ईसा की महानता

Greatness
Greatness
एक बार महात्मा ईसा को किसी दुराचारी व्यक्ति ने उनकी मंडली सहित भोजन का निमंत्रण दिया। महात्मा ईसा ने प्रेमपूर्वक वह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। दुराचारी जिस गाँव में रहता था, वहाँ के सारे लोग उससे घृणा करते थे। उससे दूर रहने में अपनी भलाई समझते थे। ईसा को वहाँ जाना गाँव वालों को अच्छा नहीं लगा। सारे गाँव में काना-फू सी होने लगी। सबको यही आश्चर्य था कि महात्मा ईसा ने उस व्यक्ति के घर भोजन करना कैसे स्वीकार कर लिया? एक बूढ़े व्यक्ति ने गाँव वालों को सलाह दी कि सब ईसा के पास चलें और उनसे अपने मन की बात साफ-साफ कह दें। सबकों यह सलाह पसन्द आई। गाँव वालों का दल जब महात्मा ईसा के पास पहुँचा, तो वे भोजन करने की तैयारी कर रहे थे। बूढ़े व्यक्ति की बात उन्होंने ध्यान से सुनी। सब सुनकर, उन्होंने मुस्कराकर पूछा-बाबा! चिकित्सक स्वस्थ मनुष्य के घर जाता है या रोगी के? मैं भी एक रोगी के पास जा रहा हूँ। उसे घृणा का विष नहीं, प्रेम की अचूक औषधि चाहिए (Greatness)। बुरे व्यक्ति को अच्छा बनाना हो तो उसके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करो। उसके सम्पर्क में आओ, तभी वह तुम्हारी बातों का सम्मान करेगा। उसके दुर्गुणों से अवश्य बचना चाहिये, किन्तु उससे घृणा करके, उसका हृदय नहीं बदला जा सकता। संतों का कहना है कि ‘पापी से नहीं, पाप घृणा करो।’ उसे पाप से मुक्त करने की चेष्टा करो। संसार में निर्विकार कोई व्यक्ति नहीं। एक-दूसरे पर दोषरोपण से जीवन, समाज एवं संसार की गति अवरूद्ध हो जाएगी। इसलिए किसी को तिरस्कृत व बहिष्कृत करने की बजाय उसे अपनात्व से समझना व सुधारना ही श्रेयस्कर है। (Greatness)

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