- 4 हजार से ज्यादा भूजल कुओं पर हुआ अध्ययन
सच कहूँ/अनिल कक्कड़/चंडीगढ़। उत्तर-पश्चिम भारत खासकर हरियाणा और पंजाब में भू-जल चिंताजनक स्तर तक गिर गया है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। आईआईटी कानपुर द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में उत्तर पश्चिम भारत के 4,000 से अधिक भू-जल वाले कुओं के आंकड़ों का उपयोग किया गया है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि पंजाब और हरियाणा राज्यों में भू जल स्तर पिछले चार-पांच दशकों में खतरनाक स्तर तक गिर गया है।
भारत सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए दुनियाभर में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। भारत में कुल वार्षिक भूजल अपव्यय लगभग 245 किमी. है, जिसमें से लगभग 90 प्रतिशत की खपत सिंचाई में होती है। अध्ययन में कहा गया है कि गंगा के मैदानी इलाकों के कई हिस्से फिलहाल भूजल के इसी तरह के अत्यधिक दोहन से पीड़ित हैं और यदि भूजल प्रबंधन के लिए उचित रणनीति तैयार की जाए तो स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।
2 मीटर से 30 मीटर तक पहुंचा पानी
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा और उनके पीएचडी के छात्र सुनील कुमार जोशी के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में बताया गया कि पंजाब और हरियाणा राज्य सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र हैं। इसके अनुसार ऊपरी भूजल 1974 के दौरान जमीनी स्तर से 2 मीटर नीचे था, जो 2010 में गिरकर लगभग 30 मीटर नीचे हो गया।
अध्ययन से पता चलता है कि हरियाणा में चावल की खेती का क्षेत्र 1966-67 के 1,92,000 हेक्टेयर से बढ़कर 2017-18 में 14,22,000 हेक्टेयर हो गया जबकि पंजाब में यह 1960-61 के 2,27,000 के मुकाबले 2017-18 में बढ़कर 30,64,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया है। नतीजतन, मांग को पूरा करने के लिए भूजल अवशोषण बढ़ गया।
सबसे ज्यादा गिरावट इन जिलों में दर्ज हुई
इसके अलावा, भूजल स्तर में सबसे महत्वपूर्ण गिरावट घग्गर-हकरा पैलियोचैनल (कुरुक्षेत्र, पटियाला और फतेहाबाद जिले) और यमुना नदी घाटी (पानीपत और करनाल जिलों के कुछ हिस्सों) में दर्ज की गई है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार भारत के प्रमुख कृषि क्षेत्र पंजाब और हरियाणा राज्यों में भूजल की खपत की दर 20वीं शताब्दी के मध्य में कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि के कारण बढ़ी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।
जिसका उद्देश्य खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। अध्ययन में कहा गया है, ‘उत्तर-मध्य पंजाब और हरियाणा के कई इलाकों में भूजल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है, जिसके लिए भूजल स्तर में बदलाव की निगरानी बढ़ाने और अमूर्त दबाव के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।’
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