जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। भारत इस समय सबसे ज्यादा पानी की समस्या से जूझ रहा है। मानव अपने जीवन में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करता रहा है। उनमें से एक जल है। हम अपनी आवश्यकता की पूर्ति पूरी करने के लिए भूजल स्तर पर ज्यादा निर्भर रहे हैं। जो धीरे – धीरे नीचे जा रहा है। जिस तरह से भारत में एक कहावत थी कि यहाँ दूध की नदियां बहती हैं। कहीं आने वाले समय में आने वाली पीढ़ी ये ना कहे कि भारत में पानी की नदियां बहती थी। पहले बड़े बुजुर्गों ये सूनते आए थे कि पानी की बबार्दी को पाप समझा जाता था।
भारत में लाखों की संख्या में तालाब थे साथ ही लाखों कुए ओर बावड़ी, झीलें ओर झरने थे। हजारों नदियां और नाले होते थे जो आज गुम हो गए हैं। जो कोई नहीं बता सकता है। बारिश का पानी 40 फीसदी ही इस्तेमाल कर पाते हैं। बाकी 60 फीसदी पानी नदी नालों के जरिए समुद्र में चला जाता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक बाधों में जल स्तर गिरने के कारण महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु को सलाह दी है कि पानी का उपयोग बड़ी समझदारी से करें। जलाशयों का जलस्तर बीते दस साल के जल भंडारण के औसत से 20 फीसदी की गिरावट आई है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड देश के प्रमुख जलाशयों की निगरानी करता है। और समय समय पर आंकड़े जारी करता है। अभी पिछले दिनों ही सीजीडब्लूबी की रिपोर्ट में कहा कि अगर पंजाब, हरियाणा, ओर राजस्थान में 300 मीटर तक गहराई में पानी की निकासी चलती रही तो अगले दो दशकों में भूजल स्तर खत्म हो जाएगा। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक अगले 10 साल में उतर पश्चिम भारत में भूजल 100 मीटर ओर गिर सकता है। रिपोर्ट में कहा है कि हर साल भूजल स्तर 51 सेंटीमीटर से गिर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार 35.78 बिलियन क्यूबिक मीटर है वार्षिक भूजल निकासी की दर। हरियाणा में भूजल स्तर 5 वर्षों में 2.20 मीटर गिरावट दर्ज की गई है।
60 फीसदी से भी ज्यादा प्रयोग औद्योगिक क्षेत्र ओर कृषि के अन्दर किया जा रहा है। जिससे भूजल स्तर गिरता जा रहा है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद 190, नाशिक 100, नागपुर 58 के आसपास जलाशय हैं। मराठवाड़ा, यवतमाल ओर उसके आसपास के इलाकों में स्थित ओर खराब हो रही है। सभी जलाशयों का पानी सूख रहा है। इन जलाशयों के पानी के स्तर में गिरावट से इलाके के लोगों चिंता बढा दी है। यदि गहराई से विश्लेषण करें तो यह समझते देर नहीं लगती है कि अन्य प्राक्रतिक ओर मानवीय संकटो की तरफ ही जल संकट भी मानव निर्मित है। आज भारत में स्वच्छ जल की उपलब्धता न के बराबर है। बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाइयों द्वारा दूषित ओर जहरीला पानी नदी नालों में डाल दिया जाता है। जिससे पानी दूषित हो जाता है। जो पीने लायक नहीं रहता है।
भारत की 70 फीसदी आबादी को स्वच्छ जल पीने के लिए नहीं मिल पा रहा है। जिससे लाखों की संख्या में लोग हर साल बिमारी से मर जाते हैं। अब समय आ गया है सरकारों के जगाने का समय मत देखिए। अब खुद जागने का समय आ गया है। यदि हम गहराई से देखें तो आज जल उपयोग के बाद नलों को घंटों तक नीचे बहने के लिए छोड दिया जाता है। हम दैनिक क्रियाओं में जल का बिना विवेक ओर विचार के जल का लापरवाही से प्रयोग करते हैं। जिससे ये सब समस्याएं मानव द्वारा ही निर्मित की गई है। अत: हमें गहराई से विचार करना चाहिए कि किस तरह से जल संचयन किया जा सकता है। सरकारों के भरोसे न रहकर ये हम सब की जिम्मेवारी बनती है कि जल के संकट से हमें कैसे निकलना है। आज गिरता भूजल स्तर ओर जल संचयन समस्या बनती जा रही है। हम सबने एक अभियान चलाकर जागरूकता लाने की कोशिश करनी है कि किस प्रकार से इस समस्या को रोका जा सकता है।
जयदेव राठी
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