जीएसटी के राह में रोड़े

GST

जीएसटी काउंसिल की 31 वीं बैठक में शनिवार को दो दर्जन वस्तुओं व सेवाओं पर जीएसटी घटाया गया। 28 प्रतिशत के उच्चतर स्लैब से 6 चीजों को घटाकर 18 प्रतिशत के स्लैब में लाया गया है। वित्त मंत्री जेटली के अनुसार अब 28% के प्रतिशत के स्लैब में केवल 28 आइटम्स बची हैं। कर दर में संशोधन का यह निर्णय आगामी नव वर्ष के दिन से प्रभावी होगा। वित्त मंत्री के अनुसार जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाना एक सतत प्रक्रिया है। साथ ही वित्त मंत्री का कहना है कि 28% की दर का धीरे-धीरे पटाक्षेप हो जाएगा।

उनके अनुसार अगला लक्ष्य परिस्थिति अनुकूल होने के साथ सीमेंट पर जीएसटी में कमी करना है। सरकार का मानना है कि 23 वस्तुओं और सेवाओं में जीएसटी में कमी करने से राजस्व पर 5,500 करोड़ रुपए का प्रभाव पड़ेगा। एक तरह से सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले आम लोगों और कारोबारियों को बड़ी छूट प्रदान की है। इसके अतिरिक्त 100 रुपए तक के मूवी टिकट पर जीएसटी घटाकर 12% और 100 रुपए से ज्यादा के मूवी टिकट पर जीएसटी स्लैब 28 फीसदी से घटाकर 18% किया गया है। बचत खाते और जन धन खातों को बैंक द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को भी जीएसटी से छूट देने का फैसला किया गया है।

स्पष्ट है कि सरकार की रणनीति है कि जीएसटी को धीरे-धीरे सरलीकृत किया जाए। लेकिन यहीं से जीएसटी के क्रियान्वयन पर गंभीर प्रश्न उठने शुरू हो जाते हैं। जीएसटी को “गुड एंड सिंपल टैक्स” के रुप में प्रचारित किया गया,लेकिन कहीं भी इसकी यह प्रकृति देखने को नहीं मिली। स्वयं सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम भी बार-बार कहते रहे हैं कि यह अत्यंत जटिल टैक्स है। भारत में जीएसटी में 28 फीसदी का जो टैक्स लगाया गया है,वह काफी ज्यादा है। संपूर्ण विश्व में जहाँ कहीं भी जीएसटी लगाया गया है,कहीं भी इतना ज्यादा जीएसटी रेट नहीं है। किसी भी देश में यह 20 फीसदी से अधिक नहीं है।

यही कारण है कि अरविंद सुब्रह्मण्यम बार-बार 28 फीसदी स्लैब को समाप्त करने की बात करते रहे हैं। 31 वीं जीएसटी कौसिंल की बैठक में वित्त मंत्री ने धीरे-धीरे 28% स्लैब समाप्त करने को लक्ष्य बताया। सरकार जिस धीमी गति से जीएसटी का सरलीकरण कर रही है,वह अत्यंत बेतुका है। संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था को “प्रयोग एवं सुधार”प्रणाली पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इससे बेहतर विकल्प था कि सरकार पहले ही इन संभावनाओं पर मंथन कर जीएसटी क्रियान्वयन का कार्य करती।

सरकार ने जिस तरह बिना तैयारी के जीएसटी को क्रियान्वित किया,उससे देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी कीमत चुकानी पड़ी। वर्ष 2016-17 में देश की जीडीपी 7.17% बढ़ी थी,लेकिन 2017-18 में यह घटकर 6.7% रह गई। ध्यान रहे कि हमलोग एक वैश्विक युग में रह रहे हैं,जहाँ विश्व के दूसरी अर्थव्यवस्थाओं का प्रभाव भी हमारे अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।

इस दृष्टि से,2017-18 में दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में तेजी देखी गई। सामान्य स्थिति में भारत को इसका लाभ मिलता,लेकिन जीएसटी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की गति धीमी हुई। जीएसटी के विश्लेषण के लिए एक और आँकड़ों की ओर हमें देखना होगा। जुलाई 2017 में जीएसटी से 94 हजार करोड़ रुपये का राजस्व मिला था,जो कि जून 2018 में 96 हजार करोड़ रुपये हो गया।

स्पष्ट है कि राजस्व में वृद्धि 2 प्रतिशत की हुई,लेकिन अगर जीएसटी पूर्व के 2006 से 2014 तक के आँकड़ों को देखा जाएं तो हर वर्ष सरकार के राजस्व में 15% की वृद्धि हो रही थी,लेकिन जीएसटी के बाद अब 15% की वृद्धि दर 2% पर सिमट गई।

जीएसटी से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान को ‘सीमेंट’के उदाहरण से समझा जा सकता है। सीमेंट पर जीएसटी 28% है। इस स्थिति में हमारे सीमेंट उद्योग को पाकिस्तानी सीमेंट उद्योग से कड़ी चुनौती मिल रही है। वर्ष 2007 से पाकिस्तान से आ रहे सीमेंट पर कस्टम ड्यूटी नहीं लगाई जा रही है,जिससे भारतीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। सीमेंट उत्पादकों का कहना है कि 28% ऊंचे जीएसटी से जहाँ भारतीय सीमेंट उद्योग पहले से ही परेशान है,वहीं सस्ते पाकिस्तानी सीमेंट ने भारतीय सीमेंट उद्योग की कमर तोड़ दी है।

