राजस्थान में आरक्षण के लिए गुज्जरों का आंदोलन एक बार फिर केंद्र व राज्य सरकार के लिए सिरदर्दी बन गया है। गुज्जर नौकरियों में 5 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। अपने पिछले हिंसक आंदोलन के बाद प्रसिद्ध हुए गुज्जरों ने इस बार भी अपने उसी अंदाज में सड़कों को जाम और कानून व्यवस्थ को चौपट किया। अब यह आंदोलन सरकार के लिए चुनौती बना हुआ है। इससे पूर्व वसुंधरा राजे सरकार ने गुज्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण देकर मामले को ठंडा कर दिया था, लेकिन पेंच अदालत में जाकर फंस गया। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है और यह समय केंद्र सरकार के विवेक की कसरत करवाएगा।
गुज्जरों का तर्क इस कारण मजबूत है कि केंद्र उच्च वर्गों के पिछड़ों के लिए दस प्रतिशत आरक्षण संशोधन बिल पास कर चुका है जिस पर सुप्रीम कोर्ट की 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण न देने की रूलिंग भी लागू नहीं होती। इन हालातों में गुज्जरों को शांत करने के लिए केंद्र के पास कोई सरल तर्क व जवाब नहीं है, दूसरी तरफ राज्य की कांग्रेस सरकार ने गुज्जरों का साथ देने की बात कहकर एनडीए सरकार के लिए राजनैतिक चुनौती भी पैदा कर दी है।
इस बार मामले को किसी राजनैतिक पैंतरे से सुलझाने की बजाय कानूनी तरीके से सुलझाने की आवश्यकता है। केंद्र सरकार को आरक्षण संबंधी स्पष्ट व ठोस नीति अपनानी होगी। यदि गुज्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण मिला तो अन्य कई वर्ग भी आंदोलन करने पर उतारू हो जाएंगे। केंद्र में सत्तापक्ष भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल इस कारण भी है कि गुज्जरों को 5 प्रतिशत आरक्षण पहले राज्य की भाजपा सरकार ने ही दिया था। गुज्जरों का राजस्थान में बड़ा वोट बैंक है
जिसकी मांग को अनदेखा कर राजनैतिक तौर पर कोई भी पार्टी बड़ा नुक्सान नहीं उठाना चाहती, दूसरी तरफ गुज्जर आंदोलन उग्र होने के कारण सरकार कानून व्यवस्था को भी दांव पर नहीं लगा सकती तो केंद्र व राज्य सरकार के लिए यही बेहतर है कि राज्य की भलाई के लिए राजनैतिक पैंतरे खेलने की बजाय समझदारी से शांति व्यवस्था कायम रखी जाए। गुज्जर भाईचारे को भी यह समझना होगा कि वे राजनैतिक पार्टियों की जाति वोट बैंक की नीतियों के झांसे में न आकर मांग को जिम्मेदारी से निपटाएं।
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