहीं लेती इसी वजह से इतनी दिक्कतें आती हैं। जो लोग इस काम को करते हैं वे अपनी रोजी रोटी के लिए करते हैं, पर उनको रोजगार सुविधापूर्ण दिया जाए तो काम बहुत ही आसानी से होगा। इस सफाई प्रणाली के कार्य में पिछड़े वर्ग के लोग काम करते हैं जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही आते हैं लेकिन वोट बैंक की सरकारें इन्हें भी बाटने में कोई कसर नहीं छोड़ती।
एनडीए के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। आधुनिकीकरण पर बल देकर इन कार्यों को सुचारू रूप से चलाने की आवश्यकता है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम कल भी विकासशील थे और आने वाले कल में भी विकासशील ही रहेंगे क्योंकि यही सब को छोटे छोटे कार्यों में सुधार करने से ही देश आगे बढ़ेगा, और खासकर उन ठेकेदारों पर सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है जो इन हथकंडो को अपनाते है। अगर काम करवाने वाला ही सुधार जाए तो तो करने वाले को तो कोई तकलीफ होगी ही नहीं।
-हर्ष शर्मा
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