पाकिस्तान से आने वाला सीमेंट भारतीय उत्पाद के मुकाबले 10-15 फीसदी सस्ता है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 16.82 लाख टन का पोर्टलैंड सीमेंट (सामान्य सीमेंट) भारत ने आयात किया,जिसमें से 12.72% सिर्फ पाकिस्तान से आया। अर्थात पिछले साल भारत ने अपने कुल सीमेंट का 76% सिर्फ पाकिस्तान से आयात किया। पंजाब में पोर्ट सीमेंट 50 किलोग्राम की कीमत 280 से 300 रुपए है,लेकिन यही सीमेंट पाकिस्तान से सिर्फ 240 से 250 रुपये में आ रहा है।

आतंकवाद के कारण भारत-पाकिस्तान के बीच कोई वार्ता नहीं हो रही है,ऐसे में 2007 से पाकिस्तानी सीमेंट पर कोई सीमा शुल्क नहीं लगना आश्चर्यजनक है। वहीं उच्चतर जीएसटी के कारण सीमेंट उद्योग में मांग कम बनी हुई है,जिससे भारतीय सीमेंट उद्योग के क्षमता का केवल 65% का ही उपयोग हो पा रहा है। अब वित्त मंत्री भविष्य में सीमेंट को भी 28% स्लैब से घटाकर 18% में लाना चाहते हैं,लेकिन जबतक में सरकार ऐसा करेगी,तब तक सीमेंट उद्योग को भारी नुकसान हो चुका होगा। आखिर इसकी भरपाई कैसे होगी,यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। जीएसटी के क्रियान्वयन ने भारत के लघु उद्योगों को बुरी तरह से प्रभावित किया।

छोटे व्यापारियों का कहना है कि उनकी उतनी आमदनी नहीं है कि वो हर माह चार्टर्ड अकाउंटेंट और वकीलों को पैसा दे सकें। उनके अनुसार जीएसटी उनका खर्चा ही बढ़ाती है। जीएसटी लागू होने का गंभीर खामियाजा भारतीय कपड़ा उद्योग को भी उठाना पड़ा। वर्ष 2017-18 में वस्त्र निर्यात में 4% की कमी रही। इसके लिए आंशिक तौर पर अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित बाजारों में मांग की कमी को एक वजह बताया जा रहा है। निर्यात क्षेत्र में देश के कमजोर प्रदर्शन के लिए वैश्विक माँग में कमी की दलील पहले भी दी जाती रही है।

बहरहाल, अगर अन्य विकासशील देशों के वस्त्र निमार्ताओं से तुलना की जाए तो यह पता चलता है कि दरअसल समस्या वैश्विक बाजारों की स्थिति की नहीं है,बल्कि उसका संबंध देश की परिस्थितियों विशिष्टत: ,जीएसटी से है। पिछले वित्त वर्ष में जहाँ भारतीय निर्यात में 4% की गिरावट दर्ज की गई थी,वहीं बांग्लादेश ने इसी अवधि के दौरान तैयार वस्त्रों के निर्यात के जरिए 9 फीसदी की राजस्व वृद्धि हासिल की। इसी तरह वियतनाम का भी उदाहरण लिया जा सकता है,जिसके वस्त्र निर्यात में इस वर्ष अब तक 14% की वृद्धि दर्ज की जा चुकी है।

मई 2018 में जब देश का वस्त्र निर्यात 17% गिरा,तो इसी अवधि में श्री लंका के वस्त्र निर्यात में सलाना आधार पर 9% की वृद्धि हुई। स्पष्ट है कि वस्त्र निर्यात में भारत से पीछे रहने वाले बांग्लादेश, वियतनाम और श्रीलंका की स्थिति अब अगर भारत से बेहतर है तो अंतरराष्ट्रीय मांग नहीं बल्कि जीएसटी का गलत क्रियान्वयन इसके लिए दोषी है।

निसंदेह ‘एक देश,एक टैक्स’ जरूरी है,लेकिन किसी ऐतिहासिक पहल के लिए बड़ी तैयारी की जरूरत रहती है,जो जीएसटी के मामले में नहीं की गई है। डीजल और पेट्रोल जैसे अति महत्वपूर्ण उत्पादों के अब भी जीएसटी से बाहर रहने पर ‘एक देश,एक टैक्स’ की अवधारणा पर प्रश्न उठना लाजिमी है। कोई भी कानून जनता की बेहतरी के लिए है,उसमें समय की माँग के अनुसार बदलाव आवश्यक है,लेकिन थोड़े ही समय में बार-बार बदलाव कहीं न कहीं मुद्दे में गंभीरता की कमी को प्रदर्शित करती है।

विपक्ष इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहकर सरकार की घेराबंदी करता रहा है। सरकार के लिए आवश्यक है कि वह केवल चुनाव पूर्व हथकंडे के रूप में जीएसटी स्लैब में परिवर्तन नहीं करे,अपितु राष्ट्र के दीर्घकालिक लाभांश के दृष्टि से जीएसटी में बदलाव करे। साथ ही सरकार की जीएसटी के संदर्भ में अर्थव्यवस्था के विकास एवं रोजगार सृजन के मामले में अत्यंत संवेदनशील रहने की आवश्यकता है।

राहुल लाल

 

 

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