…ताकि ठंड से कोई न मरे

Winter

देश में राजनीतिक समीकरणों के बदलते हुए मौसम भी बदल रहा है। देश की जनता हर बात के लिए हर वक्त तैयार रहती है लेकिन हमें इस बात के लिए भी तैयार रहना होगा कि इस बार सर्दी से कोई न मरे।इसके लिए हमें न किसी सरकार से उम्मीद करनी है और न ही किसी नेता की सहायता लेनी है। केंद्र व राज्य सरकारें इस तरह की योजनाओं के लिए हर बार अथक प्रयास करते हुए गरीबों के लिए तमाम सुविधाओं की व्यवस्था करती है लेकिन इसके बाद भी कड़ाके की सर्दी से देशभर में सालाना बहुत सी जानें खो जाने का सिलसिला जारी है। जैसा कि देश मे सर्दी पूरी चरम सीमा पर आ गई है। खबरिया चैनलों व पेपरों की हेडलाइन बदलने लगी है। हर रोज सुबह अखबार में व शाम को चैनलों पर यह दिखाई व सुनाई देने ही वाला है। कडाके की ठंड से इतने लोगो की मौत शासन लापरवाह व प्रशासन मौन। लेकिन इस बार हम ऐसी खबरों को देखना नहीं चाहते।

इसके निपटने के दो रास्ते हैं। पहला तो इसकी निंदा की जाए व राज्य सरकारों को टाइट करते हुए इस ओर उनका ध्यान आर्कषित करवाया जाए। यह काम हर किसी के बसकी बात नही व यह करना थोड़ा मुश्किल भी होगा। दूसरा, आप को स्वयं को ही नेता, सरकार या गरीबों का मसीहा समझते हुए इस काम को अंजाम दें जो बेहद सरल रहेगा। अपने पुराने कपड़े किसी को बेंचें व फेके नहीं। वह कपड़े राह चलते या किसी एनजीओ को दें दें। जिन लोगों के पास कार है वो पुराने कपड़े अपनी कार में रखें व जहां भी रास्ते में या कहीं भी अन्य स्थान पर ठंड से ठिठुरता दिखे तो उसको दें। इसका अलावा जो लोग बाकी साधन से चलते हंै वो अपने सुविधा अनुसार कपड़ो का वितरण कर सकते हैं। कई जगह देखा जाता है कि लोग कपडों के बदले चाय पीने वाले कप,बर्तन या अन्य छोटी मोटी चीज ले लेते हैं

वह ऐसा न करें व अपने मन से छोटा सा लालच निकालते हुए किसी गरीब को कपड़े देने का प्रयास करें। जिन वस्तुओं को वो लेते हैं उनकी कीमत कपड़ों की कीमत की अपेक्षा कुछ भी नहीं होती। गली मौहल्ले में घूमने वाले इस तरह के लोग घरों से कपड़ा इक्कठा करके आगे बेच देते हैं। मुझे लगता ऐसा करने से बेहतर गरीब या जरुरत मंदो को कपड़े दिए जाएं तो ज्यादा अच्छा होगा। क्योंकि आपके एक कपड़े से एक व्यक्ति की जान बच सकती है। देश के किसी भी राज्य में या आपके आस पास ही आसानी से वह लोग मिल जाते हैं जिन्हें हम इस तरह के कपड़े दे सकते है। मैनें कुछ इस तरह के लोगों को देखा है जो रात में अपने साथ कपड़े लेकर घूमते हंै जहां भी उन्हें जरुरतमंद लोग मिलते हैं वह उन्हें कपड़े या कम्बल देकर चले जाते है। इसके विपरीत इस प्रकरण की अहम बात यह है आज के युग में हर किसी के पास समय की बेहद कमी है।

अधिकतर लोगों ने अपने समय का वर्गीकरण इस तरह कर रखा है कि उनके पास जिंदगी में किसी अन्य चीजों के लिए समय ही नहीं है या यूं कहें कि इस व्यस्तता भरे जीवन में लोगों के पास अपने लिए तक भी थोड़ा समय नहीं बचा। खासतौर पर महानगरों में तो सूकून, चैन या आराम नाम की चीजें ही लोगो के जीवन से गायब हो गई लेकिन व्हाट्स एप,फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर किसी की ठंड लगने से मौत होने की खबर पढ़कर या शेयर करके दुख जताने से बेहतर होगा कि आपके छोटे से प्रयास व थोड़ा सा समय निकालने से यदि किसी की जान बच जाए तो निश्चित तौर पर स्वयं को अच्छा लगेगा।हम अधिकतर काम या घटना सरकार पर छोड़ सकते हैं लेकिन कुछ तो स्वयं करें तो भी देश की कुछ दशा बदल सकती है। कुछ अद्भुत विडम्बना हमारे देश में ही देखने को मिलेगी जिसमें से आर्थिक असामनता मुख्य है। किसी भी देश की सरकार कोई भी दंश झेल सकती है लेकिन भूख या ठंड से मरना किसी भी देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है।

पहले लोग अच्छे व सतकर्मों की बात करा करते थे। कहते थे कि कभी तुमसे किसी का दिल न दुखे और जितना हो अपनी तरफ से लोगों का भला करो लेकिन आज की दुनिया में इन बातों का दूर-दूर तक कोई मायना दिखाई नहीं देता है। बदलते परिवेश में लोगों की जीवनशैली बदली जिससे विचार बदले और अब विचार बदलने से लोगों की भावनाएं बदल रही है।
बहरहाल,गरीबों को ठंड से बचाने के लिए सरकार के साथ हर क्षेत्र की संबंधित एनजीओ व जनता को भी अग्रसर होते हुए कुछ करना चाहिए। आंकड़ों व खबरों पर गुस्सा निकालने की बजाय सब साथ काम करें। हम पुन कमाने के तौर तरीके करते व समझते हैं। देश के बड़े व नामचीन तीर्थ स्थलों पर जाते हैं लेकिन यदि हमें किसी की जिंदगी बचाकर या यूं कहें कि किसी को नई जिंदगी देकर उससे ज्यादा पुण्य यहीं कमा लें तो गलत नहीं होगा।

योगेश सोनी

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