धरनों के लिए मजबूर किसानों की सुनवाई करे सरकार

Government to hear farmers

दिल्ली में एक बार फिर किसानों ने हजारों की संख्या में पहुंचकर धरना दिया। विभिन्न राज्यों से पहुंचे किसानों का धरना कोई मनोरंजन या राजनीतिक पार्टियों वाली पैंतरेबाजी नहीं है। सांसद के सामने प्रदर्शन के लिए किसानों से केंद्र सरकार का एक भी मंत्री बातचीत करने या मांग-पत्र लेने नहीं आया। जहां तक कृषि का संबंध है न तो केंद्र व न ही राज्य सरकारें इस मुद्दे को जिम्मेवारी से ले रही हैं। पंजाब में 2017 की विधान सभा चुनावों में कांग्रेस ने कृषि कर्ज माफी का मुद्दा चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल किया और पार्टी को जबरदस्त बहुमत मिला। उसके बाद जिन राज्यों में भी विधान सभा चुनाव हुए, सभी पार्टियों ने किसानों के लिए कर्ज माफी का पंजाब वाला पैटर्न अपना लिया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान की विधान सभा चुनाव में कर्ज माफी के वायदे गूंज रहे हैं। इसी तरह पंजाब की तरह हरियाणा में इनैलो ने कृषि के लिए मुफ्त बिजली देने की घोषणा की है। दरअसल राजनीतिक पार्टियों की यह घोषणाएं सरकार तो पलट देती हैं लेकिन कृषि में क्रांति नहीं ला सकती। महज कर्ज माफी ही कृषि संकट का समाधान नहीं। आज फसल बीमा योजना भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है। पी सार्इं नाथ जैसे बुद्धिजीवी इस योजना को निजी कंपनियों की लूट करार दे रहे है। महंगे बीज, खादें व कीटनाशकों ने किसान की कमर तोड़ दी है। धान में नमी की शर्तों, 15-20 जून से पहले न लगाने के आदेशों में किसान लाचार व बेबस हो गया है। जो किसान पारंपरिक फसलों को छोड़कर तकनीकी कृषि करने के इच्छुक हैं, वह मंडीकरन की सुविधा न मिलने के कारण निराश है। चारों तरफ से घिरा हुआ किसान आत्महत्याएं करने के लिए मजबूर है। सरकार आत्महत्याओं पर कोई संज्ञान नहीं ले रही। कृषि विशेषज्ञों द्वारा तैयार की रिपोर्टों को नेताओं के पास पढ़ने का ही समय नहीं। कृषि विशेषज्ञों की राय तो ली जाती है लेकिन अमल नहीं किया जाता। देश में आजादी के 70 सालों के बाद भी किसानों का रोष प्रदर्शनों व सड़कों पर नारेबाजी कर रहे किसानों की मांगें उन ठोस दलीलें पर आधारित हैं जो किसी आर्थिक ढांचे की हकीकत को ब्यां करती है। देश के बुद्धिजीवी, समाज शास्त्रीय, अर्थशास्त्रीय कृषि संबंधी समस्याओं को लेकर एकजुट हैं। सरकारों को राजनीतिक नफे-नुकसान को एक तरफ रखकर कृषि को वैज्ञानिक रास्ते पर लाने के लिए ठोस निर्णय लेने की आवश्यकता है। सरकार को धरने पर बैठे किसानों को खाली विश्वास दिलवाकर समय निकलाने की नीति छोड़नी चाहिए।

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