विभिन्न गांवों में प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन
सरसा (सच कहूँ न्यूज)। ग्वार फसल में जड़गलन एक मुख्य बीमारी बनती जा रही है जो पैदावार को काफी प्रभावित करती है। गत वर्ष नवम्बर से लेकर जनवरी के मध्य तक सिरसा जिले के विभिन्न गांवों का सर्वे करने पर यह पता चला कि किसानों को उखेड़ा बीमारी की अभी बहुत कम जानकारी है। कृषि विभाग सिरसा एवं ग्वार विशेषज्ञों के संयुक्त प्रयासों से पिछले कुछ सालों में विभिन्न गांवों में प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन कर किसानों को उखेड़ा बीमारी के बारे में जागरूक किया जा रहा है।
यह बात कृषि विभाग सिरसा एवं हिन्दुस्तान ग्वार एण्ड गम के संयुक्त तत्वावधान में ओढां खण्ड के गांव मलिकपुरा में एटीएम पवन कुमार की देख-रेख में आयोजित शिविर को सम्बोधित करते हुए ग्वार विशेषज्ञ डॉ. बी.डी. यादव (Dr. Yadav) ने कही। शिविर का उद्देश्य किसानों को बीजोपचार एवं ग्वार की पैदावार बढ़ाने की तकनीक बारे में प्रेरित करना था। गोष्ठी के दौरान यह भी ज्ञात हुआ कि कुछ किसान इस जड़गलन रोग की रोकथाम के लिए फंफूदीनाशक दवाई का स्प्रे करते हैं जिसका किसानों को इस बीमारी पर काबू करने की दिशा में कोई लाभ नहीं होता।
अत: इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीजोपचार ही एकमात्र हल है। इसके लिए 3 ग्राम बाविस्टिन प्रति किलो बीज की दर से सूखा उपचारित करने के बाद बिजाई करें। बीजोपचार करने में 15 रुपए प्रति एकड़ का खर्च आता है और उत्पादन में लगभग एक क्विंटल की बढ़ौतरी होती है। उन्होंने (Dr. Yadav) बताया कि बीजोपचार करने से उखेड़ा रोग पर 80 से 95 प्रतिशत तक काबू पाया जा सकता है।
अत: किसान अधिक जानकारी के लिए कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि अधिकारियों के सम्पर्क में रहें। शिविर में मौजूद 106 किसानों को बीजोपचार के लिए हिन्दुस्तान गम एण्ड केमिकल्ज भिवानी की ओर से दो एकड़ की बाविस्टिन दवाई तथा एक-एक जोड़ी दस्ताने नि:शुल्क दिए गए। इस अवसर पर प्रश्नोत्तरी सभा का भी आयोजन किया गया जिसमें पांच विजेता किसानों को ईनाम दिए गए। शिविर के आयोजन में सरपंच गुरमीत सिंह की अहम भूमिका रही। इस अवसर पर गुरदेव सिंह, गुरमीत सिंह, इकबाल सिंह, सोहन लाल, रामप्रताप, गुरतेज सिंह, बूटा सिंह, रघुबीर सिंह, बलजीत सिंह, गुरनैल सिंह सहित अन्य किसान उपस्थित थे।
गोबर की खाद डालने से बनी रहती है भूमि की उर्वरा शक्ति
डॉ. यादव (Dr. Yadav) ने किसानों को सलाह दी कि बिजाई से पहले अपने खेत की मिट्टी एवं पानी की अवश्य जांच करवाएं। उन्होंने अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर की खाद डालने पर विशेष जोर देते हुए कहा कि इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। गोष्ठी के दौरान किसानों से रूबरू होने पर पता चला कि गांव में इस बीमारी से 25-40 प्रतिशत तक फसल का नुक्सान हो जाता है, जो कि भूमि के प्रकार पर निर्भर करता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें काली हो जाती हैं, जिससे पौधे आवश्यक पोषक तत्व नहीं ले पाते और मुरझाकर सूख जाते हैं।
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