राजस्थान में सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थाओं में पांच फीसद आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जर समुदाय ‘छठी’ बार आंदोलित हुए हैं। आंदोलन के चलते राजस्थान से लेकर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली तक यातायात असुगम हो गया है। रेलगाड़ियों का आवागमन रूक गया है। कई जगहों पर अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। आंदोलन से अजमेर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। आंदोलनकारियों ने रेल पटरियों पर कब्जा किया हुआ है। इस स्थिति के लिए सरकारों की उनके साथ वादाखिलाफी कहें, या फिर आंदोलन की आड़ में गुर्जर नेताओं की सियासी अखाड़े में सहभागिता की चाह! पिछले तेरह सालों में उनको छठी बार आंदोलन करने की नौबत क्यों आई? क्यों उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। इस गणित को भी समझना जरूरी है।
दरअसल प्रदेश की नवोदित कांग्रेस सरकार ने हाल में संपन्न हुए प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान कांगे्रसी नेताओं ने गुर्जर नेताओं के साथ बैठक कर उनसे वादा किया था कि अगर उनकी सरकार आती है तो बीस दिन के भीतर उनकी पूर्ववर्ती सभी मांगे पूरी कर दी जाएंगी। इसके बाद गुर्जर समुदाय बड़ा खुश हुआ और उसके प्रदेश में आयोजित हुए विधानसभा चुनाव में तकरीबन वोट कांग्रेस को दिया। लेकिन कांग्रेस चतुराई के साथ वोट हथियाने के बाद पलट गई। अब सरकार को बनें करीब दो माह होने को हैं। पर, मांगे पूरी नहीं हुई। इस बावत जब गुर्जर नेताओं ने सरकार से संपर्क साधा तो सीधे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से जबाव मिला कि आरक्षण देना प्रदेश सरकार का काम नहीं, इसके लिए केंद्र सरकार से संपर्क करें।
उनके वादाखिलाफी वाले उस बयान के बाद गुर्जर समुदाय एकदम आगबबूला हो गया, खुद को ठगे महसूस करने लगे, तभी खुन्नस खाकर गुर्जर समुदाय के लोग फिर से आंदोलन की राह पर निकल पड़े, जिसका नतीजा सामने है। गुर्जर आंदोलन के चलते प्रदेश व आसपास के इलाके बुरी तरह से प्रभावित हो चुके हैं। गुर्जर आंदोलन की सबसे खास बात यही रहती है, वह सबसे पहले रेल पटरियों को निशाना बनाते हैं। उनको पता होता है कि राज्य से दूध की सप्लाई सबसे ज्यादा होती है। दूध की खेप रेलगाड़ियों से जाती है, इसलिए सबसे पहला टारगेट वह रेल को ही करते हैं।गौरतलब है कि गुर्जरों की मांगे आज की नहीं हैं, सालों पुरानी हैं। पहला आंदोलन सन 2006 में हुआ था। उसके बाद सन 2007, 2008, 2010 फिर 2015 में हुआ, और अब 2019 में किया जा रहा है। हर बार उनको विभिन्न सरकारों द्वारा सिर्फ आश्वासन ही मिला। कमोबेश इस बार भी कुछ ऐसा ही होने की संभावना है। कांग्रेस ने मुंगेरी लाल के हसीन सपने दिखाकर वोट प्राप्त कर फिर उनको उसी राह पर छोड़ दिया। गुर्जरों के साथ हर सियासी दल और प्रत्येक सरकार ने मात्र फरेब ही किया। लेकिन उस फरेब की टीस गुर्जर समुदाय के लोग आम जनता को परेशान करके कम कर रहे हैं।
उनके गुस्से का प्रकोपभागी आमजन हो रहे हैं। आंदोलनकारियों ने आवागमन के सभी रास्तों पर कब्जा किया हुआ है। तोड़फोड़ और आगजनी की भी खबरें आ रही हैं। उनके आंदोलन की कवरेज मीडिया में कितनी मिल रही है इस पर उनका खास ध्यान रहता है। उनको पता है कि जितनी ज्यादा चर्चा मीडिया में होगी, आंदोलन उतना सफल माना जाएगा। गुर्जर समुदाय तत्काल प्रभाव से मौजूदा गहलोत सरकार में सरकारी नौकरियों में पांच फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं। जिसे सरकार ने फिलहाल सिरे से नकार दिया है। इसके बाद गुर्जर संघर्ष समिति के सदस्यों ने एक महापंचायत बुलाई। महापंचायत में आंदोलन का खाका तैयार किया गया। इसके बाद जीएसएस के सदस्य सवाई माधोपुर के पास मलारना डुंगर रेलवे स्टेशन पहुंचे और उन्होंने रेलमार्ग पर ट्रेनों का परिचालन बाधित करने का निर्णय लिया। आंदोलन के पहले दिन उन्होंने सबसे पहले अवध एक्सप्रेस को रोका फिर उसके बाद और कई मालगाड़ियों को सवाई माधोपुर में रोक दिया।
आंदोलन की अगुआई करने वाले गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का कहना है कि अपने समुदाय के लिए उसी तरह पांच फीसदी आरक्षण चाहते हैं, जिस तरह हाल ही में केंद्रसरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है। ऐसा ही प्रावधान लाने की उन्होंने प्रदेश सरकार के समक्ष मांग रखी, जिसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। तब मजबूरन उन्हें आंदोलित होना पड़ा। आंदोलन से अजमेर जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है। प्राइमरी स्कूलों को भी आंदोलकारियों ने बंद करवा दिया है। बाजार भी बंद पड़े हैं। लोगों को घरों से भी नहीं निकले दे रहे है। दरअसल आंदोलन में इस तरह की तानाशाही नहीं होनी चाहिए। लोकतंत्र में अपनी मांगों को मनवाने का सबको सामान्य अधिकार है लेकिन मांगों के लिए अहिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए, न की हिंसा का। किसी दूसरे को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लेकिन आज का चलन यही है कि लोग दूसरों को परेशान करके ही अपनी मांग मनवाने में भलाई समझते हैं।
दरअसल इस बार आंदोलनकारी पूरी तैयारियों के साथ रेल पटरियों पर बैठे हैं। आरक्षण मिलते तक वह पटरियों से नहीं हटेंगे। इस बावत सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल आंदोलनकारियों के साथ विफल बैठक कर चुका है। लेकिन इस बार सरकार ने भी सख्ती से निपटने के लिए पूरे इंतजाम किए हुए हैं। गुर्जर समुदाय पिछले 13 सालों से अपनी मांगों को लेकर आंदोलित हैं। इस दौरान उनके समर्थकों पर अबतक 754 मुकदमें भी दर्ज हुए, जिनमें 614 केस पूर्ववर्ती सरकारों ने वापस भी लिए। 35 गंभीर मामले ऐसे हैं जिनकी जांच चल रही है। गुर्जर आंदोलन पर केंद्र सरकार की भी नजर है। केंद्र सरकार को आमजनों की चिंता है, ताकि इस मूवमेंट से कोई बेकसूर हताहत न हो। इस बावत केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से बात भी की है। कोई बीच का रास्ता निकाल कर इस आंदोलन को खत्म किया जाए। आम चुनाव के ऐन वक्त पर आयोजित इस आंदोलन से कुछ सियासी दलों को नुकसान भी हो सकता है। ऐसी संभावनाओं को देखते हुए, किसी भी तरह इस मूवमेंट को खत्म करने की कोशिशें भी की जा रही हैं।
लेखक: रमेश ठाकुर
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