तीन बड़े राज्यों महाराष्ट, कर्नाटक, गुजरात व केरल में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ ने तबाई मचा दी है। इस त्रासदी में प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार अब तक 200 से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी है। गनिमत यह है कि एनडीआरएफ व सेना के जवानों ने हजारों लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने में सफलता प्राप्त की है। हालांकि चारों राज्यों में प्रशासन ने मुस्तैदी से राहत कार्य किया है। केन्द्र व राज्य सरकारें बाढ़ पीड़ितों को आवश्यक साजो सामान मुहैया करवा रही हैं लेकिन जहां तक लगभग हर साल बाढ़ की त्रासदी का सवाल है।
वहां सरकार की बाढ़ से निपटने के लिए कोई भी नई रणनीति नहीं दिख रही। पिछले कुछ वर्षों में केरल में बाढ़ ने बड़े स्तर पर तबाही मचाई थी। स्थिति इतनी भयानक थी कि प्रशासन ने ऐसी तबाही की उम्मीद ही नहीं की थी, जिस कारण राहत कार्य बोने पड़ गए। इसी तरह चेन्नई महाराष्ट में भी समुन्द्र का नजारा बना हुआ है। हालांकि मौसम विभाग के अनुसार पिछले कई सालों से देश में मानसून औसत ही रहा है, फिर भी बाढ़ का आना चिंता का विषय है। इस पहलू पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि मनुष्य की दखलअंदाजी ने नदियों व वनों पर संकट पैदा कर दिया है। पहाड़ों में वन की अंधाधुंध कटाई जोरों पर है।
वृक्ष बांध का काम करते हैं, जिससे कुछ हद तक पानी रूक जाता था व पानी के बहाव में भी ज्यादा तेजी नहीं होती थी। नदियों के बहने को भी मनुष्य ने प्रभावित किया है। कहीं बहाव के रास्ते में रूकावट पैदा की है व कहीं दिशा को परिवर्तित किया है। यदि यही हालात जारी रहे तो पानी और भी भयानक तबाही मचा सकता है। बारिश के पानी के उपयोग संबंधी कोई रणनीति नहीं बनाई जा सकी। इज्रराइल जैसे देश कम बारिश के बावजूद बारिश के पानी की संभाल व उपयोग में हमारे देश से कहीं आगे है।
यह तथ्य है कि बाढ़ का सामना कर रहे महाराष्टÑ, केरल व कर्नाटक जैसे राज्य जल संकट वाले राज्य हैं, जो पहले पानी विवाद को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। महाराष्टÑ के लातूर में पिछले कुछ वर्षों में ट्रेनों पर पानी भेजा जाता रहा है। ऐसे राज्यों में ज्यादा बारिश होने पर बाढ़ की समस्या पैदा होना इस पर स्थानीय प्रशासन व सरकारों को विचार करने की आवश्यकता है। देश के नदियों को जोड़ने की योजना भी राजनीतिक हितों के कारण लगभग समाप्त हो चुकी है। तकनीक के मामले में निरंतर आगे बढ़ रहे व चांद पर नए अविष्कारों में जुटे देशों के लिए बाढ़ की समस्या बीते समय की कहानी होनी चाहिए। केन्द्र व राज्य सरकारों को राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर न केवल बाढ़ की समस्या का समाधान निकालना चाहिए बल्कि बारिश के पानी के प्रयोग करने के लिए काम करने की आवश्यकता है।