16साल की स्वीडिश पर्यावरण एक्टिविस्ट ग्रेटा अर्नमैन थनबर्ग का नाम आजकल पूरी दुनिया में चर्चा में है। चर्चा की वजह, पर्यावरण को लेकर उसकी विश्वव्यापी मुहिम है। अच्छी बात यह है कि जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभावों से लोगों को जागरूक करने के लिए, ग्रेटा ने जो आंदोलन छेड़ रखा है, उसे अब व्यापक जनसमर्थन भी मिल रहा है। पर्यावरण बचाने के इस आंदोलन में लोग जुड़ते जा रहे हैं। खास तौर से यह आंदोलन बच्चों और नौजवानों को अपनी ओर खूब आकर्षित कर रहा है। पर्यावरण के प्रति ग्रेटा थनबर्ग की संवेदनशीलता और प्यार शुरू से ही था।
महज नौ साल की छोटी सी उम्र में, जब वे तीसरी क्लास में पढ़ रही थीं, उन्होंने क्लाइमेट एक्टिविजम में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। लेकिन ग्रेटा की ओर सबका ध्यान उस वक्त गया, जब उसने पिछले साल अगस्त में अकेले ही स्वीडिश संसद के बाहर पर्यावरण को बचाने के लिए हड़ताल का आगाज किया। ग्रेटा की स्वीडन सरकार से मांग थी कि वो पेरिस समझौते के मुताबिक अपने हिस्से का कार्बन उत्सर्जन कम करे। बहरहाल ग्रेटा ने अपने दोस्तों और स्कूल वालों से भी इस हड़ताल में शामिल होने की अपील की, लेकिन सभी ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया।
यहां तक कि ग्रेटा के माता-पिता भी पहले इस मुहिम के लिए मानसिक तौर पर तैयार नही थे। ग्रेटा को ऐसा कुछ करने से रोकने की उन्होंने अपनी तरफ से कोशिश भी की, लेकिन ग्रेटा रूकी नहीं। ग्रेटा ने पहले स्कूल स्ट्राइक फॉर क्लाइमेट मूवमेंट की स्थापना की। खुद अपने हाथ से बैनर पैंट किया और स्वीडन की सड़कों पर घूमने लगीं। उसके बुलंद हौसले का ही नतीजा था कि लोग उसके पीछे आते चले गए और कारवां बनता चला गया।
ग्रेटा थनबर्ग का यह आंदोलन बच्चों में इतना कामयाब रहा कि पूरी दुनिया के स्कूली बच्चे उनके साथ हो लिए। आज आलम यह है कि पर्यावरण बचाने के इस महान आंदोलन में एक लाख से ज्यादा विद्यार्थी शामिल हो गए हैं। इसी साल 15 मार्च के दिन, दुनिया के कई शहरों में विद्यार्थियों ने एक साथ पर्यावरण संबंधी प्रदर्शनों में भाग लिया और भविष्य में भी प्रत्येक शुक्रवार को ऐसा करने का फैसला लिया है। अपने इस कैंपेन का नाम उन्होंने फ्राइडेज फॉर फ्यूचर (अपने भविष्य के लिये शुक्रवार) दिया है। शुक्रवार के दिन बच्चे स्कूल जाने की बजाय, सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज करवाएंगे। ताकि दुनिया भर के नेताओं, नीति निमार्ताओं का ध्यान पर्यावरणीय संकट की तरफ जाए। वे इसके प्रति संजीदा हों और पर्यावरण बचाने के लिए अपने-अपने यहां व्यापक कदम उठाएं।
पर्यावरण बचाने की ग्रेटा थनबर्ग की यह बेमिसाल मुहिम स्कूलों में तो चल ही रही है, इसके अलावा उन्होंने अपनी इस मुहिम को अब स्कूल की चारदीवारी, बल्कि यह कहें कि अपने देश की सरहदों से भी बाहर निकाल दिया है। ग्रेटा ने हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी एक वीडियो के जरिए संदेश भेजा था। जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री से गुजारिश की थी कि वे पर्यावरण बचाने और जलवायु परिवर्तन के संकटों से उबरने के लिए अपने देश में गंभीर कदम उठाएं।
पर्यावरण बचाने की अपनी इस ग्रेट मुहिम से ग्रेटा थनबर्ग का नाता सिर्फ सैद्धांतिक नहीं है, बल्कि अपने व्यवहार से कोशिश करती हैं कि खुद भी इस पर अमल करें। आगामी 23 सितंबर को न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट समिट में ग्रेटा को हिस्सा लेना है। स्वीडन से न्यूयॉर्क की लंबी यात्रा के लिए उन्होंने यॉट में सफर करने का फैसला किया है। वह इसलिए, ताकि वह अपने हिस्से का कार्बन उत्सर्जन रोक सकें।
जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले खराब मौसम की वजह से हमारे देश में ही हर साल 3,660 लोगों की मौतें हो जाती हैं। लांसेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के चलते 153 अरब कामकाजी घंटे बर्बाद हुए हैं। जिसके चलते उत्पादकता के क्षेत्र में भी भारी कमी आई है, जिससे पूरी दुनिया को 326 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचा है। इस गंभीर चुनौती से तभी निपटा जा सकता है, जब सभी इसके प्रति जागरूक हों और पर्यावरण बचाने के लिए मिलकर योजनाबद्ध तरीके से काम करें। खास तौर से हमारी नई पीढ़ी इसके लिए आगे आए। अपनी जिम्मेदारियों को खुद समझे और दूसरों को भी समझाएं। जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही दुनिया के सामने, अपने जागरूकता अभियान से ग्रेटा थनबर्ग ने एक शानदार मिसाल पेश की है। दुनिया को बतलाया है कि अभी भी ज्यादा वक्त नहीं बीता, संभल जाएं। वरना, पछताने के लिए कोई नहीं बचेगा।
-जाहिद खान