किसान की जनभावना को समझे सरकार

Farmers Agitation

किसान आंदोलन में भले ही सरकार ने चुप्पी साध ली है लेकिन आंदोलन अभी भी अपनी जगह कायम है। किसान आंदोलन में किसान न केवल भूख-प्यास, सर्दी सहन कर रहे हैं बल्कि उन्हें आंदोलन में भाग ले रहे साथी किसानों का इस दुनिया से जाना भी दर्द दे रहा है। किसान आंदोलन में अब तक सात किसान अपनी जान की बाजी लगा चुके हैं। केन्द्र की भाजपा सरकार को अब भी समझ लेना चाहिए कि शहादतें कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, अच्छा व भले बुरा शहादतों का मोल सरकारों को चुकाना पड़ता है। अगर सरकारें शहादत की इज्जत नहीं करतीं तब देश व आवाम को भुगतना पड़ता है। उधर देश के सर्वोच्चय न्यायलय ने भी सरकार को किसान बिल रोककर रखने को कहा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेषज्ञ समिति व किसान समिति बनाकर ताजा कृषि कानूनों का हल निकाला जाए।

राज्य सरकारों में पंजाब सरकार पहले ही अपनी विधानसभा में केंन्द्रीय कृषि कानूनों को पंजाब में लागू न करने एवं पंजाब में एमएसपी देने का अपनी विधानसभा में बिल पास कर चुकी है। हालांकि पंजाब सरकार को पता है कि वह केन्द्रीय कृषि कानूनों की रोक का राज्य सरकार का कानून पास नहीं करवा पाएगी लेकिन उसने अपने विरोध का आखिरी स्वर केन्द्र को सुना दिया है। दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी विधानसभा में तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़कर राज्य का केन्द्र को विरोध जता दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को समझना होगा कि वो पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं न कि भाजपा की नीतियों या व्यापारिक नीतियों को बनाने या लागू करने के ही प्रधानमंत्री हैं।

भले ही सरकार किसानों को अनसुना कर, किसान नेताओं पर मुकदमें चलाकर या गरीब-मजदूर किसानों को भूखे प्यासे बैठाए रखकर अपनी जीत पक्की कर ले परन्तु यह देश की आत्मा पर एक आघात की तरह होगा। कानूनों की तकनीकी बातें या व्यापार जगत के नफे-नुक्सान हालांकि जन भावनाओं की अनदेखी करते हैं लेकिन इससे जन जनभावनाएं मिटाई नहीं जा सकती। जो जनभावनाएं नहीं मिटती वह देश को लंबे संघर्षों में झोंक देती हैं जिससे न देश का ही कुछ संवरता है न नागरिकों का ही कुछ संवरता है।

ये जनभावनाएं ही हैं जिन्होंने भारत से पाकिस्तान अलग कर दिया, ये जनभावनाएं ही हैं जो कश्मीरियों में भारत विरोध मिटने नहीं दे रही, नक्सलवाद भी जनभावनाओं का ही संघर्ष है। अत: सरकार देश के किसान वर्ग की जनभावना को समझे। अगर सरकार ने हठ नहीं त्यागा तो किसान वर्ग जिसमें हर धर्म व जाति के लोग हैं, से छिड़ा वर्ग संघर्ष शहरों व गांवों, गरीबों व अमीरों में अंतहीन संघर्ष को छेड़ देगा। जिसका सेहरा देश को एक सूत्र में पिरो देने का सपना देखने वाली भाजपा के सिर बंधेगा। कोई विरोध महज इसलिए अस्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए कि ये राजनीतिक विरोध है, कई बार विरोध राजनीति से ऊपर अपने वजूद को बचाने का होता है, किसान का आज का कृषि बिलों का विरोध उनके अपने वजूद की लड़ाई है जिसे वह किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहेंगे।

 

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